Bilaspur Train Accident: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में लाल खदान के पास एक बड़ा हादसा हो गया. दरअसल हावड़ा रूट पर चल रही है एक यात्री ट्रेन एक मालगाड़ी से आमने-सामने टकरा गई. इस टकराव की वजह से कई डिब्बे पटरी से उतर गए. इस हादसे की वजह से कई लोगों के मरने की भी खबर है. इसी बीच आइए जानते हैं कि रेलवे का रिलीफ सिस्टम कैसे काम करता है और क्या होती है बचाव प्रकिया.

Continues below advertisement

तत्काल रिपोर्टिंग और सूचना प्रवाह 

जब भी कोई दुर्घटना होती है तो संचार की शुरुआत ट्रेन चालक दल और पास के स्टेशन या फिर मंडल नियंत्रण कक्ष के बीच से होती है. गार्ड या फिर लोको पायलट तुरंत ट्रैक साइड टेलीफोन सॉकेट, सेटेलाइट फोन या फिर वायरलेस संचार का इस्तेमाल करके घटना की सूचना देते हैं. इसके बाद मंडल नियंत्रण कार्यालय केंद्रीय कमान सेंटर बन जाता है. मुख्य नियंत्रक या फिर परिचालन प्रबंधक स्थिति की गंभीरता को समझते हैं और रेलवे आपदा प्रबंधन योजना को सक्रिय करते हैं. मंडल इंजीनियर, चिकित्सा दल और सुरक्षा कर्मचारियों के साथ वरिष्ठ अधिकारियों को तुरंत सूचित किया जाता है. यह पूरी प्रक्रिया इतनी तेज होती है कि दुर्घटना की पूरी तस्वीर सामने आने से पहले ही राहत कार्य शुरू हो जाता है. 

Continues below advertisement

आपातकालीन प्रतिक्रिया को सक्रिय करना 

जैसे ही नियंत्रण कक्ष के जरिए दुर्घटना की पुष्टि हो जाती है भारतीय रेलवे आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली को तुरंत सक्रिय कर देती है. पहली प्राथमिकता जान बचाना और घायलों को चिकित्सा सहायता प्रदान करना होती है. एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन्स और एक्सीडेंट रिलीफ मेडिकल वैन पास के स्टेशनों से तैनात की जाती हैं. प्रतिक्रिया समय को कम करने के लिए इन खास ट्रेनों को रेलवे क्षेत्र में रणनीतिक रूप से तैनात किया जाता है. एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन भारी मशीनरी, क्रेन और री रेलिंग उपकरण ले जाती है, इसी के साथ एक्सीडेंट रिलीफ मेडिकल वैन मोबाइल अस्पतालों के रूप में काम करती है. इन राहत रेल गाड़ियों को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है और दुर्घटना स्थल पर पहुंचने तक किसी भी दूसरी ट्रेन को उनके आगे चलने की अनुमति नहीं होती. 

बचाव और राहत अभियान 

एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन और एक्सीडेंट रिलीफ मेडिकल वैन के पहुंचते ही ऑनसाइट कमांडर की देखरेख में बचाव अभियान शुरू कर दिया जाता है. चिकित्सा दल घायल यात्रियों को प्राथमिक उपचार और आपातकालीन उपचार देता है. इसी के साथ गंभीर रूप से घायल यात्रियों को जिला अधिकारियों के द्वारा व्यवस्थित एंबुलेंस के जरिए से नजदीकी अस्पतालों में पहुंचाया जाता है. घायल यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया जाता है और उनकी यात्रा जारी रखने के लिए कुछ वैकल्पिक परिवहन प्रदान किए जाते हैं. 

इन सब के बीच रेलवे इंजीनियर और टेक्नीशियन पटरी से उतरे हुए डिब्बों को उठाने और फंसे हुए डिब्बों को काटने और मलबे को हटाने का काम शुरू कर देते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में भारी भरकम क्रेन, हाइड्रोलिक री रेलिंग उपकरण और एअरलिफ्टिंग उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है. ज्यादातर लोगों की जान बचाने के लिए गोल्डन आवर के सिद्धांत का पालन किया जाता है. इस सिद्धांत के तहत चोट लगने के पहले घंटे के अंदर उपचार प्रदान करना होता है. 

एजेंसियों के बीच आपस में बातचीत 

घटनास्थल पर प्रभारी अधिकारी पूरी कमान संभालते हैं और कई विभागों के साथ कोआर्डिनेशन बिठाते हैं. रेलवे डिवीजन की संचालन, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और सुरक्षा टीम कोऑर्डिनेशन के साथ काम करती हैं. इसी के साथ भीड़ नियंत्रण, चिकित्सा सहायता और सुरक्षा के लिए स्थानीय प्रशासन और आपदा प्रबंधन एक साथ काम करते हैं.

सेवाओं की बहाली 

जैसे ही बचाव और निकासी अभियान पूरा हो जाता है रेल सेवाओं को वापस से शुरू करने के लिए काम शुरू कर दिया जाता है. क्षतिग्रस्त डिब्बों को क्रेन की मदद से हटाया जाता है और पटरियों की टूट-फूट का निरीक्षण किया जाता है. इंजीनियर क्षतिग्रस्त पटरियों, सिग्नलिंग उपकरण और ओवरहेड लाइनों की मरम्मत के लिए 24 घंटे काम करते हैं. 

जांच और जवाबदेही 

हर बड़ी दुर्घटना के बाद एक आधिकारिक जांच की जाती है, जो अक्सर रेलवे सुरक्षा आयोग द्वारा की जाती है. इस जांच में दुर्घटना के कारणों का पता लगाया जाता है, चाहे वह मानवीय भूल हो या फिर उपकरण की खराबी. जांच के बाद निष्कर्ष के आधार पर भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सुधारात्मक उपाय किए जाते हैं और इसी बीच रेलवे पीड़ितों और उनके परिवारों को अनुग्रह राशि जारी करता है.

ये भी पढ़ें: ट्रक-बस बनाने से लेकर बैंक तक... क्या-क्या करता है हिंदुजा ग्रुप, देख लें पूरी लिस्ट