चुनाव आयोग की कड़ी मेहनत के पीछे BLO का हाथ होता है. वह न केवल वोटरों की पहचान करता है, बल्कि पूरे लोकतंत्र की आधारशिला बन जाता है. स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के दौर में इसी BLO पर सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है. काम का दबाव, लाखों वोटर्स की लिस्ट और सरकारी नियमों के बीच, सवाल उठता है BLO को इस सबके लिए क्या मिलता है? क्या SIR जैसी अतिरिक्त जिम्मेदारी के लिए अलग वेतन मिलता है, या यह सिर्फ नाम की मेहनत है? आइए जान लेते हैं.
एक बीएलओ के पास कितने वोटर्स का काम
देशभर में चुनाव आयोग का SIR प्रोसेस शुरू होते ही, BLO यानी बूथ लेवल ऑफिसर एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं. BLO वह कर्मचारी है जो हर वोटर की पहचान करता है, फॉर्म सत्यापित करता है और तय करता है कि कौन उस बूथ का वॉटर है या नहीं. इस जिम्मेदारी का पैमाना इतना बड़ा है कि एक BLO के पास लगभग 950 से 1000 वोटर लिस्ट का काम होता है. देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 5.32 लाख BLO इस काम में जुटे हुए हैं.
बीएलओ पर काम का कितना दबाव?
BLO का काम सिर्फ लिस्ट भरना या फॉर्म चेक करना नहीं है. उन्हें हर रिकॉर्ड की सटीकता सुनिश्चित करनी होती है, किसी भी गलती या चूक का असर पूरे चुनाव की पारदर्शिता पर पड़ सकता है. यही वजह है कि कई BLO काम के तनाव, दबाव और जिम्मेदारी के कारण चर्चा में आते हैं, कभी-कभी नौकरी छोड़ने या तनाव जैसी खबरों के कारण.
बीएलओ की सैलरी और SIR के लिए कितना पैसा मिलता है?
अब सवाल यह उठता है कि इस मेहनत का मेहनताना कितना है. BLO को चुनाव आयोग की ओर से वार्षिक मानदेय के रूप में 12,000 रुपये मिलते हैं. यह पहले 6,000 रुपये था, जिसे अब दोगुना किया गया है. लेकिन SIR जैसी अतिरिक्त जिम्मेदारी के लिए उन्हें अलग प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है. रिपोर्ट्स के अनुसार, SIR के लिए प्रत्येक BLO को 2,000 से 6,000 रुपये तक का अतिरिक्त इंसेंटिव मिलता है.
हर वोटर की पहचान सही हो
चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि इलेक्टोरल रोल मशीनरी में BLO की भूमिका बेहद अहम होती है. ERos, AEROs, BLO सुपरवाइजर और BLOs मिलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि हर वोटर की पहचान सही और पारदर्शी हो. BLO सुपरवाइजर के काम में भी बढ़ोतरी की गई है, ताकि इलेक्टोरल रोल तैयार करने और उसमें बदलाव करने में उनका काम सही तरीके से हो सके.
BLOs की सैलरी बढ़ाने और उन्हें SIR के लिए इंसेंटिव देने का उद्देश्य सिर्फ वित्तीय नहीं है. यह उन्हें प्रोत्साहित करने और काम की गंभीरता को समझाने का तरीका भी है. आयोग ने बताया कि बिहार से शुरू होने वाले SIR प्रोसेस के लिए यह व्यवस्था लागू की गई है, और इसे जल्द ही अन्य राज्यों में भी लागू किया जाएगा.
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