पाकिस्तान से तनाव के बीच दोनों देशों के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे हैं. कहा जा रहा है कि युद्ध की परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं और दोनों देशों में युद्ध हो सकता है. ऐसे में केंद्र सरकार ने कई राज्यों के मॉक ड्रिल के लिए कहा है. गृह मंत्रालय का कहना है कि 7 मई को सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल करने के लिए कहा है. दरअसल यह आदेश सभी राज्यों को हवाई हमले से बचने के लिए बचाने के लिए दिया गया है. इससे पहले इस तरह की मॉक ड्रिल 54 साल पहले 1971 के युद्ध के वक्त देखने को मिली थी. उस वक्त भी भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था. लेकिन क्या आपको पता है कि युद्ध की परिस्थिति में कोई सेना का जवान जंग लड़ने से मना कर सकता है. चलिए जानें.
क्या युद्ध लड़ने से मना कर सकते हैं सैनिक
सेना के जवान देश के बॉर्डर पर आम लोगों की हिफाजत के लिए होते हैं. वे अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचाते हैं. युद्ध हो या फिर कोई प्राकृतिक आपदा सेना के जवान मदद करने से कभी भी पीछे नहीं हटते हैं. लेकिन क्या जंग के दौरान कोई सैनिक युद्ध लड़ने से मना कर सकता है. इसका जवाब है नहीं, सेना के जवान जंग लड़ने से मना नहीं कर सकते हैं, क्योंकि वे अपनी ड्यूटी का पालन करने के लिए बाध्य होते हैं. सेना में शामिल होने के दौरान वो इस बात से सहमत होते हैं कि वे देश की रक्षा के लिए जंग लड़ेंगे.
विवेकपूर्णं आपत्तिकर्ता की परिस्थिति
हालांकि कुछ परिस्थितियां ऐसी हो सकती हैं, जब वे जंग लड़ने से मना करें. विवेकपूर्णं आपत्तिकर्ता, यह एक ऐसा शख्स होता है जो कि अपने धर्म या विवेक के आधार पर सैन्य सेवा से इनकार कर सकता है. वो इसलिए मना करते हैं, क्योंकि वे इसके नैतिक या धार्मिक सिद्धांत का विरोध करते हैं. सैनिकों को ड्यूटी का पालन करना अनिवार्य होता है, क्योंकि वे सेना में शामिल होने के दौरान यह कसम खाते हैं कि देश की रक्षा के लिए अपनी जान दे सकते हैं.
अपवाद की स्थिति में
कुछ अपवाद हो सकते हैं, जब सैनिक ड्यूटी के लिए मना करे और उसे इसकी अनुमति दी जाती है. जैसे कि अगर वो बीमार या घायल है. या फिर कुछ अन्य जरूरी कारण है तो उसे ड्यूटी से छुट्टी दी गई हो. कुल मिलाकर कोई सैनिक जंग लड़ने के लिए मना नहीं कर सकता है.
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