Bihar Assembly Elections: चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव और कुछ अन्य राज्यों में होने वाले उपचुनाव में पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. दरअसल चुनाव आयोग ने 470 अधिकारियों को सेंट्रल पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किया है. इनमें 320 अधिकारी भारतीय प्रशासनिक सेवा, 60 भारतीय पुलिस सेवा और 90 बाकी सेवाओं जैसे कि आईआरएस, आईआरएएस और आईसीएएस से हैं. आज हम जानेंगे कि बिहार विधानसभा चुनाव में किन राज्यों के आईएएस की ड्यूटी नहीं लगेगी.

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कौन से राज्यों के अधिकारी नहीं होंगे शामिल 

दरअसल निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग उस राज्य के आईएएस अधिकारियों को नियुक्त नहीं करता है जहां पर चुनाव हो रहे हैं. इससे यह पक्का होता है कि स्थानीय राजनीतिक संबंध या फिर पहले के प्रशासनिक अनुभव चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित ना कर पाएं. बिहार विधानसभा चुनाव के लिए बिहार को छोड़कर, झारखंड और पड़ोसी क्षेत्रों जैसे बाकी राज्यों के अधिकारियों को चुनाव प्रक्रिया की निगरानी के लिए तैनात किया जाएगा. 

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तैनाती के लिए कैडर आधारित नियम 

राज्यों में आईएएस अधिकारियों की तैनाती कैडर आधारित नियमों के मुताबिक ही की जाती है. हर आईएएस अधिकारी को एक राज्य कैडर आवंटित किया जाता है. लेकिन इसी के साथ वे केंद्र सरकार के अधीन भी काम करते हैं. ताकि चुनाव आयोग उन्हें राज्य के बाहर चुनाव ड्यूटी के लिए बुला सके. इसी के साथ अधिकारियों को उनके गृह जिले या फिर ऐसे जिलों से बाहर रखा जाता है जहां पर उन्होंने काफी लंबे वक्त तक काम किया हो. 

दरअसल पर्यवेक्षक चुनाव की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करते हैं. आयोग की तरफ से आंख और कान बन कर काम करते हैं और समय-समय पर जरूरत के मुताबिक आयोग को रिपोर्ट भेजते हैं. आपको बता दें कि बिहार विधानसभा चुनाव के अलावा जम्मू कश्मीर, राजस्थान, झारखंड, तेलंगाना, पंजाब, मिजोरम और उड़ीसा में भी उपचुनाव होने जा रहे हैं.

सेंट्रल पर्यवेक्षकों की भूमिका और जिम्मेदारी

सेंट्रल पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त अधिकारी निष्पक्ष चुनाव करने में एक अहम भूमिका निभाते हैं. उनका काम चुनाव प्रक्रिया की देखरेख करना, आचार संहिता का पालन करवाना, शिकायतों की जांच करना और साथ ही वोटिंग की निगरानी करना है. 

बाकी राज्यों से आईएएस अधिकारियों को तैनात करके चुनाव आयोग बिहार में चुनाव प्रक्रिया को काफी ज्यादा मजबूत कर रहा है. इससे निष्पक्षता तो साबित होती है साथ ही लोगों का चुनावी प्रणाली में विश्वास भी बढ़ता है.

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