Indian Air Force: रक्षा प्रमुख जनरल अनिल चौहान ने हाल ही में भारत चीन के बीच 1962 के युद्ध के बारे में एक बयान दिया है. उन्होंने कहा कि अगर युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना का इस्तेमाल किया जाता तो चीनी सेना की आगे बढ़ाने की गति धीमी हो सकती थी. हालांकि उस समय आईएएफ की तैनाती को भड़काऊ माना जा सकता था लेकिन जनरल चौहान ने कहा कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में ऐसी चिंताएं लागू नहीं होती. लेकिन इसी बीच सवाल यह उठता है कि क्या सच में 1962 में भारतीय वायु सैना चीन की तुलना में मजबूत थी या नहीं. आइए जानते हैं.

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1962 में भारतीय वायु सेना

1962 में भारतीय एयरफोर्स चीन की तुलना में तकनीकी या संख्यात्मक रूप से ठीक स्थिति में नहीं थी. भारत के पास 500 से ज्यादा विमान में लगभग 22 फाइटर स्क्वाड्रन थे. इनमें हंटर mk56 फाइटर बॉम्बर, गनेट इंटरसेप्टर और फ्रांसीसी निर्मित मिस्टेयर और फॉगर ग्राउंड अटैक विमान शामिल थे. यह विमान सिर्फ परिवहन और बुनियादी ढांचे के समर्थन के लिए इस्तेमाल में लाए जाते थे.

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वहीं अगर चीन की बात करें तो उसके पास मिग 15, मिग 17, मिग 19 फाइटर और आईएल 28 मीडियम रेंज बॉम्बर थे. तकनीकी रूप से ये विमान काफी ज्यादा बेहतर थे.  अब अगर दोनों देशों की वायु शक्ति को समझे तो यह पता चलता है कि भारतीय वायु शक्ति मुख्य रूप से आक्रामक अभियानों के बजाय सहायता भूमिका तक ही समिति थी. भारत के एयरक्राफ्ट के विपरीत चीन के एयरक्राफ्ट ज्यादा आधुनिक थे. साथ ही भारत सरकार ने 1962 के युद्ध में इंडियन एयर फोर्स का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया था क्योंकि यह डर था कि इससे युद्ध और बढ़ सकता है. आईएएफ का इस्तेमाल सिर्फ रसद आपूर्ति, सैनिकों को पहुंचाने और टोही मिशनों के लिए किया गया था. इसी के साथ ऊंचे पहाड़ी इलाकों में भारत का बुनियादी ढांचा और संचार नेटवर्क भी कमजोर था. यही वजह थी कि सैन्य संचालन बाधित हुआ था.

भारत की वायु शक्ति

आज के समय में भारत की वायु सेना काफी ज्यादा मजबूत है. भारत के पास ईंधन भरने वाले विमान भी है. इसी के साथ लड़ाकू विमान में भारत के पास राफेल, सुखोई एसयू-30एमकेआई, और स्वदेशी एलसीए तेजस है. इसी के साथ परिवहन विमान में भारत के पास सी 17 ग्लोबमास्टर, सी 130 जे सुपर हरक्यूलिस है. इतना ही नहीं बल्कि हेलीकॉप्टर में भारत के पास एमआई-17 और चिनूक जैसे बहु भूमिका वाले हेलीकॉप्टर हैं.

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