10 नवंबर 2025 की शाम दिल्ली के पुराने शहर में एक सामान्य-सी शाम अचानक आतंक में बदल गई जब लाल किला मेट्रो स्टेशन के गेट नम्बर 1 के बाहर एक कार में जोरदार धमाका हुआ. यह घटना न सिर्फ एक वाहन तक सीमित रही बल्कि आसपास खड़ी अन्य गाड़ियों में आग लग गई, आस-पास की खिड़कियां थर्रा गईं. विस्फोट की आवाज इतनी तीव्र थी कि पास-पास की दुकानों, गलियों और भवनों में रहने वाले लोगों ने उसे “भूकम्प जैसा झटका” बताया. इस एक पल ने दर्शकों को यह याद दिला दिया कि शहर की ऊंची इमारतें और सौम्य शामें कितनी जल्दी खतरनाक मोड़ ले सकती हैं.
क्यों टूट जाते हैं धमाके के बाद खिड़कियों के शीशे?
जब भी कहीं विस्फोट (Blast) होता है चाहे वो बम ब्लास्ट हो, गैस सिलेंडर का धमाका या औद्योगिक दुर्घटना उसके बाद अक्सर आस-पास की इमारतों की खिड़कियों के कांच टूट जाते हैं. यह बात हर बार लोगों के मन में सवाल पैदा करती है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? आखिर ऐसा क्या होता है कि धमाका कई मीटर दूर हो, फिर भी शीशे बिखर जाते हैं? इसका जवाब विज्ञान की उस बुनियादी प्रक्रिया में छिपा है, जिसे कहा जाता है “Shock Wave” यानी आघात तरंग.
धमाके के बाद बनता है खतरनाक एयर प्रेशन!
जब कोई धमाका होता है, तो विस्फोट के केंद्र (epicentre) से हवा में एक तेज दबाव वाली तरंग फैलती है. यह तरंग साधारण ध्वनि तरंग की तुलना में सैकड़ों गुना तेज और शक्तिशाली होती है. इसे “शॉक वेव” कहा जाता है. इस तरंग की खासियत यह होती है कि यह आसपास के वातावरण का वायुदाब (Air Pressure) अचानक कई गुना बढ़ा देती है.
जैसे ही यह दबाव किसी ठोस सतह जैसे दीवार, दरवाजा या कांच से टकराता है, वह वस्तु उस झटके को झेल नहीं पाती. खासतौर पर कांच (Glass) बहुत नाजुक और कठोर होता है, उसमें लचीलापन नहीं होता. इसलिए वह दबाव को सहन नहीं कर पाता और टूट जाता है.
क्या दिल्ली धमाके में भी टूटे शीशे
बात करें दिल्ली ब्लास्ट की तो आज हुए धमाके में आस पास की इमारतों के कांच और दूसरी चीजें टूटकर बिखर गईं जैसा कि सोशल मीडिया पर दावे किए जा रहे हैं और चश्मदीदों के बयान आ रहे हैं. कई वीडियो इंटरनेट पर हैं जिनमें टूटे खिड़की दरवाजे और बिखरे कांच दिखाए गए हैं जिससे साफ मालूम हो रहा है कि शॉक वेव ने यहां भी अपना विकराल रूप दिखाया है.
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