Caste Census: पिछले काफी समय से विपक्ष की ओर से जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया जा रहा था. इस पर अब देश की मोदी सरकार ऐतिहासिक कदम उठाया है और आगामी जनगणना में जातिगत जनगणना को भी शामिल करने का निर्णय लिया गया है. बीते दिन हुई कैबिनेट समिति की बैठक में यह अहम फैसला लिया गया. देश में आखिरी बार जनगणना 2011 में हुई थी. लेकिन क्या आपको मालूम है कि आजादी से पहले देश जातिगत जनगणना कब और कहां हुई है. आज इसके बारे में बताते हैं.
भारत में सबसे पहले कब और कहां हुई थी जाति जनगणना
भारत में इससे पहले साल 2011 में जनगणना हुई थी. लेकिन आज से करीब 94 साल पहले 1931 में भी जातिगत जनगणना नॉर्थ वेस्टर्न प्रॉविंसेज में की गई थी. इसके कमिश्नर जेएस हटन हुआ करते थे. वहीं देश में पहली बार साल 1881 में जनगणना की गई थी, तब से हर 10 साल पर जनगणना होती है. 1931 में जब जनगणना हुई, उस वक्त भारत की जनसंख्या 27.1 करोड़ बताई गई थी. इसमें ओबीसी की संख्या 52 फीसदी थी. उस वक्त 1980 में इसी आधार पर ओबीसी को शिक्षा और नौकरी में 27% आरक्षण देने की बात हुई थी.
अंग्रेज क्यों कराते थे जनगणना
1931 में देश में कुल जातियों की संख्या 4147 निकलकर सामने आई थी. इससे पहले जब 1901 में जनगणना हुई तब बताया गया था कि देश में 1646 जातियां हैं. ये जनगणना ब्रिटिश शासनकाल में हुई थी. जनगणना कराने का उनका मकसद हुआ करता था. वो इस डेटा का इस्तेमाल नौकरी में भर्तियों, शिक्षा, कानून व्यवस्था, सामाजिक संरचना आदि के लिए करते थे. अंग्रेज वर्ण व्यवस्था और पेशे के आधार पर अलग-अलग जाति समूह बनाते थे और इसमें कई जातियों को शामिल किया जाता था.
अब क्या होगा जातिगत जनगणना का असर
इस बार होने जा रही जातिगत जनगणना का बड़ा असर हो सकता है. सबसे पहले तो इससे ओबीसी वर्ग के लोगों की संख्या पता चलेगी, जो कि 2011 की जनगणना में पता नहीं चल पाई थी. वहीं ओबीसी की संख्या सामने आने के बाद सामाजिक न्याय से जुड़ी नीतियों और संसाधन वितरण को नई दिशा मिल सकेगी. जातिगत जनगणना से राजनीतिक बहस भी तेज हो सकती है, क्योंति इसका असर चुनाव के समीकरणों पर देखने को मिलेगा.
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