ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान को नाको चने चबाने पर मजबूर करने वाली ब्रह्मोस मिसाइल अब दुनिया के ताकतवर देशों के टेंशन बन गई है. यह मिसाइल पलक झपकते ही दुश्मन के किसी भी ठिकाने को टारगेट करने की क्षमता रखती है. ऐसे में ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने के लिए एक के बाद एक कई देश लाइन में लगे हुए हैं. बता दें, ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने वाला पहला देश फिलिपींस था, जिसने 2022 में इस हथियार प्रणाली की तीन खेप खरीदीं. अब इंडोनेशिया भी ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने के लिए बातचीत की टेबल पर है.
फिलिपींस और इंडोनेशिया ही नहीं, दुनिया के कुछ अन्य देश भी ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम में अपनी दिलचस्पी दिखा चुके हैं. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत किसी को भी ब्रह्मोस मिसाइल बेच सकता है? क्या इसके खरीदारों में रूस के दुश्मन देश भी हो सकते हैं? चलिए जानते हैं इसको लेकर क्या डील है...
पहले जान लीजिए ब्रह्मोस की ताकत
दुनियाभर की ताकतवर मिसाइलों की एक लिस्ट तैयार की जाए तो उसमें ब्रह्मोस मिसाइल का जिक्र जरूर होगा. यह दुनिया की एकमात्र सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जो ध्वनि की रफ्तार से करीब 3.5 गुना तेजी से उड़ती है, जो 2.8 से 3.5 मैक है. यानी इस मिसाइल को पकड़ पाना किसी भी रडार के लिए मुश्किल टास्क है. इस मिसाइल की रेंज 290 किमी है, जिसे बढ़ाकर 450 किमी तक किया गया है. हाल ही में इसकी रेंज को 900 किमी तक करने की मंजूरी मिल चुकी है.
क्या रूस के दुश्मनों को बेच सकता है भारत?
बता दें, ब्रह्मोस मिसाइल भारत और रूस का एक ज्वाइंट वेंचर है. ब्रह्मोस का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी को मिलाकर रखा गया था. 1998 में भारत की DRDO और रूस की NPO Mashinostroyeniya के बीच एक डील हुई थी, जिसके तहत ब्रह्मोस एयरोस्पेस की स्थापना की गई थी. यही कंपनी ब्रह्मोस के उत्पादन का काम देखती है और इसकी तकनीक में भारत और रूस की 50-50 फीसदी हिस्सेदारी है. ऐसे में भारत या रूस को किसी भी देश को इस मिसाइल को बेचने से पहले एक-दूसरे से अनुमति लेनी होती है, जहां तक रूस के दुश्मनों की बात है तो यह कूटनीतिक तौर पर सही कदम नहीं होगा.
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