लाल आतंक के प्रतीक बना खतरनाक नक्सली कमांडर माडवी हिडमा अब सिर्फ इतिहास में रह गया है. सोमवार को आंध्र प्रदेश में एंटी-नक्सल ग्रेहाउंड्स फोर्स और स्थानीय पुलिस के संयुक्त अभियान के दौरान हुई भीषण मुठभेड़ में माडवी हिडमा मारा गया. यह मुठभेड़ उन इलाकों में हुई, जहां आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा की सीमाएं मिलती हैं. अधिकारियों के अनुसार, यह ऑपरेशन अब तक का सबसे सफल और महत्वपूर्ण एंटी-नक्सल मिशन माना जा रहा है, जिसने इलाके में नक्सली ताकत को बड़ा झटका दिया है.

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आइए इसी क्रम में जानें कि माओवाद और नक्सलवाद में क्या अंतर है और इनकी हिंसा के क्या तरीके हैं.

अलग हैं नक्सलवाद और माओवाद

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देश के जंगलों और पहाड़ी इलाकों में कई दशकों से हिंसा की लहरें उठती रही हैं. कभी पुलिस बल पर अचानक हमला, कभी मासूम ग्रामीणों को डराकर अपना प्रभाव कायम करना, यह पूरा तंत्र दो बड़ी विचारधाराओं से निकला है: नक्सलवाद और माओवाद. लोग अक्सर दोनों को एक जैसा समझ लेते हैं, जबकि दोनों की जड़ें, सोच और लक्ष्य अलग-अलग दिशा में जन्मे और विकसित हुए हैं.

नक्सलवाद क्या है?

सबसे पहले बात नक्सलवाद की. इसकी शुरुआत 1960 के दशक में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के छोटे से गांव नक्सलबाड़ी से हुई. यहां गरीब किसानों को जमींदारों के अत्याचार, मनमानी और अत्यधिक करों का सामना करना पड़ता था. इसी पृष्ठभूमि में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने किसानों को संगठित किया और जमींदारों के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी भड़काई. यह चिंगारी इतनी तेज थी कि जल्द ही बिहार, झारखंड, ओडिशा और आंध्र प्रदेश तक फैल गई. जो भी इस आंदोलन का हिस्सा बना, उसे नक्सली कहा जाने लगा. यह आंदोलन मूल रूप से आर्थिक, सामाजिक और भूमि अधिकारों की लड़ाई से जन्मा था.

माओवाद क्या है?

अब समझिए माओवाद. यह विचारधारा चीन के नेता माओत्से तुंग के सिद्धांतों पर आधारित है, जो राजनीतिक बदलाव के लिए सशस्त्र संघर्ष को सबसे प्रभावी तरीका बताते थे. 1967 में नक्सलबाड़ी विद्रोह के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) में विभाजन हुआ, और एक धड़ा माओवादी विचारधारा की ओर झुक गया. धीरे-धीरे यह हिंसा का नया रूप बनकर उभरा, जिसमें लक्ष्य सिर्फ सामाजिक बदलाव नहीं रहा, बल्कि देश की सत्ता को हथियारों के जरिए चुनौती देना हो गया.

कितना अलग है तरीका

नक्सलवादी आंदोलन गरीब किसानों के हक, जमीन, शोषण और जमींदारों के अत्याचार के खिलाफ पैदा हुआ था, यानि इसकी जड़ें सामाजिक न्याय से जुड़ी थीं. वहीं माओवाद, एक अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट विचारधारा से निकला, जिसका लक्ष्य सरकार के खिलाफ लगातार सशस्त्र लड़ाई छेड़कर राजनीतिक ढांचा बदलना है.

हिंसा का क्या है तरीका

हिंसा की बात करें तो दोनों गुरिल्ला रणनीति अपनाते हैं, लेकिन माओवादी संगठनों की गतिविधियां ज्यादा संगठित, गहरी और हिंसक मानी जाती हैं. IED ब्लास्ट, घात लगा कर हमला, पुलिस हथियारों की लूट, जन-अदालतें, डरा-धमकाकर ग्रामीणों पर नियंत्रण, ये उनकी सबसे आम रणनीतियां हैं. छत्तीसगढ़, झारखंड और महाराष्ट्र के कई हिस्से आज भी इस हिंसा के प्रभाव से पूरी तरह बाहर नहीं निकल सके हैं. 

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