बिहार विधानसभा के गलियारों में हलचल तेज हो गई है. नई सरकार के गठन से पहले ही स्पीकर पद को लेकर नेताओं के बीच चर्चा शुरू हो गई हैं. नौ बार विधायक और कई विभागों के मंत्री रह चुके प्रेम कुमार इस पद के लिए प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं. मंगलवार को डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा से मुलाकात करने के लिए प्रेम कुमार उनके सरकारी निवास पहुंचे. लेकिन सवाल यह है कि स्पीकर का चुनाव किस आधार पर होता है, और क्या अनुभव या वोटिंग ही तय करता है कैंडिडेट की किस्मत?

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स्पीकर का पद कैसे भरा जाता है?

स्पीकर का चुनाव विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है. इसमें सदस्य अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं और कोई भी निर्वाचित सदस्य स्पीकर पद के लिए नामांकित हो सकता है. हालांकि, केवल वोटिंग ही निर्णायक नहीं होती है. राजनीतिक दल अपने अनुभव, वरिष्ठता, कार्यकुशलता और विधायी समझ को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवार का चयन करते हैं.

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वोटिंग या अनुभव कैसे तय होता है स्पीकर

आमतौर पर, जिस नेता के पास लंबा अनुभव और कार्यपालिका में योगदान हो, उसे पार्टी या गठबंधन की ओर से प्राथमिकता दी जाती है. इसके अलावा, राजनीतिक संतुलन और सदन में समर्थन की संख्या भी चुनाव में बड़ी भूमिका निभाती है. यानी, अनुभव और वोट दोनों मिलकर तय करते हैं कि कौन स्पीकर बनेगा.

राज्य में स्पीकर का पद बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. स्पीकर विधानसभा की कार्यवाही का संचालन करते हैं, कानून के मसलों पर निर्णय लेते हैं और सदन में अनुशासन बनाए रखते हैं, इसलिए राजनीतिक दल हमेशा इस पद के लिए सबसे अनुभवी और भरोसेमंद नेता को चुनने की कोशिश करते हैं. 

क्यों तेज है प्रेम कुमार की चर्चा

प्रेम कुमार के नाम को लेकर चर्चा इसलिए भी तेज है, क्योंकि उनके पास न केवल विधानसभा और मंत्री के रूप में लंबा अनुभव है, बल्कि उन्होंने कई संवेदनशील मामलों को संभालने का काम भी किया है. इस बीच राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि स्पीकर का चयन सिर्फ अनुभव या वरिष्ठता तक सीमित नहीं रहेगा. सदन में गठबंधन और दलों के बीच संतुलन को भी ध्यान में रखा जाएगा. 

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