Diwali 2025: जैसे-जैसे दिवाली नजदीक आती है, बाजारों में मिठाइयों की रौनक भी बढ़ने लगती है. इस त्योहार में लोग एक-दूसरे को बधाई देने के साथ-साथ मुंह मीठा करने के लिए मिठाइयां बांटते हैं. इन मिठाइयों में सबसे ज्यादा चर्चा में रहती है सोन पापड़ी की. दीवाली या किसी खास मौके पर गिफ्ट के तौर पर इसे देना हर किसी की पहली पसंद बन जाता है. 

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इसकी खासियत यह है कि यह स्वाद में बेहद हल्की, सॉफ्ट और मुंह में रखते ही घुलने वाली मिठाई है. इसके अलावा सोशल मीडिया पर फेस्टिव सीजन आते ही सोन पापड़ी को लेकर मीम्स भी खूब वायरल होते हैं।, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह मिठाई आखिर कहां से आई और इसका इतिहास क्या है?

सोन पापड़ी की उत्पत्ति

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सोन पापड़ी के इतिहास को लेकर कई दावे हैं. कुछ लोग मानते हैं कि यह मिठाई राजस्थान की देन है, तो वहीं कई का कहना है कि इसका जन्म महाराष्ट्र में हुआ था. हालांकि इसके पुख्ता ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं. यह मिठाई तुर्किए की पिस्मानिये से काफी हद तक मिलती-जुलती है, जो अपने हल्के, फाइबरयुक्त और सॉफ्ट बनावट के लिए जानी जाती है. तुर्किए में इस मिठाई को बनाने के लिए बेसन की बजाय आटे का इस्तेमाल होता है.

भारत में सोन पापड़ी की शुरुआत

भारत में सोन पापड़ी बनाने की शुरुआत महाराष्ट्र के पश्चिमी शहरों से हुई मानी जाती है. महाराष्ट्र के लोग सबसे पहले इस मिठाई को तैयार करने लगे और धीरे-धीरे इसका स्वाद पूरे राज्य में लोकप्रिय हो गया था. इसके बाद यह मिठाई अन्य राज्यों जैसे गुजरात, पंजाब और राजस्थान में भी फैल गई. लोगों के बीच इसका स्वाद इतना पसंद किया गया कि देखते ही देखते यह पूरे भारत में त्योहारों की एक पहचान बन गई.

दिवाली में सोन पापड़ी का महत्व

दिवाली पर सोन पापड़ी सिर्फ मिठाई नहीं, बल्कि त्योहार का प्रतीक बन चुकी है. यह न केवल परिवार और मित्रों के बीच स्नेह और बधाई का माध्यम है, बल्कि घर-घर में खुशियों की मिठास भी भरती है. लोग इसे अपने घरों में गिफ्ट के तौर पर रखते हैं और त्योहार के दौरान इसे बांटना अपने सामाजिक और पारंपरिक कर्तव्यों का हिस्सा मानते हैं.

सोन पापड़ी की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जैसे ही दिवाली का मौसम आता है, मिठाई की दुकानों पर इसकी बिक्री तेजी से बढ़ जाती है और सोशल मीडिया पर इसके कई मीम्स भी वायरल होने लगते हैं.

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