एक ऐसा युद्धपोत जो समंदर की लहरों पर सिर्फ तैरता नहीं, बल्कि दुनिया की रणनीतिक तस्वीर को बदलने की ताकत रखता है. चीन ने आखिरकार अपने सबसे एडवांस्ड विमानवाहक पोत फुजियान को सेवा में उतार दिया है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मौजूदगी में हुआ यह लॉन्च सिर्फ एक नौसेना समारोह नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति-संतुलन की दिशा में चीन की खुली चुनौती है. सवाल अब यह है कि क्या हिंद महासागर की लहरें अब नई दहाड़ सुनने वाली हैं और यह किन देशों को खुली चुनौती है?
फुजियान की एंट्री से हिली दुनिया की नौसेना रणनीति
बीजिंग के एक भव्य समारोह में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जब फुजियान एयरक्राफ्ट कैरियर को आधिकारिक रूप से नौसेना में शामिल किया, तो यह पल चीन के इतिहास का सबसे अहम सैन्य मील का पत्थर बन गया है. सरकारी मीडिया के मुताबिक, यह चीन का अब तक का सबसे एडवांस्ड विमानवाहक युद्धपोत है, जिसमें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट सिस्टम लगा है. यह वही तकनीक है जो अमेरिका जैसे देशों की नौसेना को तेजी और शक्ति देती है. इस तकनीक से विमान पारंपरिक स्टीम कैटापल्ट की तुलना में कहीं अधिक तेज और सटीक तरीके से उड़ान भर सकते हैं.
फुजियान चीन का तीसरा विमानवाहक पोत है, लेकिन तकनीकी दृष्टि से यह अब तक का सबसे शक्तिशाली है. इससे पहले चीन के पास लियाओनिंग और शानडोंग जैसे कैरियर थे पर वे रूसी तकनीक पर आधारित थे. फुजियान पूरी तरह चीन में डिजाइन और निर्मित किया गया है. यानी यह ‘मेड इन चाइना’ नौसैनिक प्रभुत्व की असली झलक है.
किन देशों के लिए है खतरा?
ताइवान जलडमरूमध्य और दक्षिण चीन सागर में बढ़ते तनाव के बीच यह कदम अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए एक स्पष्ट संदेश है. चीन अब सिर्फ क्षेत्रीय नहीं, बल्कि वैश्विक समुद्री शक्ति बनने की ओर अग्रसर है. इस लॉन्च ने जापान, दक्षिण कोरिया और वियतनाम जैसे देशों की भी चिंता बढ़ा दी है, जो पहले से ही चीन की नौसैनिक गतिविधियों को लेकर सतर्क हैं.
अमेरिकी को सीधी चुनौती
फुजियान के कमीशन होने से अमेरिका की दशकों पुरानी नौसैनिक बढ़त को अब सीधी चुनौती मिलती दिख रही है. चीन के इस तीसरे कैरियर की तैनाती से उसकी पहुंच पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र तक बढ़ जाएगी. इसका मतलब है कि गुआम, जापान और ताइवान के आस-पास के इलाकों में अब चीन की मौजूदगी पहले से कहीं ज्यादा मजबूत होगी.
हालांकि अमेरिका अभी भी 11 न्यूक्लियर कैरियर के साथ दुनिया की सबसे बड़ी नौसैनिक शक्ति है, लेकिन चीन की यह चाल एक चेतावनी है कि आने वाले वर्षों में ताकत का यह संतुलन बदल सकता है.
भारत के लिए नई रणनीतिक चुनौती
भारत के लिए यह विकास एक रणनीतिक चिंता का विषय है. फुजियान भविष्य में हिंद महासागर क्षेत्र में सक्रिय हो सकता है, जहां चीन पहले ही अपनी ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति के तहत ग्वादर (पाकिस्तान) और हंबनटोटा (श्रीलंका) जैसे बंदरगाहों पर अपनी मौजूदगी बढ़ा चुका है. अगर फुजियान जैसे पोत वहां तैनात किए गए, तो यह भारत की समुद्री बढ़त के लिए गंभीर चुनौती हो सकती है.
भारत का तीसरा विमानवाहक पोत IAC-2 अब भी मंजूरी के इंतजार में है, जिससे नौसैनिक असंतुलन और बढ़ सकता है. वहीं भारत के दो कैरियर INS विक्रमादित्य और INS विक्रांत फिलहाल प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन चीन के तीन पोतों की तुलना में यह संख्या कम है.
भविष्य की चुनौती और वैश्विक प्रभाव
फुजियान का कमीशन होना तत्काल युद्ध का संकेत नहीं, बल्कि आने वाले दशकों के रणनीतिक बदलाव का इशारा है. चीन अब अपनी सैन्य शक्ति को खुले तौर पर वैश्विक मंच पर दिखाने लगा है. यह कदम अमेरिका, भारत और इंडो-पैसिफिक देशों के लिए एक चेतावनी है कि आने वाले समय में समुद्र की गहराइयों में भी शक्ति संतुलन का खेल और जटिल होने वाला है.
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