सरकारी कर्मचारियों के बीच सबसे बड़ा सवाल अब यह है कि क्या इस बार सरकार 8वें वेतन आयोग में फिटमेंट फैक्टर को बदलने या पूरी तरह हटाने का फैसला कर सकती है? क्योंकि यही एक नंबर तय करता है कि आपकी सैलरी में 5 हजार बढ़ेगी या 25 हजार. अब जब आयोग को हरी झंडी मिल चुकी है तो चर्चाएं तेज हैं. आइए समझें कि अगर सरकार ने फिटमेंट फैक्टर को नकार दिया तो वेतन कैसे बदलेगा और हर महीने कितनी सैलरी मिलेगी?
क्या सरकार फिटमेंट फैक्टर को बदल सकती है?
फिटमेंट फैक्टर हर वेतन आयोग का सबसे अहम हिस्सा होता है. 7वें वेतन आयोग में इसे 2.57 गुना रखा गया था, जिससे लाखों कर्मचारियों की सैलरी में बड़ी बढ़ोतरी हुई थी. लेकिन अब चर्चा यह है कि सरकार 8वें वेतन आयोग में इसे नई फॉर्मूला-आधारित प्रणाली से बदल सकती है, ताकि हर बार एक तय मल्टीप्लायर पर निर्भर न रहना पड़े.
वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, फिटमेंट फैक्टर को नकारने का मतलब इसे हटाना नहीं होगा, बल्कि इसे इंटीग्रेटेड पे सिस्टम में मर्ज किया जा सकता है, जहां सैलरी अपने आप महंगाई भत्ते और बेसिक पे के अनुपात से तय होगी.
अगर फिटमेंट फैक्टर हटा, तो सैलरी कितनी बढ़ेगी?
अब सबसे अहम बात कि अगर सरकार फिटमेंट फैक्टर को न अपनाकर सिर्फ डीए, HRA और बेसिक पे रिविजन के जरिए वेतन तय करती है, तो सैलरी में औसतन 20% से 28% तक की बढ़ोतरी हो सकती है. उदाहरण के लिए- अगर किसी कर्मचारी की मौजूदा सैलरी 45,000 रुपये है, तो उसकी बढ़ी हुई सैलरी लगभग 54,000 से 57,000 रुपये तक पहुंच सकती है.
लेकिन अगर सरकार फिटमेंट फैक्टर को बरकरार रखती है और उसे 2.5 या 2.7 के बीच रखती है, तो यही सैलरी बढ़कर 75,000 से 85,000 रुपये तक जा सकती है. यानि फर्क लगभग 25,000 से 30,000 रुपये प्रति माह का हो सकता है.
क्यों सरकार नया फॉर्मूला अपनाना चाहती है
हर 10 साल बाद नया वेतन आयोग बनाना और फिटमेंट फैक्टर तय करना एक लंबी और खर्चीली प्रक्रिया है. सरकार चाहती है कि भविष्य में सैलरी अपने आप महंगाई दर से लिंक हो जाए, ताकि अलग आयोग की जरूरत ही न पड़े. अगर ऐसा होता है, तो यह एक स्थायी वेतन पुनरीक्षण प्रणाली की दिशा में कदम होगा.
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