दिल्ली में लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास कार में बड़ा धमाका हुआ है जिसमें अभी तक 8 लोगों की मौत हो गई है तो वहीं 14 लोग घायल हो गए हैं. प्रशासन इस हमले के पीछे की जांच कर रहा है और पता लगा रहा है कि इस हमले के पीछे की साजिश क्या थी. इसी के चलते कई सुरक्षा एजेंसियां मौके पर पहुंच चुकी हैं. तो चलिए जानते हैं कि किसी भी धमाके के बाद कैसे सुरक्षा एजेंसियां धमाके की जांच कैसे करती हैं और शुरू से लेकर आखिर तक पूरा प्रोटोकोल क्या होता है.
कैसे होती है जांच और क्या होता है प्रोटोकोल
धमाके की सूचना मिलते ही सबसे पहले स्थानीय पुलिस, फायर ब्रिगेड और एंबुलेंस टीमें मौके पर पहुंचती हैं. उनका पहला लक्ष्य होता है लोगों की जान बचाना और आग पर काबू पाना. चारों ओर धुआं, घायल और मलबा फैला होता है. सबसे पहले क्षेत्र को सील किया जाता है, ताकि कोई बाहरी व्यक्ति या मीडिया अंदर न घुस सके और सबूतों से छेड़छाड़ न हो.
मेडिकल टीमें मौके पर घायलों की ट्रायाज (Triage) करती हैं यानी किसे तुरंत अस्पताल भेजना है और किसे वहीं प्राथमिक इलाज देना है. इसी दौरान आसपास की इमारतों को खाली करवाया जाता है ताकि किसी और विस्फोट या गिरावट का खतरा न रहे.
दूसरा चरण: जांच और फॉरेंसिक प्रोसेस
जब बचाव कार्य चल रहा होता है, तब सुरक्षा एजेंसियां और EOD (Explosive Ordnance Disposal) यूनिट्स घटनास्थल की हर इंच स्कैन करती हैं. यह देखने के लिए कि कहीं और कोई सेकेंडरी डिवाइस तो नहीं लगी है. इसके बाद फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स मलबे से धातु के टुकड़े, बारूद के निशान और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट्स इकट्ठा करते हैं. इन सबूतों से यह पता लगाने की कोशिश होती है कि विस्फोट में किस प्रकार का विस्फोटक इस्तेमाल हुआ, उसका स्रोत क्या था और ब्लास्ट का पैटर्न क्या कहता है.
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तीसरा चरण: इंटेलिजेंस और राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय
इस चरण में आता है असली दिमागी खेल. IB, NIA, ATS और स्थानीय पुलिस मिलकर यह विश्लेषण करते हैं कि धमाका किस मकसद से किया गया और उसके पीछे कौन है. सीसीटीवी फुटेज, मोबाइल डेटा, बैंकिंग रिकॉर्ड, ट्रैवल डिटेल्स सबकी जांच होती है. देश के दूसरे हिस्सों में भी अलर्ट जारी किया जाता है ताकि अगर कोई नेटवर्क सक्रिय हो तो समय रहते पकड़ा जा सके.
ऐसे हालातों में अफवाहें सबसे खतरनाक होती हैं. इसलिए प्रशासन की ओर से तुरंत आधिकारिक बयान और हेल्पलाइन नंबर जारी किए जाते हैं. परिवारों को उनके प्रियजनों की स्थिति बताई जाती है. मीडिया को केवल प्रमाणित जानकारी दी जाती है ताकि गलत खबरें फैलकर हालात और न बिगाड़ें.
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