हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य में चल रहे फर्जी आर्य समाज सोसायटियाें की जांच का निर्देश दिया है. कोर्ट का कहना है कि कई जगह ऐसे संगठन सामने आ रहे हैं, जो नाबालिगों की शादी और बिना कानूनी प्रक्रिया पूरी किए करा रहे हैं. इस मामले ने एक बार फिर आर्य समाज में विवाह की वैधता और प्रक्रिया को लेकर चर्चा तेज कर दी है.
आर्य समाज विवाह क्या है?
आर्य समाज की स्थापना 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी. यह हिंदू सुधार आंदोलन था, जो वेदों के मूल्यों पुर्नजीवित करने पर केंद्रित था. आर्य समाज ने जाति और धर्म से ऊपर उठकर विवाह को बढ़ावा दिया था. 1937 में आर्य विवाह वैधता बताकर इन कानूनों को मान्यता दी गई. इन शादियों में हिंदू रीति रिवाज के तहत सरल तरीके से विवाह होता है. वहीं, दूल्हे की उम्र कम से कम 21 साल और दुल्हन की 18 साल होना जरूरी है.
कौन कर सकता है आर्य समाज में शादी?
हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख लोग सीधे आर्य समाज में शादी कर सकते हैं. वहीं, अन्य धर्म के लोगों शुद्धि संस्कार के जरिए हिंदू धर्म अपनाकर शादी कर सकते है. आर्य समाज में शादी करने के लिए दोनों पक्षों का बालिग होना जरूरी है. वहीं, पहले से शादीशुदा होने के बाद तलाक या पति-पत्नी का मृत्यु प्रमाण देना अनिवार्य होता है.
जरूरी दस्तावेज
आर्य समाज में विवाह के लिए दोनों दोनों पक्षों को कुछ दस्तावेज जमा करने होते हैं. इन दस्तावेजों में 10वीं की मार्कशीट, जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, पैन कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस शामिल होते हैं. इसके अलावा आधार कार्ड, वोटर आईडी, पासपोर्ट इनमें से एक एड्रेस प्रूफ जमा करना होता है. वहीं, दूल्हा-दुल्हन के पासपोर्ट साइज फोटो और दो गवाह पहचान पत्र के साथ होने चाहिए.
शादी की प्रक्रिया
दस्तावेज पूरे होने के बाद तय दिन आर्य समाज मंदिर में वैदिक मित्रों के साथ विवाह होता है. यह पूरा कार्यक्रम लगभग 1 से 2 घंटे में पूरा हो जाता है. वहीं, विवाह के तुरंत बाद मंदिर की ओर से विवाह प्रमाण पत्र दिया जाता है.
रजिस्ट्रेशन क्यों जरूरी?
हालांकि आर्य विवाह वैधाता अधिनियम 1937 के तहत प्रमाण पत्र भारत में मान्य है. लेकिन विदेश में मान्यता और कानूनी मजबूती के लिए स्थानीय ओपन उप पंजीयक कार्यालय में शादी का पंजीकरण कराना जरूरी है.