देशभर में दिवाली की तैयारियां जोरों से चल रही है. शहरों की गलियों से लेकर घरों तक सभी जगह दिवाली की लाइट जगमगाने लगी है. वहीं दिवाली मनाने को लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में कई परंपरा और प्रथाएं मौजूद है. लोग अपनी मान्यताओं के साथ सदियों से चली आ रही परंपराओं के अनुसार दिवाली के पर्व को मानते हैं. जहां एक तरफ गुजरात में दिवाली पर लोग एक दूसरे को पटाखों की चिंगारी से नहलाते हैं, वहीं हिमाचल प्रदेश में इस दिन एक-दूसरे लोगों पर पत्थर फेंके जाते हैं. इसी तरह भारत का एक ऐसा और राज्य है, जहां दिवाली के दिन फसलों की शादी कराई जाती है. चलिए आज हम आपको भारत के उस राज्य के बारे में बताते हैं जहां दिवाली के दिन फसलों की शादी कराई जाती है. इस राज्य में दिवाली के दिन कराते हैं फसलों की शादी
दिवाली रोशनी और खुशियों का त्यौहार माना जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में इसे एक अलग ही परंपरा के साथ मनाया जाता है. दरअसल छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में दिवाली को दियारी पर्व कहा जाता है, जो तीन दिन तक चलता है और इसकी सबसे खास रस्म फसलों की शादी होती है. बस्तर के आदिवासी इलाके में दिवाली पर फसल को लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. इस दौरान खेतों में खड़ी फसल की पूजा की जाती है और फसल की कलियों की भगवान नारायण से प्रतीकात्मक शाद कराई जाती है. माना जाता है कि इससे घरों में सुख-समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है. कैसे होता है फसल की शादी का कार्यक्रम?
छत्तीसगढ़ के बस्तर में दियारी पर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है. यहां दिवाली के हर दिन की रस्में अन्न और मवेशियों से जुड़ी होती है, जिसका केंद्र चरवाहों का काम होता है. बस्तर के आदिवासी इलाके में दिवाली के पहले दिन गांव के मुखिया और पुजारी की अनुमति से तारीख तय की जाती है, फिर खेतों में खड़ी फसल की कलियों और नारायण राजा के बीच शादी की रस्में होती है. इसके अलावा इस दिन चरवाहा, मवेशियों के मालिकों के घर जाता है. जहां उसका शराब और सल्फी पिलाकर सम्मान किया जाता है . दूसरे दिन पशुओं को खिलाई जाती है खिचड़ी
बस्तर में दिवाली के दूसरे दिन पशुओं के मालिक मूंग, उड़द और अन्य अनाजों से बनी खिचड़ी पशुओं को खिलाते हैं. इसके साथ ही पशुओं को फूल माला पहनाकर माथे पर लाल टीका लगाया जाता है. वहीं इस दिन भी चरवाहा शाम को पशु मालिकों के घर पहुंचता है और सल्फी पिलाकर पशु मालिक को स्थानीय डांस में शामिल करता है. इस दिन पशु मालिक चरवाहे को दान देते हैं.
तीसरे दिन होती है गोठन पूजा
बस्तर के आदिवासी इलाके में दिवाली के तीसरे दिन गोठन पूजा होती है. गोठन वह जगह होती है, जहां पशु चरने के दौरान आराम करते हैं. इस दिन पशुओं को सजा कर सींगों में कपड़ा बांधा जाता है और वहां पूजा की जाती है. वहीं महिलाएं सूप में धान लेकर गोठान में एक जगह जमा करती है. जिसे चरवाहों की साल भर की मजदूरी मानी जाती है.माना जाता है कि बस्तर में दिवाली का यह पर्व फसल और पशुधन की रक्षा के लिए समर्पित होता है.
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