"खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे..." ये कहावत ऐसे लोगों के लिए इस्तेमाल होती है, जिनके मन की नहीं होती और उसके बाद वो गुस्से में तमतमाए होते हैं. फिलहाल ये कहावत महाराष्ट्र में एनसीपी नेता अजित पवार पर सटीक बैठ रही है. जिनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा पूरी नहीं हो पा रही है. हर बार उनकी कोशिशों पर पानी फिर जाता है और वो हर कूचे से बड़े बेआबरू होकर लौटते हैं. एनसीपी चीफ शरद पवार के इस्तीफे के ऐलान के बाद उन्हें जो उम्मीद की किरण दिखी थी वो भी अब ओझल हो रही है. इसके बाद अब सवाल ये है कि अजित पवार का अगला कदम क्या होगा. क्या वो चुनावों तक चुपचाप बैठकर इंतजार करेंगे या फिर जल्दबाजी में फिर से कोई कदम उठाएंगे.


इस्तीफे के ऐलान के बाद खुश दिखे अजित पवार
शरद पवार के इस्तीफे के बाद पूरी एनसीपी में खलबली मच गई. पार्टी के छोटे कार्यकर्ता से लेकर बड़े नेताओं को इससे झटका लगा और सभी भावुक हो गए. नेताओं ने एक सुर में कहा कि एनसीपी का मतलब ही शरद पवार है, ऐसे में उनके अलावा कोई पार्टी को नहीं संभाल सकता, लेकिन इस बीच अजित पवार अकेले ऐसे शख्स थे जो इस फैसले से खुश नजर आए. अजित पवार ने साफ तौर पर कहा कि ये फैसला कभी न कभी लिया जाना था और इसे सभी को स्वीकार करना चाहिए. 


शरद पवार के इस्तीफे के बाद अजित पवार ने कहा था, आगे जिसे भी जिम्मेदारी दी जाएगी वो पवार साहेब के मार्गदर्शन में ही काम करेगा. इसलिए आप बार-बार फैसला वापस लेने की बात न करें. पवार साहेब ने अब फैसला ले लिया है, सभी को इसका सम्मान करना चाहिए." इस दौरान जब पवार को मनाने के लिए कार्यकर्ता गिड़गिड़ा रहे थे तो उन्हें भी अजित पवार डांट-डपटकर चुप कराते दिखे. 


कमेटी ने इस्तीफा किया नामंजूर
शरद पवार के इस्तीफे के बाद अजित पवार को अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा पूरी होती नजर आ रही थी, उन्हें लगा कि इसके बाद पार्टी की कमान उनके हाथों में होगी और फिर वो विधायकों को जो राह दिखाएंगे वो उसी पर चलेंगे. हालांकि ऐसा नहीं हुआ और अध्यक्ष के चुनाव के लिए बनाई गई 16 सदस्यीय कमेटी ने पवार के इस्तीफे को नामंजूर कर दिया. कमेटी ने साफतौर पर कहा कि पार्टी में पवार के कद का कोई नेता ही नहीं है. 


पार्टी को नुकसान का दिया तर्क
कमेटी के फैसले को लेकर एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा- "शरद पवार के फैसले से सभी लोग स्तब्ध थे. हमें इस बात की कल्पना भी नहीं थी कि शरद पवार इस तरह एक कार्यक्रम के दौरान अपने इस्तीफे का ऐलान करेंगे. इसके बाद मेरे जैसे तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं ने शरद पवार से मुलाकात की और उनसे कहा कि इस फैसले से पार्टी को नुकसान पहुंचेगा. 2024 के चुनाव पर भी इसका असर होगा. कार्यकर्ता एनसीपी को शरद पवार के तौर पर ही देखता है. इसीलिए कमेटी ने एकमत से प्रस्ताव पारित किया, जिसमें शरद पवार का इस्तीफा नामंजूर किया गया और उन्हें ही अध्यक्ष के तौर पर चुना."


क्या बचे हैं विकल्प?
अब एनसीपी की कमेटी ने शरद पवार तक अपना फैसला पहुंचा दिया है, जिसके बाद माना जा रहा है कि पवार इसे मान लेंगे और अपना कार्यकाल पूरा होने तक पार्टी की कमान संभालते रहेंगे. अगर वाकई ऐसा होता है तो ये अजित पवार के लिए फिर एक बड़ा झटका साबित होगा. इसके बाद उनके पास क्या विकल्प बचेंगे इस पर बात करते हैं. 


विधानसभा चुनावों तक इंतजार 
अजित पवार के पास पहला विकल्प तो ये है कि वो आने वाले विधानसभा चुनावों तक चुपचाप बैठकर इंतजार करें. क्योंकि एक साल बाद राज्य में चुनाव होंगे, ऐसे में अजित वेट एंट वॉच वाली पोजिशन में रह सकते हैं. क्योंकि एनसीपी लगातार महाराष्ट्र में मजबूत हो रही है, ऐसे में अगर सरकार बनाने वाले समीकरण बनते हैं तो इस बार कोशिश एनसीपी से मुख्यमंत्री बनाने की होगी. ढ़ाई-ढ़ाई साल वाला फॉर्मूला भी बन सकता है. ऐसे में अजित पवार ये उम्मीद कर सकते हैं कि उनके सिर सेहरा सजेगा. 


बीजेपी के साथ मिलकर बगावत
पिछले कई हफ्तों से अजित पवार को लेकर कहा जा रहा था कि वो बीजेपी के साथ संपर्क में हैं. इसे लेकर एनसीपी में हलचल भी तेज हुई थी, जिसमें कहा गया कि अजित पवार विधायकों से संपर्क साध रहे हैं. हालांकि शरद पवार ने अपनी ताकत से उनकी छटपटाहट को एक बार फिर शांत कर दिया, लेकिन अब अगर शरद पवार इस्तीफे का फैसला वापस लेते हैं तो ऐसे में अजित पवार गुस्से में कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं. वो भविष्य की परवाह किए बिना ही अपने समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी से हाथ मिला सकते हैं. एक बार पहले भी वो ऐसा कर चुके हैं.  


शरद पवार पहले भी दे चुके हैं झटके
अजित पवार की महत्वकांक्षाओं में सबसे बड़ा रोड़ा शरद पवार ही हैं. शरद पवार ने हर बार अजित पवार की उठती गर्दन को नीचे दबाने का काम किया है. जब 2019 में देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर अजित पवार ने सरकार बनाने का प्लान बनाया तो इसे शरद पवार ने तीन दिन में ही फेल कर दिया. पवार के एक इशारे पर विधायक एकजुट हो गए और अजित पवार गिने-चुने विधायकों के साथ खड़े रह गए. 


पवार का इस्तीफे वाला दांव
अब ताजा विवाद की बात करें तो पिछले कई दिनों से एनसीपी में अंदरूनी घमासान चल रहा था. अजित पवार पार्टी विधायकों में अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करने लगे थे और बीजेपी की तरफ फिर से उनका झुकाव बढ़ने लगा. इस बीच शरद पवार पर भी एमवीए गठबंधन से अलग होने का दबाव बनाया गया. आखिरकार शरद पवार ने एक कार्यक्रम के दौरान अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया. अजित पवार को लगा कि शरद पवार युग खत्म होने जा रहा है और उनके अच्छे दिन आने वाले हैं, लेकिन वो गलत थे. इसे शरद पवार के एक बड़े दांव की तरह देखा गया, जिससे वो अजित समेत आवाज उठाने वाले तमाम नेताओं को अपनी ताकत का एहसास करा रहे थे. 


यानी अबकी बार भी अजित पवार पर शरद पवार भारी रहे. माना जा रहा है कि आने वाले वक्त में भी ऐसा ही होगा. अगर विधानसभा चुनावों तक सब ठीक रहा और एनसीपी एक ताकतवर पार्टी के तौर पर उभरी तो अजित पवार के तेवर देखते हुए सरकार में किसी भी बड़े पद के लिए जगह सुप्रिया सुले को चुना जा सकता है. जिसका अंदेशा कहीं न कहीं अजित पवार को भी है. इसीलिए वो एनसीपी में शिवसेना के एकनाथ शिंदे बनना चाहते हैं. हालांकि शरद पवार के रहते ऐसा शायद ही मुमकिन हो.