कल्पना कीजिए देश की सबसे ऊंची विधायी संस्था, जहां हर शब्द इतिहास की दीवारों पर छप जाता है, वहां किसी आम इंसान की आवाज कैसे पहुंच सकती है? यह सवाल जितना सरल दिखता है, उतना ही जटिल रास्तों से होकर गुजरता है. राजनीति की परतों, सांसदों की प्राथमिकताओं और संसदीय नियमों के बीच कहीं एक दरवाजा ऐसा भी है, जो आम नागरिक के लिए खुलता जरूर है, पर दिखाई कम देता है. आखिर क्या वाकई कोई आम आदमी भी संसद में किसी विषय पर चर्चा शुरू करवा सकता है? कहानी दिलचस्प है और ट्विस्ट उससे भी ज्यादा है, पर समझ लेते हैं.
भारत की संसद को अक्सर एक ऐसी जगह माना जाता है जहां केवल सांसदों की आवाजें गूंजती हैं, लेकिन असलियत इससे कहीं ज्यादा परतदार है. आम जनता भले सीधे संसद के भीतर जाकर सवाल न पूछ सके, लेकिन भारतीय लोकतंत्र का ढांचा इतना बंद भी नहीं है कि नागरिक की आवाज वहां तक पहुंच ही न सके. असल सवाल यह है कि यह आवाज संसद के भीतर कैसे पहुंचती है, कौन इसे आगे बढ़ाता है और किन औपचारिक रास्तों से गुजरती है.
नागरिकों की आवाज का असली दरवाजा कौन?
संसद के नियम साफ कहते हैं कि चर्चा, सवाल, प्रस्ताव और बहस केवल सांसद ही उठा सकते हैं, लेकिन इन्हीं सांसदों को जनप्रतिनिधि इसलिए कहा जाता है ताकि वे जनता के मुद्दे को संसद तक पहुंचा सकें. आम नागरिक चाहे तो अपने क्षेत्र के सांसद को पत्र, ईमेल, ज्ञापन या जनता दरबार के जरिए, अपना मुद्दा दे सकता है. अगर सांसद उसे गंभीर मानते हैं, तो वे प्रश्नकाल में सरकार से सवाल पूछ सकते हैं, शून्यकाल में मुद्दा उठा सकते हैं, स्पेशल मेंशन देकर चर्चा की मांग कर सकते हैं, किसी बिल या बहस के दौरान मुद्दा रख सकते हैं, यानी संसद का दरवाजा जनता के लिए सीधे नहीं, पर प्रतिनिधि के जरिए खुला जरूर है.
मंत्रालयों और पीएमओ तक पहुंचे मुद्दे
आज का शासन तंत्र इस तरह बना है कि मंत्रालयों को मिलने वाली लाखों शिकायतें, सुझाव और जन समस्याएं संसद में पूछे गए सवालों का आधार बनती हैं. PG Portal, पीएमओ पोर्टल, या मंत्रालय को भेजा गया कोई भी तथ्यपरक मुद्दा संसद में जवाब देते समय शामिल किया जा सकता है. कई बार मंत्री खुद उस पर वक्तव्य देते हैं.
कानून बनने से पहले जनता से राय
जब संसद कोई नया कानून बनाती है और उसे जांच के लिए किसी स्थायी समिति को भेजती है, तो आम जनता से राय मांगी जाती है. आपका भेजा सुझाव सांसदों की फाइलों तक पहुंचता है. कमेटी की सिफारिशों में शामिल हो सकता है और कई बार इसी सुझाव के आधार पर किसी क्लॉज को बदला, जोड़ा या हटाया भी जाता है.
संसद तक पहुंचने वाले आधुनिक रास्ते
आज के समय में कई मुद्दे RTI में खुलासे, कोर्ट में दायर जनहित याचिका, या बड़े जन अभियान के जरिए सीधे ही राजनीतिक बहस में बदल जाते हैं. जब कोई मुद्दा सुर्खियों में आता है, तो सांसद उसे शून्यकाल या बहस में उठाने के लिए मजबूर हो जाते हैं. यानी जनता सीधे भले न बोले, पर आवाज इतनी तेज हो कि संसद को सुननी पड़े, यह भी लोकतंत्र का ही एक तरीका है.
क्या कोई आम नागरिक खुद जाकर संसद में बोल सकता है?
इसका साफ जवाब है नहीं. संसद में बोलने, नोटिस देने और चर्चा की मांग करने का अधिकार केवल सांसदों को है. नागरिक न गैलरी से बोल सकता है, न बहस का हिस्सा बन सकता है. लेकिन वह मुद्दा जरूर उठा सकता है जिसे सांसद बहस में बदल सकते हैं. यानी सीधा रास्ता भले ही बंद है, लेकिन आवाज के लिए कई खिड़कियां खुली हैं.