The Indigenous Howitzer: आजादी के बाद 75 साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि तिरंगे को दी जाने वाली 21 तोपों की सलामी (21-Gun Salute) में मेड-इन-इंडिया आर्टिलरी गन का इस्तेमाल किया गया. लाल किले में सोमवार को स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान पहली बार स्वदेशी होवित्जर तोप (Howitzer Gun), एटीएजी (ATAG), 21 तोपों की सलामी (21-Gun Salute) का हिस्सा बनी. यह डीआरडीओ (DRDO) ने विकसित की है. इस समारोह के दौरान उन्नत टोड आर्टिलरी गन सिस्टम - एटीएजीएस (Advanced Towed Artillery Gun System -ATAGS) का इस्तेमाल पारंपरिक ब्रिटिश मूल के 25 पाउंडर्स (25 Pounders) आर्टिलरी गन के साथ किया गया.


इस जश्न के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में आत्मनिर्भर भारत (Atmanirbhar Bharat) पर बात करते हुए बंदूक (Gun) का भी उल्लेख किया. पीएम मोदी ने कहा, "भारतीय इस ध्वनि से प्रेरित और सशक्त होंगे और इसीलिए आज मैं अपने सशस्त्र बलों को संगठित तरीके से अपने कंधों पर आत्मनिर्भरता की जिम्मेदारी निभाने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं."


21 तोपों की सलामी की परंपरा


हर साल 15 अगस्त पर प्रधानमंत्री के लाल किले (Red Fort) पर तिरंगा (Tricolour) फहराने के बाद सैन्य बैंड राष्ट्रगान बजाता है तो दूसरी तरफ तोपखाना रेजिमेंट (Artillery Regiment) 21 वॉली तोपों की उत्सवी सलामी देती है. वॉली गन से मतलब ऐसी बंदूक से है, जिसमें कई सिंगल-शॉट बैरल होते हैं,जो वॉली फायर में गोलों को एक साथ फायर करते हैं.


तोपों की सलामी की परंपरा पश्चिमी नौसेनाओं (से शुरू होती है. जहां बंदरगाहों से और उनके तरफ आने वाले जहाज एक खास तरीके से बंदूकों से फायर किया करते थे, ताकि यह साफ किया जा सके कि उनका  युद्ध का कोई इरादा नहीं है. बाद में इस परंपरा को आधिकारिक स्वागत में सम्मान देने के तरीके के रूप इस्तेमाल किया जाना लगा. इसे क्राउन (Crown), रॉयल्स, सैन्य कमांडरों और राज्यों के प्रमुखों के स्वागत सम्मान में इस्तेमाल किया जाने लगा. 


भारत को यह परंपरा ब्रिटिश शासकों (British Ruler) से विरासत में मिली. ब्रितानी हुकूमत में पद और रुतबे के हिसाब से 101 वॉली, 31 वॉली और 21 वॉली बंदूक की सलामी दी जाती थी. इसी तरह पद और रुतबे के आधार पर भारत में गणतंत्र दिवस (Republic Day), स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) और अन्य अवसरों के साथ-साथ राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह के वक्त भी तोपों की सलामी दी जाती है.


इन वर्षों में दी जाने वाली 21 तोपों की सलामी की परंपरा विश्व युद्ध युग (World War Era) के ब्रिटिश होवित्जर पर आधारित है. इसमें खाली गोले फायर किए जाते हैं. इसे ऑर्डनेंस क्विक फायर 25 पाउंडर या सिर्फ '25 पाउंडर' के रूप में जाना जाता है.


एटीएजीएस ने दागे गोले


एटीएजीसी को ही होवित्जर कहा जाता है जो छोटी तोपे होती हैं. दूसरे विश्व युद्ध में जब बड़ी तोपों को इधर-उधर लाने ले जाने में परेशानी होने लगी तो छोटी तोप बनाई गई और यही तोपे होवित्जर (Howitzer Gun) नाम से पहचानी गई. इस साल दो उन्नत टोड आर्टिलरी गन सिस्टम-एटीएजीएस होवित्जर बैटरी में शामिल हो गए, जिसने अन्य 25 पाउंडर्स के साथ फायर किया गया. होवित्जर अन्य तोपखाने उपकरणों की तरह आमतौर पर एक समूह में व्यवस्थित होते हैं जिसे बैटरी कहा जाता है.


जैसा की इसके एटीएजीएस नाम से जाहिर है कि ये ट्रक से खींची जा सकने वाली तोप है. यह तोप स्वदेशी है और इसकी क्षमता 155*52 एमएम है. इसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन- डीआरडीओ ने बनाया है. इसमें डीआरडीओ पुणे की सुविधा आयुध अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान-एआरडीई नोडल एजेंसी है. स्वतंत्रता दिवस समारोह से पहले एटीएजीएस के कुछ अभ्यास फायरिंग सत्र किए गए थे. सेना के अधिकारियों का कहना है कि 21 तोपों की सलामी के प्रतीकात्मक काम में एटीएजीएस को शामिल करना इस सफर का एक अहम कदम है और सेना में इसे शामिल करने की दिशा में ये बेहद महत्वपूर्ण है.


किसने बनाई एटीएजीएस 


एटीएजीएस प्रोजेक्ट को डीआरडीओ ने 2013 में भारतीय सेना में पुरानी तोपों को आधुनिक 155 मिमी आर्टिलरी गन से बदलने के लिए शुरू किया था. नोडल प्रयोगशाला के रूप में एआरडीई के साथ डीआरडीओ की अन्य सेवा सुविधाएं भी इसके विकास में शामिल हुई. इनमें इंस्ट्रूमेंट्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट, व्हीकल रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट, प्रूफ एंड एक्सपेरिमेंटल एस्टाब्लिशमेंट, सेंटर फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स सहित रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स अनुप्रयोग प्रयोगशाला शामिल रहीं. एआरडीई ने इस विशेष प्रणाली के निर्माण के लिए भारत फोर्ज लिमिटेड और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड के साथ सहयोग किया है.


इसका सफल टेस्ट साल 14 जुलाई 2016 को हुआ था. जब बालासोर (Balasore) में डीआरडीओ के प्रूफ एंड एक्सपेरिमेंटल एस्टाब्लिशमेंट (पीएक्सई) में तकनीकी परीक्षणों के दौरान एटीएजीएस की प्रूफ-फायरिंग की थी. इसके बाद अगस्त और सितंबर 2017 में, पोखरण (Pokhran) फील्ड फायरिंग रेंज में लगभग 48 किमी की रिकॉर्ड लक्ष्य सीमा हासिल की गई थी. साल 2020 में इसके परीक्षण के दौरान बैरल फटने से हादसा हुआ और चार कर्मचारी घायल हो गए. इसके बाद जून 2021 में 15,000 फीट की ऊंचाई पर एटीएजीएस का सफल परीक्षण किया गया.


इसके बाद 26 अप्रैल, 2022 से 3 मई तक पोखरण फील्ड फायरिंग रेंज में एक हफ्ते तक इसका परीक्षण चला था. इसके बाद मौसम और इलाकों की स्थितियों के आधार पर इसके कई टेस्ट किए गए. मौजूदा वक्त में एटीएजीएस का मूल्यांकन गुणवत्ता आश्वासन महानिदेशालय-डीजीक्यूए (Directorate General Quality Assurance-DGQA)  कर रहा है. सेना में इसके इस्तेमाल से पहले इस पर आखिरी फैसला डीजीक्यूए करता है. डीजीक्यूए सशस्त्र बलों को आपूर्ति किए जाने वाले सभी हथियारों, गोला-बारूद, उपकरण और स्टोर की गुणवत्ता के आश्वासन के लिए एक नोडल एजेंसी है.


एटीएजीएस की खासियत


बोफोर्स तोप की तुलना में एटीएजीएस के गोले 48 किलोमीटर की दूरी तक मार करते हैं जबकि बोफोर्स तोप 32 किमी तक ही दागी जा सकती है. 155 एमएम की एटीएजीएस तोप दुनिया में सबसे अधिक दूरी तक गोले दागने में सक्षम है. तापमान के मामले में भी ये सटीक है. 30 डिग्री से 75 डिग्री सेल्सियस तक ये फायर कर सकती है. हर मिनट इसकी 26.44 फुट लंबी बैरल से 5 गोले दागे जा सकते हैं. इसमें सेल्फ लोड सिस्टम बिल्कुल आटोमैटिक राइफल जैसा है. इसमें लोड करने की आटोमैटिक तकनीक है तो निशाना लगाने के लिए थर्मल साइट सिस्टम भी है. इसके रात में भी आसानी से निशाना साधा जा सकता है. ये वायरलेस कम्युनिकेशन से भी लैस है.


भविष्य की भूमिका


डीआरडीओ के बनाए गए एटीएजीएस की विकास प्रक्रिया आयुध निर्माण बोर्ड (Ordnance Factory Board) के पहले बनाए गए भारत उन्नत हथियार और उपकरण होवित्जर धनुष (Howitzer Dhanush) से मिलती है. साल 2019 में, सेना और रक्षा मंत्रालय ने 114 धनुष के थोक उत्पादन के लिए मंजूरी दी. अधिकारियों को उम्मीद है कि मेक इन इंडिया के तहत दो प्रमुख उत्पाद एटीएजीएस और धनुष आने वाले दिनों में तोपखाने से पुराने सिस्टम को सफलतापूर्वक बदल देंगे.


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