Language Rights In India: हाल ही में दिल्ली के पार्क में हुई एक बड़ी घटना ने भारत में भाषा अधिकारों पर एक नई बहस को छेड़ दिया है. एक वीडियो में कथित तौर पर भाजपा पार्षद रेणु चौधरी एक अफ्रीकी फुटबॉल कोच को यह कहते हुए नजर आ रही है कि उसे 1 महीने के अंदर हिंदी सीखनी होगी. इसी के साथ उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि ऐसा न करने पर उसे पार्क में आने से रोक दिया जाएगा. इसी बीच एक सवाल उठ रहा है कि क्या भारत में किसी को भी कानूनी तौर पर हिंदी बोलने के लिए मजबूर किया जा सकता है या नहीं. आइए जानते हैं क्या है इसका जवाब.

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कानून क्या कहता है 

 भारतीय कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को हिंदी बोलने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. भले ही वह भारतीय नागरिक हो या फिर विदेशी नागरिक. भारत सैकड़ों भाषाओं और बोलियों वाला एक बहुभाषी देश है. भाषा का चुनाव व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अंदर आता है और किसी भी तरह के दबाव का कोई कानूनी आधार नहीं है. 

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भाषा चुनने का पूरा अधिकार 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1)(a)  भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है. इस स्वतंत्रता में उस भाषा को चुनने का पूरा अधिकार शामिल है जिसमें कोई व्यक्ति बात-चीत करता है. किसी को भी कोई खास भाषा बोलने के लिए मजबूर करना इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा. 

भाषाई और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा 

संविधान का अनुच्छेद 29 हर समूह को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने का पूरा अधिकार देता है. यह सुरक्षा भाषाई अल्पसंख्यकों और विदेशी निवासियों पर भी लागू होती है. किसी भाषा को दबाने या फिर थोपने का कोई भी प्रयास सीधे तौर पर इस संवैधानिक सुरक्षा के खिलाफ है.

राज्य अपनी आधिकारिक भाषाएं खुद तय करते हैं 

अनुच्छेद 345 के तहत भारतीय राज्यों को अपनी आधिकारिक भाषाएं चुनने का पूरा अधिकार है. यही वजह है कि तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और बाकी राज्य मुख्य रूप से शासन के लिए क्षेत्रीय भाषाओं का इस्तेमाल करते हैं. न्यायपालिका में भी भाषा एक समान नहीं है. भारत के सर्वोच्च न्यायालय और ज्यादातर उच्च न्यायालय में कार्यवाही अंग्रेजी में होती है. सिर्फ कुछ हाई कोर्ट जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ही हिंदी के इस्तेमाल की इजाजत दी गई है.

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