भारत स्पेस तकनीक में लगातार ऊंचाइयां छू रहा है. देश में अबतक ज्यादातर रॉकेट और मिशन इसरो ही लांच करता था, लेकिन अब इस सेक्टर में प्राइवेट कंपनियों की एंट्री हो चुकी है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद स्थित स्काई रूट एयरोस्पेस के इंफिनिटी कैंपस में देश के पहले प्राइवेट रॉकेट विक्रम-1 का अनावरण किया है.
यह रॉकेट छोटे और माइक्रो सैटेलाइट को अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए तैयार किया गया है और इसे भारत के स्पेस सेक्टर में नए युग की शुरुआत भी माना जा रहा है. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि भारत के पहले प्राइवेट रॉकेट का जमीन से लेकर अंतरिक्ष तक प्रोसेस क्या होता है. रॉकेट कैसे पहुंचता है अंतरिक्ष तक? पृथ्वी से लगभग 100 किलोमीटर ऊपर जहां एनवायरमेंट खत्म होने लगता है. वहीं से अंतरिक्ष की शुरुआत मानी जाती है. इस सीमा को कार्मन लाइन कहा जाता है. कोई भी रॉकेट जब इस ऊंचाई को पार कर लेता है और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ पर्याप्त गति हासिल कर लेता है. तभी वह अंतरिक्ष में पहुंच पाता है. वहीं सैटेलाइट को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के लिए लगभग 7.8 किलोमीटर प्रति सेकंड यानी करीब 28,000 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार चाहिए. इतनी तेज गति सिर्फ रॉकेट ही दे सकता है. वहीं रॉकेट के पीछे से तेजी से गैस बाहर निकलती है और न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार रॉकेट को आगे की दिशा में धक्का मिलता है इसी धक्के को थ्रस्ट कहा जाता है. कैसे उड़ान भरता है रॉकेट? रॉकेट अपने साथ दो चीजे फ्यूल और ऑक्सिडाइजर लेकर चलता है. ऊंचाई पर हवा न होने के कारण रॉकेट को ऑक्सीजन बाहर से नहीं मिलती इसलिए वह खुद ऑक्सीजन लेकर चलता है. इसके इंजन में फ्यूल और ऑक्सिडाइजर के मिलने से अत्यधिक गर्म गैसे बनती है जो पीछे की और तेजी से निकलती है और रॉकेट को ऊपर की ओर धक्का देती है. वहीं रॉकेट को कहीं हिस्सों में बनाया जाता है जिन्हें स्टेज कहा जाता है. रॉकेट का सबसे नीचे वाला स्टेज सबसे ज्यादा ईंधन लिए होता है और शुरुआत में सबसे ज्यादा थ्रस्ट देता है. ईंधन खत्म होते ही यह हिस्सा गिरा दिया जाता है ताकि बाकी का रॉकेट हल्का हो जाए और ज्यादा गति पा सके. इस तरह दूसरा और तीसरा स्टेज भी अपना काम पूरा होने पर अलग हो जाता है. लास्ट में बचा हुआ ऊपरी हिस्सा पेलोड यानी सैटेलाइट को उसकी कक्षा में स्थापित करता है. कैसा है भारत का पहला प्राइवेट रॉकेट? स्काई रूट एयरोस्पेस की तरफ से विकसित विक्रम-1 भारत का पहला प्राइवेट रॉकेट है. इसका नाम इसरो के संस्थापक डॉ विक्रम साराभाई के सम्मान में रखा गया है. यह छोटे और माइक्रो सैटेलाइट को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए तैयार किया गया है. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस रॉकेट का अनावरण करते हुए कहा कि भारत अब स्पेस सेक्टर में उन कुछ देशों की कतार में खड़ा है जिनके पास प्राइवेट तौर पर विकसित और ऑर्बिटल-क्लास लॉन्च व्हीकल बनाने की क्षमता है. वहीं विक्रम-1 रॉकेट की ऊंचाई 20 मीटर, चौड़ाई 1.7 मीटर,थ्रस्ट 1200 केएन है. वहीं यह पूरा रॉकेट हल्की और मजबूत कार्बन फाइबर तकनीक से बना है. इस रॉकेट के कई हिस्से 3D प्रिंटेड तकनीक से तैयार किए गए हैं. यह रॉकेट एक ही उड़ान में कई सैटेलाइट को अलग-अलग कक्षा में स्थापित करने में भी सक्षम है. विक्रम-1 को तेजी से असेंबल और लॉन्च किया जा सकता है. जिससे यह छोटे सैटेलाइट बाजार के लिए बहुत उपयोगी माना जा रहा है.
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