Bihar Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 रिकॉर्ड तोड़ 66.90% के मतदान के साथ पूरा हो चुका है. जहां एक तरफ राजनीतिक सुर्खियां बिहार पर केंद्रित हैं वहीं एग्जिट पोल के आंकड़ों को देखकर शेयर बाजार में जोश आ चुका है. दरअसल शेयर बाजार राजनीतिक स्थिरता की तलाश में रहता है. हर चुनावी मौसम में बाजार में तेज उधर चढ़ाव देखने को मिलते हैं. इसी बीच आइए जानते हैं कि आखिर चुनाव का शेयर बाजार पर इतना गहरा असर क्यों पड़ता है.
नीतिगत अनिश्चित और आर्थिक बदलाव
चुनावों का शेयर बाजार पर असर पड़ने की एक सबसे बड़ी वजह है नीतिगत अनिश्चितता. हर राजनीतिक दल अपने साथ एक अलग आर्थिक एजेंडा लेकर आता है. इससे बुनियादी ढांचे, टैक्सेशन, मैन्युफैक्चरिंग और व्यापार जैसे क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ता है. निवेशक यह देखने के लिए काफी बारीकी से नजर रखते हैं कि कौन सी नीतियां आने वाले सालों को आकार देंगी.
अगर आने वाली सरकार से विकास की उम्मीद की जाती है जैसे कि सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देना, टैक्स को सरल बनाना या फिर औद्योगिक विस्तार को प्रोत्साहित करना, तो निवेशक सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं और बाजार में तेजी देखने को मिलती है. दूसरी तरफ अगर राजकोषीय अनुशासन या फिर व्यावसायिक नीतियों को लेकर अनिश्चित होती है तो निवेशक सतर्क हो जाते हैं और बाजार में गिरावट देखने को मिलती है.
राजनीतिक स्थिरता की भूमिका
शेयर बाजार पूर्वानुमान और स्थिरता पर ही चलते हैं. निवेशक साफ तौर से बहुमत वाली सरकार को पसंद करते हैं क्योंकि यह सुसंगत पॉलिसी और सुचारू निर्णय को सुनिश्चित करती है. जब चुनाव एक मजबूत स्थिर सरकार का संकेत देते हैं तब विश्वास बढ़ता है और विदेशी निवेशक निवेश बढ़ाते हैं. इससे बाजार में तेजी आती है. इसके ठीक विपरीत एक अनिश्चित विधानसभा या फिर अस्थिर गठबंधन पॉलिसी पैरालिसिस की आशंकाओं को जन्म दे सकता है. ऐसे में बाजार में नर्मी आ सकती है.
निवेशक भावना और अटकलें
चुनाव के दौरान शेयर मार्केट सिर्फ अर्थशास्त्र से ही नहीं बल्कि भावनाओं और अटकलें से भी प्रेरित होता है. चुनाव नतीजे से पहले के दिनों में निवेशक एग्जिट पोल और राजनीतिक भविष्यवाणियों पर तीखी प्रतिक्रिया देते हैं. यदि शुरुआत में रुझान किसी ऐसी सरकार के पक्ष में होते हैं जिसे व्यापार हितैषी माना जाता है तो बाजार ऊपर चढ़ते हैं. हालांकि जब वास्तविक परिणाम अपेक्षाओं से अलग होते हैं तो बाजार में तेजी से गिरावट देखने को मिल सकती है.
विदेशी निवेश और वैश्विक प्रतिक्रियाएं
भारत का शेयर मार्केट फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स से काफी ज्यादा प्रभावित है. वैश्विक निवेशक स्थिर सरकार और स्पष्ट नीतिगत दिशाओं को ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि यह निवेश जोखिम को कम करते हैं. चुनाव के दौरान फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स अक्सर वेट एंड वॉच का दृष्टिकोण अपनाते हैं और परिणाम घोषित होने तक निवेश कम करते हैं. जैसे ही स्थिर सरकार की पुष्टि हो जाती है विदेशी निवेश बढ़ता है जिससे बाजार और रुपया दोनों ही मजबूत होते हैं. हालांकि अगर परिणाम अस्थिरता का संकेत देते हैं तो फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स अपना पैसा निकाल सकते हैं जिससे बाजार में अचानक गिरावट आ सकती है.
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