कबूतर की गिनती एक समझदार पक्षी में होती है. यहीं कारण है कि कबूतर को एक जासूसी पक्षी भी कहा जाता है. इसका साक्ष्य मुगलों और राजाओं के समय से देखने को मिलता है. अभी हाल ही में मुंबई पुलिस ने भी आठ महीने की हिरासत के बाद एक संदिग्ध चीनी जासूस कबूतर को रिहा किया है. दरअसल कबूतर को मई 2023 में मुंबई बंदरगाह के पास गिरफ्तार किया गया था, जहां पर उसके पैरों में दो अंगूठियां बंधी हुई थी. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, सालों से कबूतर का इस्तेमाल जासूसी और संदेश पहुंचाने के लिए किया जाता है. लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि कबूतर को क्यों जासूसी पक्षी कहा जाता है.


जासूस पक्षी है कबूतर


कबूतर एक ऐसा पक्षी है, जिसका ऐतिहासिक रूप से इस्तेमाल जासूसी के लिए किया जाता है. अंतरराष्ट्रीय जासूस संग्रहालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कबूतरों पर छोटे कैमरे लगे हुए थे और उन्हें दुश्मन के इलाके में छोड़ दिया गया था. जब पक्षी दुश्मन के इलाके में उड़ रहा होता था तो छोटे से कैमरे से इसे क्लिक कर लेता था. इतना ही नहीं अपनी गति और मौसम की परवाह किए बिना बेस पर लौटने की क्षमता के कारण वे दुश्मन देश में संदेश पहुंचाने के भी प्रभारी थे. संग्रहालय के मुताबिक इस दौरान 95 फीसदी कबूतरों ने अपनी डिलीवरी पूरी कर ली थी. इस वजह से 1950 के दशक तक जासूसी के लिए उनका इस्तेमाल होता था. 


कबूतरों ने बचाई 194 जवानों की जान 


प्रथम विश्व युद्ध में चेर अमी नाम का एक कबूतर काफी मशहूर हुआ था. उसका अंतिम मिशन 14 अक्टूबर 1918 को था, जिसमें उसने जर्मनों के खिलाफ लड़ाई में एक घिरी हुई फ्रांस की बटालियन के 194 सैनिकों को बचाने में मदद की थी. हालांकि दुश्मनों की गोलीबारी में चेर अमी को पैर और छाती में गोली लग थी. लेकिन वह संदेश लेकर अपने मचान तक पहुंचने में कामयाब हुआ था. अपने मिशन के दौरान लगी चोटों की वजह से 13 जून 1919 के दिन चेर अमी की मृत्यु हो गई थी. कबूतर चेरी को मरणोपरांत अन्य पुरस्कारों के साथ किसी भी बहादुर नायक को दिये जाने वाला सबसे बड़ा पुरस्कार फ्रेंच क्राइक्स डी गुएरे विद पाम से सम्मानित किया गया था. 


 


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