भारत में चुनाव और वोटिंग अक्सर जाति और धर्म के नाम पर होती है, लेकिन क्या ऐसा ही खेल चीन में भी चलता है? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र से अलग चीन की राजनीति और सामाजिक संरचना ने इसे पूरी तरह अलग बना दिया है. यहां धर्म और जाति की पहचान पर आधारित मतदान नहीं होता, और कई लोगों ने तो धर्म को छोड़ने का रास्ता भी अपनाया है, लेकिन इसके पीछे की वजहें क्या हैं और इसका असर समाज पर कैसा पड़ता है? चलिए जानते हैं.

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क्या चीन में जाति-धर्म के नाम पर नहीं होती वोटिंग?

भारत में चुनाव अक्सर जातिगत समीकरण और धर्म के आधार पर लड़े जाते हैं, लेकिन चीन की स्थिति काफी अलग है. चीन में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का नेतृत्व और राज्य नीति धर्म और जाति को राजनीतिक आधार बनाने की अनुमति नहीं देती है. संविधान में सभी नागरिकों को धर्म और जाति की स्वतंत्रता दी गई है, लेकिन राजनीतिक प्रक्रिया में ये पहचान मायने नहीं रखती है.

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कितने लोग धर्म को नहीं मानते

हाल के आंकड़ों के मुताबिक चीन में आधिकारिक तौर पर लगभग 1.4 बिलियन लोग रहते हैं, जिनमें से अधिकांश खुद को किसी भी धर्म के अनुयायी नहीं मानते हैं. साल 2020 की स्टडी में यह सामने आया था कि चीन में 60% से ज्यादा लोग ‘निराकार’ या धर्म रहित हैं. यानी आधिकारिक तौर पर चीन में धर्म का सामाजिक या राजनीतिक आधार नहीं माना जाता है.

किस आधार पर होता है चुनाव

यही कारण है कि चीन में चुनाव और स्थानीय प्रतिनिधित्व जाति-धर्म के नाम पर नहीं होते हैं. ग्राम या शहर के चुनावों में उम्मीदवारों का चयन योग्यता और पार्टी की अनुशंसा पर होता है, न कि धार्मिक या जातिगत आधार पर. विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रणाली सामाजिक स्थिरता और सामूहिक पहचान बनाए रखने के लिए अपनाई गई है.

कहां होता है धर्म का पालन

लेकिन चीन में धर्म का अस्तित्व पूरी तरह गायब नहीं है. चीन के कुछ क्षेत्र जैसे सिचुआन, शिनजियांग और तिब्बत में धार्मिक समुदाय मौजूद हैं, लेकिन वहां भी सरकारी निगरानी और नीति के कारण धर्म पर आधारित राजनीतिक सक्रियता सीमित है. रिपोर्ट्स के अनुसार, कई लोग व्यक्तिगत कारणों या सामाजिक दबाव के चलते अपने धर्म को छोड़ चुके हैं या सार्वजनिक तौर पर उसका पालन नहीं करते हैं.

धर्म छोड़ने के कारण

रिपोर्ट्स की मानें तो चीन में धर्म को छोड़ने के पीछे कई कारण हैं: आधिकारिक नीतियां, सामाजिक सामंजस्य की चाहत, शिक्षा और आधुनिक जीवनशैली. वहीं दूसरी तरफ भारत में जाति-धर्म की राजनीति लंबे समय से गहरी जड़ें जमा चुकी है, और यह समाज के हर स्तर में असर डालती है.

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