Bihar Election Result 2025: 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों में एनडीए ने 200 सीटों के आंकड़े को पार करते हुए एक दमदार जीत हासिल की. वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन की उपस्थिति 35 सीटों पर ही सिमट कर रह गई. इसी बीच एक अहम सवाल राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है कि विपक्ष के नेता का पद पाने के लिए किसी भी पार्टी को कितनी सीटें जीतनी होती हैं. आइए जानते हैं.
10% का नियम
विपक्ष के नेता (लीडर ऑफ अपोजिशन) का पद खुद ही सबसे बड़े विपक्षी दल को नहीं मिल जाता. दरअसल यह एक नियम के द्वारा शासित होता है. इस संवैधानिक पद को आधिकारिक रूप से पाने के लिए किसी भी पार्टी को सदन की कुल संख्या का कम से कम 10% प्राप्त करना जरूरी है. यह नियम सिर्फ एक ही पार्टी पर लागू होता है, किसी गठबंधन पर नहीं. अगर बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा की बात करें तो यहां एक पार्टी को कम से कम 25 सीटें जीतनी पड़ेंगी. अगर कोई भी पार्टी इस सीमा को पूरा नहीं करती तो सदन आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त लीडर ऑफ अपोजिशन के बिना काम करता है.
क्यों है यह नियम जरूरी
यह 10% का नियम इसलिए जरूरी है क्योंकि लीडर ऑफ अपोजिशन का पद पर्याप्त राजनीतिक महत्व रखता है. यह बहुत छोटी पार्टियों को सत्तारूढ़ सरकार को संतुलित करने के लिए बनाए गए पद पर दावा करने से रोकता है. दरअसल एक मान्यता प्राप्त विपक्ष के नेता का काफी ज्यादा संस्थागत महत्व होता है. इस नियम से यह पक्का होता है कि यह जिम्मेदारी उस पार्टी के पास हो जिसके पास सबसे जरूरी जनादेश हो.
सभी विधान मंडलों में कैसे लागू होता है यह नियम
अगर लोकसभा की बात करें तो किसी भी पार्टी के पास लीडर ऑफ अपोजिशन का दर्जा पाने के लिए कम से कम 55 सीटें होनी चाहिए. वहीं दूसरी तरफ राज्यसभा में कुल संख्या के आधार पर जरूरी संख्या लगभग 25 सीटें हैं.
विपक्ष के नेता की भूमिका
लीडर ऑफ अपोजिशन होना एक बड़ी जिम्मेदारी है. यह लोकतांत्रिक जवाबदेही को मजबूत करता है. विपक्ष का नेता शीर्ष राष्ट्रीय संस्थानों के लिए बड़ी चयन समितियों में भाग लेता है. इनमें केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक, केंद्रीय सतर्कता आयोग के प्रमुख, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और लोकपाल की नियुक्ति शामिल है.
ये भी पढ़ें: क्या चुनाव जीतने के बाद भी विधायकी कैंसिल कर सकता है चुनाव आयोग, क्या है नियम?