Margaret Alva Vs Jagdeep Dhankhar: बीजेपी ने शनिवार को पश्चिम बंगाल (West Bengal) के राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar)को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार (Vice President Candidate)बनाकर सबको चौंका दिया था. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda )ने इसकी जानकारी दी. नड्डा ने बताया कि पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक में कई नामों पर चर्चा हुई. काफी मंथन के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि हम अपने किसान पुत्र जगदीप धनखड़ जी का नाम आगे करते हैं. वहीं, रविवार को एनसीपी(NCP) प्रमुख शरद पवार (Sharad Pawar) के आवास पर विपक्षी पार्टियों की सर्वदलीय बैठक हुई जिसमें सर्वसम्मति से कांग्रेस नेता मारग्रेट अल्वा (Margaret Alva)को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनकर विपक्ष ने भी सबको चौंका दिया है.


लिखा जाएगा नया इतिहास


उपराष्ट्रपति पद के लिए देश में 6 अगस्त को चुनाव होने हैं, जिसके नतीजे 11 अगस्त को आएंगे. निर्वाचन आयोग (Election Commission) से जारी सूचना के अनुसार 19 जुलाई नामांकन (Nomination)की आखिरी तारीख है. ऐसे में सत्तापक्ष ने जहां जगदीप धनखड़ के रूप में अपना दांव आजमाया है तो विपक्ष ने भी उस दांव को मात देने की पूरी तैयारी कर ली है. अगर जगदीप धनखड़ की इस चुनाव में जीत होती है तो वे राजस्थान के भैंरो सिंह शेखावत के बाद दूसरे उपराष्ट्रपति होंगे और देश के पहले ओबीसी उपराष्ट्रपति होंगे. वहीं अगर विपक्ष की उम्मीदवार मारग्रेट अल्वा की जीत होती है तो वे देश की पहली महिला उपराष्ट्रपति होंगी.


सत्तापक्ष के धनखड़ के दांव को मात देंगी विपक्ष की अल्वा, जानिए कैसे


धनखड़ जहां एनडीए का चेहरा होंगे तो वहीं अल्वा को 17 विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त होगा. दोनों का कांग्रेस से गहरा नाता रहा है.


दोनों राजस्थान में अपनी अच्छी पकड़ रखते हैं. धनखड़ की जन्म स्थली झुंझुनूं तो कर्मस्थली जयपुर हाईकोर्ट रही है. वे राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसिडेंट रह चुके हैं. धनखड़ सियासत के मंजे हुए खिलाड़ी रहे हैं. तो वहीं, अल्वा भी राजस्थान की राज्यपाल रह चुकी हैं.


जगदीप धनखड़ वर्तमान में पश्चिम बंगाल के गवर्नर और इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में वकील रह चुके हैं. मार्गरेट अल्वा साल 2009 से 2012 तक उत्तराखण्ड की पहली महिला राज्यपाल के रूप में कार्य किया है. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक वरिष्ठ सदस्य और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की आम सचिव हैं और वे मर्सी रवि अवॉर्ड से सम्मानित हैं.


धनखड़ केंद्रीय मंत्री भी रहे. झुंझुनूं से 1989 से 91 तक वे जनता दल से सांसद रहे. बाद में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया. बाद में 2003 में धनखड़ बीजेपी में शामिल हो गए. अल्वा ने एक एडवोकेट के रूप में विशिष्ट पहचान बनाई. कांग्रेस पार्टी की महासचिव रहने और तेजस्वी सांसद के रूप में पांच पारियां तय करने के साथ-साथ वे केन्द्र सरकार में चार बार महत्वपूर्ण महकमों की राज्यमंत्री रहीं.


एक सांसद के रूप में उन्होंने महिला-कल्याण के कई कानून पास कराने में अपनी प्रभावी भूमिका अदा की. महिला सशक्तिकरण संबंधी नीतियों का ब्लू प्रिन्ट बनाने और उसे केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा स्वीकार कराये जाने की प्रक्रिया में उनका मूल्यवान योगदान रहा.


धनखड़ 11 साल कांग्रेस में रहे हैं और कानून, सियासत, सियासी दांवपेंच के लिए जाने जाते हैं. राजस्थान की जाट बिरादरी आते हैं. राजस्थान में जाटों को आरक्षण दिलवाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. इस समुदाय में धनखड़ की अच्छी साख है. मारग्रेट अल्वा को भी कानून, सियासत और सियासी दांवपेंच आते हैं.


अल्वा ने जहां अपनी ही पार्टी पर टिकटों के क्रय-विक्रय का आरोप लगाया, उन्हें अपनी स्पष्टवादिता की भारी कीमत चुकानी पड़ी और कांग्रेस पार्टी की महासचिव के पद से तथा सैन्ट्रल इलैक्शन कमेटी और महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा तथा मिजोरम राज्यों के लिए कांग्रेस पार्टी की प्रभारी पद से हाथ धोना पड़ा.


धनखड़ अपनी स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते रहे हैं. उन्होंने कहा था, मीडिया मुझे प्रोएक्टिव गवर्नर कहती है, जो मैं नहीं हूं. मैं एक कॉपीबुक गवर्नर हूं. मैं कानून के शासन में विश्वास करता हूं. मेरा मानना ​​है कि कानून की रूपरेखा काम कर रही है और मैं किसी के भी कहने पर किसी भी परिस्थिति में संवैधानिक गरिमा का उल्लंघन नहीं करूंगा.


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