Population Control Law India: भारत अब दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन चुका है. इस मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है. आजादी के बाद से भारत की आबादी में काफी बड़ा उछाल देखने को मिला है. इस बढ़ती आबादी को लेकर पिछले कुछ दशकों में चिंता तो जताई गई, लेकिन इसे रोकने के लिए कभी कुछ ठोस प्रयास नहीं किए गए. पिछले करीब 9 साल से मोदी सरकार सत्ता में है, ऐसे में आरएसएस की तरफ से लगातार जनसंख्या कानून बनाने की मांग उठती रही है. क्योंकि आरएसएस को बीजेपी से ही जोड़कर देखा जाता है, ऐसे में मोदी सरकार आबादी को बढ़ने से रोकने के लिए कानून ला सकती है. आज इसी जनसंख्या कानून की मांग और इस पर सरकार के रुख की बात करेंगे. 


संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की कुल जनसंख्या 142.86 करोड़ पहुंच गई है, जबकि चीन की कुल जनसंख्या 142.57 करोड़ है. यानी चीन के मुकाबले भारत में करीब 30 लाख लोग ज्यादा हो गए हैं. अब आबादी के मामले में भारत के नंबर-1 पायदान पर पहुंचने की खूब चर्चा हो रही है, इसी बीच कुछ लोग जनसंख्या नियंत्रण कानून की बात भी छेड़ने लगे हैं. आने वाले कुछ दिनों में ये एक बड़ा मुद्दा बन सकता है.  



काफी पुरानी है जनसंख्या नियंत्रण की मांग
भले ही भारत पहली बार जनसंख्या के मामले में दुनिया का नंबर-1 देश बना हो, लेकिन आबादी को नियंत्रण करने की मांग नई नहीं है. जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर पिछले कई दशकों से बहस चल रही है. 1970 के दशक से हम सभी 'हम दो हमारे दो' का नारा सुनते आए हैं. हालांकि कभी भी किसी सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के कानून को लागू करने की हिम्मत नहीं दिखाई. संजय गांधी ने एमरजेंसी के दौरान नसबंदी का अभियान चलाने के निर्देश दे दिए थे. इसके बाद भारत के अलग-अलग शहरों और गांवों में जबरन लोगों को पकड़कर नसबंदी की जाने लगी. एक साल में ही लाखों लोगों की नसबंदी कर दी गई. हालांकि जनसंख्या नियंत्रण के इस तरीके का खूब विरोध हुआ था. जिसका नतीजा ये रहा कि कांग्रेस को अगले लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार मिली. इसके बाद से किसी भी सरकार ने ऐसा कदम उठाने का सोचा भी नहीं. 


कानूनी अमलीजामा पहनाने की कोशिश
मोदी सरकार ने जनसंख्या कानून को लेकर साफ रुख कभी नहीं दिखाया. इसे लेकर सरकार के मंत्री अलग-अलग बयान देते रहे. इसे लेकर 2019 में जनसंख्या विनियमन विधेयक लाया गया था. जिसके तहत दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने पर सजा और सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित करने का प्रस्ताव रखा गया था. ये एक प्राइवेट मेंबर बिल था, जिसे आरएसएस नेता और बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने राज्यसभा में पेश किया था. इस बिल का जमकर विरोध हुआ था. बाद में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, आजादी के बाद से करीब 35 बार जनसंख्या नियंत्रण को लेकर बिल पेश किया गया, लेकिन आज तक इसे कानूनी अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है. 


जनसंख्या नियंत्रण पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट
जनसंख्या नियंत्रण को लेकर हमने संविधान विशेषज्ञ अरविंद जैन से बातचीत की. जिसमें उन्होंने बताया कि भारत में जनसंख्या को लेकर किसी तरह के कानून की जरूरत ही नहीं है. उन्होंने कहा, "देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून की नहीं बल्कि आर्थिक विषमता को कम करने की जरूरत है. हम लोग अपने सोर्सेस और रिसोर्सेस का सही इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं. इसीलिए दिक्कतें बढ़ रही हैं. जिस दिन हमने ऐसा कर लिया तो देश खुद ही तरक्की की राह पर चलने लगेगा. आज हालात ये हैं कि महज 5 फीसदी लोगों के पास देश की आधी संपत्ति है, जबकि 95 फीसदी के पास बाकी 50 परसेंट है. इस अंतर को कम करने की सख्त जरूरत है. आर्थिक संसाधनों का सही तरीके से बंटवारा हो जाए तो सब कुछ ठीक होगा."


सरकार का क्या है रुख 
जनसंख्या नियंत्रण कानून पर सरकार की तरफ से अलग-अलग बयान आते रहे हैं. जुलाई 2021 में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री भारती प्रवीण ने इस पर जवाब दिया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि मोदी सरकार टू-चाइल्ड पॉलिसी लाने पर विचार नहीं कर रही है और ना ही ऐसी किसी दूसरी योजना पर काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा था कि नेशनल फैमिली प्रोग्राम के जरिए ही जनसंख्या को नियंत्रित करने का काम किया जा रहा है. 


इस बयान के कुछ ही महीने बाद मोदी सरकार के दूसरे मंत्री ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर जल्द ही कानून लाया जाएगा. प्रहलाद पटेल ने रायपुर में मीडिया से बात करते हुए ये बयान दिया था. जिसकी खूब चर्चा हुई थी. इसके बाद आरएसएस के तमाम नेताओं ने भी इस मुद्दे को खूब उछाला था और कहा था कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून जरूरी है. 


पीएम मोदी ने किया था जिक्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बढ़ती जनसंख्या को लेकर लाल किल से बयान दिया था. 2019 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पीएम ने देश के लोगों से छोटे परिवार की अपील की. उन्होंने कहा, "हमारे यहां बेतहाशा जो जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, ये जनसंख्या विस्फोट हमारे लिए, हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए अनेक नए संकट पैदा कर सकता है." इस दौरान पीएम मोदी ने कहा था कि बच्चे के जन्म से पहले एक शिक्षित वर्ग उसकी जरूरतों के बारे में सोचता है. इससे न सिर्फ आपका बल्कि देश का भी भला होता है.


जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करना क्यों मुश्किल?
जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर तमाम अल्पसंख्यक समुदाय लगातार मुखर रहे हैं. खासतौर पर मुस्लिम नेताओं का कहना है कि ये कानून नहीं बनाया जाना चाहिए. वहीं संविधान के जानकारों का मानना है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून की बजाय अलग-अलग तरह से लोगों को प्रोत्साहित किया जा सकता है. लोगों को बैंक लोन, ब्जाय, रोजगार जैसी अलग-अलग चीजों में राहत देकर इसे ठीक किया जा सकता है. 


जनसंख्या नियंत्रण कानून को लागू करने के खतरों की बात करें तो इससे असुरक्षित गर्भपात के मामलों में भारी उछाल आ सकता है. क्योंकि देश में कई हिस्से ऐसे हैं, जहां गर्भनिरोधक सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती हैं, ऐसे में सजा से बचने के लिए महिलाओं को जबरन गर्भपात कराया जा सकता है. असुरक्षित गर्भपात से महिलाओं की जान को खतरा पैदा हो सकता है. इसी तरह के कुछ और खतरे भी हैं, जिन्हें कानून बनाने से पहले देखना और समझना जरूरी होगा. 


हर बार होता है हिंदू-मुस्लिम
जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने या इसका जब भी जिक्र होता है, तब हिंदू-मुस्लिम बहस छिड़ जाती है. कुछ मुस्लिम नेताओं का कहना है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून मुस्लिम विरोधी है. उनका आरोप है कि इस कानून को मुसलमानों को टारगेट करने के लिए लाया जाएगा. हालांकि ऐसा नहीं है, मुस्लिम समुदाय के अलावा देश में कई अल्पसंख्यक समुदाय रहते हैं. जिन पर जनसंख्या नियंत्रण कानून का असर ज्यादा हो सकता है. क्योंकि उनकी जनसंख्या वृद्धि दर काफी कम है और इसमें लगातार कमी भी आती जा रही है. इनमें पारसी, बौद्ध, जैन, ईसाई और ऐसे ही कुछ और समाज के लोग शामिल हैं. 


चीन को भुगतना पड़ा परिणाम
हमने जब संविधान एक्सपर्ट अरविंद जैन से बातचीत की तो उन्होंने ये साफ तौर पर कहा कि आज जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने की जरूरत ही नहीं है. संजय गांधी वाला दौर दूसरा था, जब लोग इतने शिक्षित और जागरुक नहीं थे. तब गर्भनिरोधक तरीकों का इस्तेमाल भी कम होता था. हालांकि आज ऐसा नहीं है. चीन ने जब अपनी वन चाइल्ड पॉलिसी की शुरुआत की थी, तब यही सोचा गया था कि जनसंख्या पर लगाम लग जाएगी. 1979 में शुरू हुई ये पॉलिसी करीब 30 साल तक चली. लेकिन इसका असर चीन की वर्किंग पॉपुलेशन पर पड़ने लगा. जिसके बाद चीन को अपनी इस वन चाइल्ड पॉलिसी पर विचार करना पड़ा. आज चीन लगातार बूढ़ा होता जा रहा है और यहां सरकार की तरफ से युवाओं को बच्चे पैदा करने की सलाह दी जा रही है. 


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