अबू धाबी में बना पहला हिंदू चर्चा में बना हुआ है. बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मंदिर का उद्घाटन करेंगे. ये मंदिर काफी भव्य बनाया गया है और इतना बड़ा है कि ये काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से भी काफी बड़ा है. मंदिर को भव्य बनाने के लिए भारत की ही कई चीजों का इसमें किया गया है और खास कारीगरों ने इसे बनाया है. तो आज जानने की कोशिश करते हैं कि ये मंदिर कितना भव्य है और इसमें क्या खासियत हैं, जो दुनिया में इसे खास मंदिर बनाती है. 

यहां पढ़िए मंदिर में क्या खास है?

अबू धाबी का पहला हिंदू मंदिर देश के विभिन्न हिस्सों के योगदान से बना वास्तुकला का खास नमूना है.
मंदिर के दोनों ओर गंगा और यमुना का पवित्र जल बह रहा है जिसे बड़े-बड़े कंटेनर में भारत से लाया गया है. 
जिस तरफ गंगा का जल बहता है वहां पर एक घाट के आकार का एम्फीथिएटर बनाया गया है. इसके पीछे का विचार इसे वाराणसी के घाट की तरह दिखाना है जहां लोग बैठ सकें, ध्यान लगा सकें और उनके जहन में भारत में बने घाटों की यादें ताजा हो जाएं. 
गंगा और यमुना के अलावा ‘त्रिवेणी’ संगम बनाने के लिए मंदिर की संरचना से रोशनी की किरण आएगी जो सरस्वती नदी को दर्शाएगी. 
ये मंदिर दुबई-अबू धाबी शेख जायेद हाइवे पर अल रहबा के पास 27 एकड़ जमीन पर बनाया गया है.
मंदिर के आगे वाले भाग पर बलुआ पत्थर पर उत्कृष्ट संगमरमर की नक्काशी है, जिसे राजस्थान और गुजरात के कुशल कारीगरों द्वारा 25,000 से अधिक पत्थर के टुकड़ों से तैयार किया गया है. मंदिर के लिए उत्तरी राजस्थान से अच्छी-खासी संख्या में गुलाबी बलुआ पत्थर अबू धाबी लाया गया है.
मंदिर के निर्माण के लिए 700 से अधिक कंटेनर में दो लाख घन फुट से अधिक ‘पवित्र’ पत्थर भेजे गए हैं. गुलाबी बलुआ पत्थर भारत से लाया गया है। पत्थर पर नक्काशी वहां के मूर्तिकारों ने की है और इसे यहां के श्रमिकों ने लगाया है. इसके बाद कलाकारों ने यहां डिजाइन को अंतिम रूप दिया है. 
मंदिर में प्रार्थना सभागार, कैफेटेरिया, सामुदायिक केंद्र आदि में रखा गया फर्नीचर पत्थरों को लाने में इस्तेमाल किए बक्सों और कंटेनर की लकड़ी से बनाया गया है. मंदिर के कोने-कोने में भारत का अंश है.
इस मंदिर का निर्माण कार्य 2019 से चल रहा है. मंदिर के लिए जमीन संयुक्त अरब अमीरात ने दान में दी है.
पत्थर की वास्तुकला के साथ एक बड़े इलाके में फैला बीएपीएस मंदिर खाड़ी क्षेत्र में सबसे बड़ा मंदिर होगा. 

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