Bihar Election Result 2025: 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में राजद ने सबसे ज्यादा वोट शेयर 23% हासिल किए. लेकिन इसके बावजूद भी भाजपा और जदयू दोनों के वोट शेयर जो कि 20.08% और 19.25% थे, से काफी कम सीटें जीतीं. इसी बीच एक सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्यों है कि जिस पार्टी ने सबसे ज्यादा वोट पाए हों उसके बावजूद भी उसकी सीटें कम कैसे रह जाती हैं. आइए जानते हैं.

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क्या है इसके पीछे की वजह

भारत में फर्स्ट पास्ट द पोस्ट चुनाव प्रणाली लागू है. इसका मतलब होता है कि हर निर्वाचन क्षेत्र सिर्फ एक उम्मीदवार को चुनता है. वह उम्मीदवार वह व्यक्ति होता है जिसे सबसे ज्यादा वोट मिले हों, भले ही अंतर काफी कम हो. 50% से ज्यादा वोट पाने की कोई जरूरत नहीं होती. इसमें विनर टेक्स ऑल व्यवस्था का पालन किया जाता है. जिसमें सीटों का बंटवारा इस बात पर निर्भर नहीं करता कि किसी पार्टी को कुल कितने वोट मिलते हैं. बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि वोट कहां पर केंद्रित हैं. यही वजह है कि भले ही किसी भी पार्टी का राज्यव्यापी वोट शेयर ज्यादा हो लेकिन इसके बाद भी वह कई निर्वाचन क्षेत्र में मामूली अंतर की वजह से हार सकती है और सीटें भी गंवा सकती है.

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मत वितरण सीटों की संख्या को कैसे प्रभावित करता है 

राजद जैसी पार्टियों के वोट पूरे बिहार में समान रूप से फैले हो सकते हैं लेकिन अगर वे वोट अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्र में विरोधियों से बेहतर प्रदर्शन करने के लिए मजबूत नहीं है तो वह सीटों में नहीं बदल सकते. वहीं भाजपा जैसी पार्टियों के पास अगर वफादार मतदाताओं का एक मजबूत समूह है तो वे कम वोटों के बावजूद भी कई सीटें जीत सकती हैं.

एक और बड़ी वजह

जब भी कई पार्टियां एक सीट पर चुनाव लड़ती हैं तो उनके प्रतिस्पर्धी वोट बैंक एक दूसरे को नुकसान पहुंचाते हैं. छोटी पार्टियां, निर्दलीय या फिर नए क्षेत्रीय दल अक्सर सत्ता विरोधी या फिर जाति आधारित वोटों को बांट लेते हैं. इस वजह से ऐसी स्थितियां पैदा होती हैं जहां पर एक पार्टी मामूली बढ़त से, कभी-कभी कुछ सौ वोटों से भी एक सीट जीत सकती है. जबकि ज्यादा वोट शेयर वाली पार्टी कई निर्वाचन क्षेत्र में मामूली अंतर से हार जाती है. यही वजह है कि सबसे ज्यादा वोट शेयर हमेशा सबसे ज्यादा सीट शेयर नहीं बनता.

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