Chenab Rail Bridge: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के सबसे ऊंचे 'चिनाब ब्रिज' का उद्धाटन किया है. कश्मीर में इस तरह के बड़े रेल इंफ्रास्ट्रक्चर को आकार देने में 133 सालों का समय लग गया. चिनाब नदी पर बना यह ब्रिज अपने आप में आधुनिक इंजीनियरिंग का एक उदाहरण है कि कैसे असंभव सा दिखने वाले काम को भी संभव किया जा सकता है.


रिपोर्ट्स के अनुसार, यह ब्रिज पेरिस में स्थित एफिल टावर से भी ऊंचा है और इसको इतना मजबूत बनाया गया है कि यह  40 किलो  विस्फोटक और 8 रिक्टर स्केल के भूकंप को आसानी से झेल सकता है. चलिए, आपको बताते हैं कि इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं के इस ब्रिज के साथ क्या कनेक्शन थे. 


इंदिरा गांधी से कनेक्शन


दरअसल इस ब्रिज को लेकर एक वाकया भारत और पाकिस्तान से भी जुड़ा है. 1965 के जंग में भारतीय सेनाओं को बार्डर के इलाकों तक पहुंचने में दिक्कत का सामना करना पड़ा था. इंदिरा गांधी ने इस समस्या के निदान के लिए रेल नेटवर्क को आगे बढ़ाने का फैसला किया, जिसका फायदा सेना और लोगों दोनों को हो. अर्ली टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1969 को कठुआ से जम्मू रेलवे लाइन का विस्तार करने की नींव रखी गई, जिसकी जिम्मेदारी नॉर्दर्न रेलवे को दी गई.


इस तरह कठुआ से जम्मू के बीच 76 किमी लंबी रेल बिछाई गई, जो पठानकोट-कठुआ ब्लॉक से जम्मूतवी तक जाती थी. इस प्रोजेक्ट की अहमियत इसी बात से लगाई जा सकती है कि इसको 1971 के वॉर के दौरान भी बंद नहीं किया गया. साल 1972 तक इस रेल लाइन का काम पूरा कर लिया गया और इस पर मालगाड़ी के ट्रायल के बाद  2 दिसंबर 1972 को नई दिल्ली से जम्मू तक एक यात्री ट्रेन चलाई गई. रिपोर्ट के अनुसार, इंदिरा गांधी ने जम्मू-उधमपुर रेलवे लाइन की नींव रखी थी, जिसको 5 साल में पूरा किया जाना था लेकिन इसको पूरा करने में 21 साल का समय लग गया. 


अटल बिहारी वाजपेयी का रोल 


कारगिल वॉर के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने USBRL रेल प्रोजेक्ट को सेंट्रल प्रोजेक्ट के अंदर डाल दिया और इस तरह इस प्रोजेक्ट पर जितना भी खर्च हुआ उसको केंद्र सरकार ने उठाया. साल 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने कश्मीर घाटी को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने के लिए चिनाब ब्रिज बनाने का फैसला लिया था, जिसे साल 2009 तक बन जाना था, लेकिन प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं हो पाया. 


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