Bihar Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले फेज की वोटिंग के बीच देशभर में एक सवाल उभरता है कि आखिर आदर्श आचार संहिता आखिर कब हटती है और इसके हटने के बाद क्या बदलाव देखने को मिलते हैं? चुनाव आयोग के कड़े नियमों के बीच यह संहिता न केवल राजनीतिक दलों की गतिविधियों को नियंत्रित करती है, बल्कि आम जनता और प्रशासन पर भी प्रभाव डालती है. वोटिंग खत्म होने के साथ ही कौन-कौन सी पाबंदियां हटेंगी, और प्रशासनिक निर्णय फिर कैसे प्रभावित होंगे, आइए जानते हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले फेज में 121 विधानसभा सीटों पर मतदान जारी है. पिछले विधानसभा चुनाव 2020 के आंकड़ों से तुलना करें तो इस बार बंपर वोटिंग के संकेत दिखाई दे रहे हैं. पीएम नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जैसी प्रमुख राजनीतिक हस्तियों ने जनता से मतदान करने की अपील की है.
कब लागू होती है आचार संहिता?
चुनाव से पहले जब निर्वाचन आयोग चुनाव की अधिसूचना जारी करता है, उसी दिन से आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है. इसे राजनीतिक दलों की सहमति से तैयार किए गए सिद्धांत और मानक माना जाता है. ध्यान देने वाली बात यह है कि यह किसी कानून के तहत नहीं बनाई गई है, बल्कि यह पूरी तरह राजनीतिक समझौते पर आधारित है.
किन चीजों पर लग जाती है रोक
आचार संहिता लागू होने के साथ ही कई चीजों पर रोक लग जाती है. आइए जानें कि वो कौन सी चीजें हैं.
- नई सरकारी भर्तियों और परीक्षाओं का आयोजन नहीं किया जा सकता है.
- शराब के ठेकों की नीलामी पर रोक लग जाती है.
- इसी दौरान सरकारी विज्ञापन, होर्डिंग्स और पोस्टर्स का भी इस्तेमाल सीमित हो जाता है.
- शिलान्यास, उद्घाटन या नई योजनाओं की घोषणा पर पाबंदी लगती है.
- अधिकारियों का तबादला नहीं किया जा सकता और जनसभाओं पर सुबह 6 बजे से पहले और शाम 10 बजे के बाद रोक रहती है.
- मीडिया पर सरकारी खर्च से विज्ञापन देने की भी मनाही होती है.
कब हटती है आचार संहिता और तब क्या होता है?
जैसे ही चुनावी प्रक्रिया पूरी होती है और वोटिंग समाप्त होती है, आचार संहिता हटा दी जाती है. इसका मतलब यह हुआ कि अब नई भर्तियों और परीक्षाओं का आयोजन संभव है. शराब के ठेकों की नीलामी फिर से शुरू हो सकती है. सरकार अपनी योजनाओं की घोषणा कर सकती है, अधिकारी अपने पदों पर सामान्य प्रशासनिक निर्णय ले सकते हैं और जनसभाएं भी बिना समय सीमा के आयोजित की जा सकती हैं.
जो पाबंदियां चुनाव के दौरान लागू थीं, वे हट जाती हैं और प्रशासनिक गतिविधियों पर पुनः सामान्य नियम लागू हो जाते हैं. आचार संहिता एक तरह से चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाने का प्रयास है. यह न केवल राजनीतिक दलों को बल्कि प्रशासन और मीडिया को भी नियंत्रित करती है. आचार संहिता हटते ही राजनीतिक गतिविधियों और सरकारी कामकाज में तेजी देखने को मिलती है.
यह भी पढ़ें: भारत की तरह क्या चीन में भी होती है जाति-धर्म के नाम पर वोटिंग, जानें यहां कितने लोग छोड़ चुके हैं धर्म