Karnataka Election 2023: कर्नाटक चुनाव प्रचार का शोर आज शाम को आखिरकार थम जाएगा. पिछले कई दिनों से राज्य में जमकर प्रचार चला और तमाम मुद्दे हावी रहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह और बीजेपी के तमाम नेताओं ने ताबड़तोड़ रैलियां और रोड शो किए. वहीं कांग्रेस की तरफ से भी बसवराज बोम्मई सरकार के खिलाफ माहौल बनाया गया. क्यों चुनाव का आखिरी दिन है, ऐसे में हम आपको बताते हैं कि पिछले दिनों कौन से मुद्दे कर्नाटक में सबसे ज्यादा चर्चा में रहे और प्रचार के मामले में कौन किस पर भारी पड़ा. 


कांग्रेस ने इन मुद्दों पर लड़ा चुनाव
कर्नाटक में कांग्रेस ने कुछ वक्त तक जेडीएस के साथ मिलकर सरकार चलाई, लेकिन बाद में विधायकों की बगावत के बाद ये सरकार गिर गई और बीजेपी ने सरकार बनाई. इसके बाद से ही कांग्रेस हर मुद्दे पर बीजेपी सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है. फिर चाहे वो भ्रष्टाचार का मुद्दा हो या फिर मुख्यमंत्री बदलने का फैसला, कांग्रेस ने ऐसे तमाम मुद्दों पर राज्य सरकार को घेरने का काम किया. 


कांग्रेस ने उठाया भ्रष्टाचार का मुद्दा 
कर्नाटक में जिस एक मुद्दे पर बीजेपी सबसे ज्यादा बैकफुट पर रही वो भ्रष्टाचार का मुद्दा था. कांग्रेस ने बोम्मई सरकार पर आरोप लगाया कि वो हर कॉन्ट्रैक्ट पर 40 फीसदी कमीशन खा रही थी. बेलगावी में एक ठेकेदार ने बीजेपी के मंत्री पर ये आरोप लगाकर खुदकुशी कर ली थी कि उससे 40 फीसदी कमीशन  मांगा जा रहा था. इसके बाद कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने राज्य सरकार के मंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. नतीजा ये हुआ कि मंत्री ईश्वरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा और सरकार बुरी तरह घिर गई. कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और बाकी तमाम नेताओं ने हर मंच से 40% कमीशन वाली सरकार बोलकर बीजेपी पर तंज कसा. यहां तक कि चुनाव से पहले पूरे कर्नाटक में PayCM के पोस्टर लगाए गए. 


कॉन्ट्रैक्टर्स कमीशनखोरी के अलावा बोम्मई सरकार पर कई और तरह के भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे, जिन्हें प्रचार में कांग्रेस ने खूब भुनाया. इसमें मठ से 30 फीसदी की रिश्वतखोरी और स्कूलों के नाम पर रिश्वतखोरी जैसे आरोप शामिल थे. इसके अलावा केएसडीएल घोटाला और गुड़ निर्यात घोटाले ने भी बोम्मई सरकार की मुश्किलें बढ़ाईं. 


नंदिनी-अमूल विवाद
कर्नाटक चुनाव में नंदिनी दूध का मुद्दा भी खूब चर्चा में रहा. दूध बेचने वाली कंपनी अमूल ने एक ट्वीट किया, जिसमें उसने कहा कि वो बेंगलुरू में अपने प्रोडक्ट लॉन्च करने जा रही है. इसके बाद इस मामले ने जमकर तूल पकड़ लिया और कांग्रेस ने इसे हाथों हाथ लिया. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि गुजरात की अमूल कंपनी को बीजेपी कर्नाटक में लाकर यहां के लोकल ब्रांड नंदिनी को खत्म करने की कोशिश कर रही है. इसी बीच अमित शाह के भाषण की वो क्लिप भी निकाली गई, जिसमें वो अमूल के कर्नाटक में काम करने का जिक्र कर रहे हैं. चुनावी मंचों से भी कांग्रेस ने इस मुद्दे को भुनाने की खूब कोशिश की. 


मुस्लिम आरक्षण पर पॉलिटिक्स
कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे समुदायों को चुनावों में सबसे ज्यादा अहमियत मिलती है. इन दो समुदायों से विधायकों की संख्या सबसे ज्यादा होती है और मुख्यमंत्री भी पिछले कई सालों से इन्हीं समुदायों से बनते आए हैं. चुनाव से ठीक पहले इन्हें लुभाने के लिए बीजेपी ने मुस्लिम आरक्षण को खत्म करने का ऐलान कर दिया. मुस्लिम समुदाय को मिलने वाले 4 फीसदी आरक्षण को लिंगायत और वोक्कालिगा में बराबर बांट दिया गया. कर्नाटक में दो अहम समुदायों को लुभाने का ये बड़ा दांव था. हालांकि कांग्रेस ने इसके जवाब में चुनावी वादा किया कि वो अगर सत्ता में आते हैं तो मुस्लिम आरक्षण को बहाल कर दिया जाएगा. इसे कांग्रेस का अल्पसंख्यक समुदाय को लुभाने वाला कदम बताया गया. 


इस रणनीति के साथ चुनाव में उतरी बीजेपी
दक्षिण भारत के इकलौते राज्य में बीजेपी किसी भी हाल में सरकार बनाने की कोशिश कर रही है. इसके लिए उम्र का हवाला देते हुए बीजेपी की तरफ से येदियुरप्पा को हटाकर बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया था. जिसे बीजेपी के एक बड़े प्रयोग के तौर पर देखा गया, जो बाकी कई राज्यों में पार्टी कर चुकी थी. हालांकि कर्नाटक में ये दांव सही नहीं बैठा और आखिरकार पीएम मोदी और येदियुरप्पा के लिंगायत वोट बैंक के सहारे ही पार्टी ने आगे बढ़ने का फैसला किया. 


कर्नाटक में बीजेपी पीएम मोदी के सहारे ही चुनाव मैदान में उतरी, प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी शुरुआती रैलियों में राहुल गांधी के मोदी सरनेम वाले मामले को उछाला. जिसमें उन्होंने कहा कि ये लोग ओबीसी समुदाय, लिंगायत समुदाय को गाली देते हैं और जब इनसे भी जी ना भरे तो मोदी को गाली देते हैं. 


कांग्रेस के वार को ही बनाया हथियार
बीजेपी ने राज्य की सत्ता में आने के बाद हिजाब, हलाला और ऐसे ही तमाम मुद्दों को उछालकर हिंदुत्व के एजेंडे के तहत ध्रुवीकरण की कोशिश की, हालांकि बाकी राज्यों की तरह कर्नाटक में ये मुद्दे ज्यादा नहीं चल पाए. यही वजह है कि चुनावों में भी इनका ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया गया. हालांकि चुनाव की तारीखें नजदीक आते-आते बीजेपी को कांग्रेस ने खुद ऐसे मुद्दे हाथ में थमा दिए, जिनकी उसे जरूरत थी. 


सांप वाले बयान को भुनाया
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने चुनावी मंच से एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने जहरीले सांप का जिक्र किया. पीएम मोदी से जहरीले सांप की तुलना की गई. इसके बाद बीजेपी ने इस बयान को जमकर भुनाया. खुद पीएम मोदी ने हर मंच से खुद पर हुए इस हमले का जिक्र किया और इसे भगवान शिव से जोड़ दिया. पीएम मोदी ने कहा कि सांप तो भगवान शिव के गले का हार होता है और मैं जनता रूपी शिव के गले का हार हूं. बाद में इस बयान को लेकर खरगे को सफाई देनी पड़ी. 


बजरंग दल को बनाया बजरंग बली
कांग्रेस ने अपने चुनावी वादों में एक वादा ये भी किया है कि वो बजरंग दल जैसे संगठनों को बैन करने पर विचार करेंगे. पार्टी की तरफ से बजरंग दल की तुलना पीएफआई से की गई. ये मुद्दा कांग्रेस पर बुरी तरह बैक फायर कर गया. बीजेपी ने बजरंग दल को सीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरा मुद्दा भगवान के अपमान पर आ गया. खुद पीएम मोदी ने कहा कि भगवान राम के बाद अब ये लोग बजरंग बली को ताले में बंद करना चाहते हैं. जिस हिंदुत्व कार्ड को बीजेपी सही तरीके से नहीं खेल पा रही थी, इस मुद्दे के बाद उसे खुलकर सामने लाया गया. बजरंग बली के नाम पर ध्रुवीकरण की जमकर कोशिश हुई. जिसका चुनाव में कांग्रेस को नुकसान और बीजेपी को फायदा हो सकता है. 


केरला स्टोरी पर भी जमकर पॉलिटिक्स
द कश्मीर फाइल्स की तरह द केरला स्टोरी को लेकर भी जमकर बवाल हुआ, इसे कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने एक प्रोपेगेंडा बताया. चुनाव से ठीक पहले रिलीज हुई इस फिल्म को लेकर बीजेपी ने एक बार फिर कांग्रेस को घेरा और कहा कि वो सच्चाई से दूर भाग रहे हैं. खुद पीएम मोदी ने चुनावी मंच से इसका जिक्र किया और कहा कि केरल की असली सच्चाई फिल्म में दिखाई गई है. धर्म परिवर्तन और आईएसआईएस पर बनी इस फिल्म की गूंज चुनावी रैलियो में खूब सुनाई दी. बीजेपी ने हिंदुत्व पॉलिटिक्स के एक हथियार के तौर पर इसका इस्तेमाल किया. हालांकि देखना होगा कि बजरंग बली से लेकर भगवान शिव और केरला स्टोरी जैसे मुद्दों का नतीजों में कितना असर देखने को मिलेगा. 


क्या कहते हैं सर्वे?
चुनाव के लिए वोटिंग से पहले किए गए तमाम सर्वे में जनता का मन भी टटोला गया. जिसमें इन तमाम मुद्दों पर भी लोगों से सवाल किए गए. ज्यादातर सर्वे में ये पता चला कि लोगों के बीच बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे ही सबसे ज्यादा हावी हैं. हालांकि बजरंग दल, केरला स्टोरी और बाकी हिंदुत्व वाले मुद्दों का भी मिला-जुला असर दिखा. यानी कर्नाटक चुनाव में पिछड़ती दिख रही बीजेपी को कहीं न कहीं इन मुद्दों का फायदा मिला. कांग्रेस जहां शुरुआती दौर में बीजेपी पर भारी पड़ती दिख रही थी, वहीं चुनाव नजदीक आते ही मामला बराबरी का हो गया. कुल मिलाकर कर्नाटक में चुनाव नतीजे दिलचस्प हो सकते हैं और सरकार बनाने के लिए जोड़तोड़ की राजनीति भी देखने को मिल सकती है. 


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