भारत की आजादी के बाद का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक आंदोलन अगर किसी ने देश को नई दिशा दी, तो वह लोकनायक जय प्रकाश नारायण का आंदोलन था. आपातकाल के खिलाफ शुरू हुई इस लड़ाई ने न सिर्फ केंद्र की सत्ता को चुनौती दी बल्कि बिहार की राजनीति को भी गहराई से प्रभावित किया. इस आंदोलन से उभरकर कई ऐसे नेता सामने आए, जिन्होंने आने वाले दशकों तक भारतीय राजनीति पर अपना गहरा असर छोड़ा. चलिए उन नेताओं के बारे में जानें.

Continues below advertisement

लालू प्रसाद यादव

सबसे पहले बात लालू प्रसाद यादव की करते हैं. 1970 में वे पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव बने और 1973 में अध्यक्ष बने. जेपी आंदोलन में वे प्रमुख युवा नेता के तौर पर उभरे. 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर वे पहली बार सांसद बने. 1990 में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले लालू यादव ने सामाजिक न्याय की राजनीति को मजबूत किया. हालांकि 1997 में चारा घोटाले के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और राष्ट्रीय जनता दल की स्थापना करनी पड़ी. इसके बाद भी लालू राजनीति में प्रभावशाली बने रहे और 2004 में यूपीए सरकार में रेल मंत्री बने, लेकिन 2013 में चारा घोटाले में दोषी पाए जाने के बाद उन्हें जेल जाना पड़ा.

Continues below advertisement

नीतीश कुमार

नीतीश कुमार का सफर भी छात्र राजनीति से ही शुरू हुआ था. वे 1974 के आंदोलन में सक्रिय रहे और 1977 में जनता पार्टी से जुड़े. 1985 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीते. केंद्र सरकार में कई मंत्रालयों का कार्यभार संभालने के बाद 2000 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने, हालांकि सरकार सिर्फ सात दिन ही चली. 2005 से लेकर अब तक उन्होंने बिहार की राजनीति में सबसे लंबा प्रभाव बनाए रखा. कभी भाजपा के साथ, तो कभी राजद के साथ गठबंधन कर नीतीश ने सत्ता में अपनी पकड़ बनाए रखी. उन्होंने राज्य की साख को सुशासन बाबू की छवि से जोड़ा.

सुशील मोदी

सुशील कुमार मोदी, भाजपा के दिग्गज नेता भी जेपी आंदोलन की ही उपज थे. पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ में महासचिव रहते हुए उन्होंने आपातकाल के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभाई और 19 महीने जेल में बिताए. 1990 में वे पहली बार विधायक बने और विपक्ष के नेता बने. 2005 और 2010 में नीतीश कुमार के साथ बिहार के उप मुख्यमंत्री बने और गठबंधन की राजनीति में भाजपा का चेहरा रहे.

शरद यादव

शरद यादव का नाम भी इस आंदोलन से गहराई से जुड़ा है. 1974 में जेपी के आह्वान पर राजनीति में आए शरद यादव 1977 में सांसद बने. बाद में वे जनता दल के अध्यक्ष बने और केंद्र में कई बार मंत्री भी रहे. वे लालू-नीतीश के महागठबंधन के एक स्तंभ कहे जाते हैं.

यह भी पढ़ें: How Astronauts Take Bath In Space: जब स्पेस में तैरता रहता है पानी तो वहां नहाते कैसे हैं एस्ट्रोनॉट्स, जानकर नहीं होगा यकीन