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दीपावली को यूनेस्को ने माना सांस्कृतिक विरासत, किन-किन त्योहारों को मिल चुका यह तमगा?

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कविता गाडरी   |  10 Dec 2025 05:49 PM (IST)

दीपावली से पहले भारत की कुल 15 सांस्कृतिक परंपरा यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल है. यह परंपराएं भारत की विविधता, लोक कला और आध्यात्मिक विरासत को दर्शाती है.

यूनेस्को की विरासत सूची में शामिल हुआ दीपावली का त्योहार

दीपावली को यूनेस्को की लिस्ट में जगह मिली है. दरअसल यूनेस्को की इंटरगवर्नमेंटल कमेटी की बैठक में दीपावली को UNESCO Intangible Cultural Heritage में जगह मिली है. इस ऐतिहासिक मौके को सेलिब्रेट करने के लिए दिल्ली के लाल किले, चांदनी चौक और कई सरकारी इमारतों को दिए और लाइटिंग से सजाया जा रहा है. सरकार ने इसे एक राष्ट्रीय उपलब्धि मानते हुए पूरे देश में रोशनी कार्यक्रम कर रही है. दिल्ली और केंद्र सरकार के अनुसार लाल किला इस उत्सव का मुख्य केंद्र रहेगा, जहां बड़े स्तर पर आयोजन की तैयारी है. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि दीपावली को यूनेस्को ने सांस्कृतिक विरासत मानने से पहले कौन-कौन से भारतीय त्योहारों को यह सम्मान मिल चुका है.

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भारत के किन-किन त्योहारों और परंपराओं को मिल चुका है यह दर्जा

  • दीपावली से पहले भारत की कुल 15 सांस्कृतिक परंपरा यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल है. यह परंपराएं भारत की विविधता, लोक कला और आध्यात्मिक विरासत को दर्शाती है.
  • कुटियाट्टम, केरल-2008- कुटियाट्टम भारत का सबसे पुराना जीवंत संस्कृत रंगमंच है, जिसे चाक्यार और नंग्यारम्मा निभाते हैं. इसे 2008 में यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया था.
  • वैदिक मंत्रोच्चार, 2008- हजारों वर्षों से चली आ रही वेद मंत्रों की मौखिक परंपरा को भी 2008 में यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया.
  • रामलीला, 2008-भगवान राम की जिस कथा का पारंपरिक मंचन देश भर में दीपावली से पहले किया जाता है, इसे भी 2008 में यूनेस्को ने अपनी सांस्कृतिक लिस्ट में शामिल किया था.
  • राममन, 2009- उत्तराखंड- राममन उत्तराखंड के गढ़वाल सामुदायिक का स्थानीय धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो सलूर डुंगरा गांव में मनाया जाता है. इसे भी 2009 में यूनेस्को की लिस्ट में शामिल किया गया था.
  • छऊ नृत्य, 2010-पश्चिम बंगाल- झारखंड और उड़ीसा की तीन अलग-अलग शैलियों वाले मुखौटा नृत्य को भी यूनेस्को की लिस्ट में शामिल किया गया था.
  • कालबेलिया नृत्य, 2010- राजस्थान-राजस्थान के सपेरा समुदाय का प्रसिद्ध लोक नृत्य कालबेलिया को भी यूनेस्को ने अपनी लिस्ट में शामिल किया था. इस नृत्य को अपनी लय और तेज गतियों के लिए जाना जाता है.
  • मुदियेट्टू, 2010-केरल- केरल मुदियेट्टू मां काली और दारिका की कथा पर आधारित धार्मिक नाटक परंपरा है, जिसे यूनेस्को ने अपनी लिस्ट में शामिल किया था.
  • लद्दाख का बौद्ध जप, 2012- तिब्बती बौद्ध परंपरा से जुड़ें लद्दाख के बौद्ध को भी यूनेस्को ने अपनी लिस्ट में शामिल किया था. यह संतों की ओर से किया जाने वाला पवित्र ग्रंथ का पाठ होता है.
  • मणिपुर का संकीर्तन, 2013- श्री कृष्ण भक्ति पर आधारित मणिपुर के संकीर्तन को भी 2013 में यूनेस्को की लिस्ट में शामिल किया गया था.
  • ठठेरों की धातु कारीगरी, 2014- पंजाब- जंडियाला गुरु में बनाई जाने वाली पारंपरिक पीतल और तांबे की कला होती है, जिसे भी यूनेस्को ने अपनी लिस्ट में शामिल किया है.
  • नवरोज, 2016- पारसी समुदाय का नया साल यानी नवरोज को भी यूनेस्को ने 2016 में अपनी लिस्ट में शामिल किया था.
  • योग, 2016- शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन के मिश्रण योग को भी 2016 में यूनेस्को ने अपनी लिस्ट में शामिल किया था.
  • कुंभ मेला, 2017- दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक समागम जो भारत के चार शहरों में आयोजित किया जाता है. उसे भी 2017 में यूनेस्को ने अपनी लिस्ट में शामिल किया था.
  • कोलकाता की दुर्गा पूजा, 2021- कोलकाता में होने वाली दुर्गा पूजा दुनिया भर में मशहूर है. 2012 में कोलकाता की दुर्गा पूजा को यूनेस्को ने अपनी लिस्ट में शामिल किया था.
  • गुजरात का गरबा, 2023- नवरात्रों के दौरान खेले जाने वाला गुजरात का गरबा दुनिया भर में अपनी अलग छाप छोड़ता है. 2023 में गुजरात में होने वाले गरबा को भी यूनेस्को ने अपनी लिस्ट में शामिल किया था

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल होने के फायदे

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यूनेस्को की इस लिस्ट में शामिल होना किसी भी परंपरा के लिए बड़ा सम्मान माना जाता है. इसके कई फायदे भी होते हैं. यूनेस्को की लिस्ट में शामिल होने पर त्योहार या परंपरा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलती है और दुनिया भर में इसकी चर्चा होती है. इसके अलावा यूनेस्को इन परंपराओं को सुरक्षित रखने, दस्तावेज तैयार करने और आगे की पीढ़ियों तक पहुंचाने में मदद करता है. इससे देश में पर्यटकों की संख्या बढ़ती है, आर्थिक गतिविधियां तेज होती है और स्थानीय कलाकारों को लाभ मिलता है. इसके अलावा जरूरत पड़ने पर यूनेस्को आर्थिक और तकनीकी सहायता भी उपलब्ध कराता है.

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Published at: 10 Dec 2025 05:49 PM (IST)
Tags: Diwali UNESCO Indian festivals UNESCO UNESCO cultural heritage India Diwali intangible heritage
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