Diwali Bonus History: दिवाली आते-आते भारत में कर्मचारियों के लिए एक खुशखबरी और भी मजेदार हो जाती है और वह है दिवाली का बोनस. यह त्योहार की खुशियों को दोगुना कर देता है, क्योंकि कर्मचारियों को उनके मेहनत के एवज में अतिरिक्त भुगतान मिलता है. दिवाली से पहले यह एलान इसलिए किया जाता है, क्योंकि त्योहार धनतेरस से शुरू होकर दीपावली तक चलता है और इस दौरान परिवार के लिए खर्चे काफी बढ़ जाते हैं, जैसे नए कपड़े, मिठाई, तोहफे और त्योहार की तैयारी. सरकार का मकसद भी यही है कि कर्मचारी इस फेस्टिव सीजन में आर्थिक राहत महसूस करें. चलिए जानें कि भारत में इसकी शुरुआत किसने की थी.
दिवाली बोनस की शुरुआत
माना जाता है कि भारत में दिवाली बोनस की परंपरा 1940 में ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हुई थी. उस समय कर्मचारियों को सालाना 52 हफ्तों का वेतन मिलता था, जिसे अचानक 48 हफ्तों में बदलने का फैसला किया गया था. इस बदलाव के खिलाफ कर्मचारियों ने विरोध जताया था. उनके हितों की रक्षा और विरोध को शांत करने के लिए सरकार ने दिवाली बोनस देने का एलान किया था. यह बोनस न केवल कर्मचारियों को आर्थिक राहत देता था, बल्कि त्योहार के अवसर पर मानसिक संतोष भी देता था.
पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट
स्वतंत्र भारत में भी यह प्रथा जारी रही थी. 1965 में भारत सरकार ने पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट पारित किया, जिसने दिवाली बोनस को कानूनी अधिकार प्रदान किया था. इस एक्ट के तहत कंपनियों को अपने कर्मचारियों को मुनाफे का कम से कम 8.33% बोनस देना जरूरी कर दिया गया था. यह बोनस कर्मचारियों की सैलरी और कंपनी के प्रॉफिट से निर्धारित होता है. सेंट्रल गवर्नमेंट के कर्मचारियों को एड-हॉक या नॉन-प्रोडक्टिविटी लिंक्ड बोनस मिलता है, जो लगभग 30 दिन की सैलरी के बराबर होता है.
बोनस का महत्व
आज दिवाली बोनस सिर्फ आर्थिक लाभ ही नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक मूल्य और त्योहार की खुशियों का प्रतीक भी बन गया है. कर्मचारी सालभर इस बोनस का इंतजार करते हैं और इसे अपने व्यक्तिगत और पारिवारिक उत्सव की तैयारी में इस्तेमाल करते हैं.
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