नई दिल्ली: भारतीय संसदीय प्रणाली को मुख्य तौर पर तीन भागो में बांटा गया है. पहला राज्यसभा, दूसरा लोकसभा और तीसरा राष्ट्रपति. लोकसभा को आम जनता का सदन भी कहा जाता है. यह निचला सदन होता है. जबकि राज्यसभा संसद का ऊपरी सदन होता है. राज्यसभा का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 80 में तो वहीं लोकसभा का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 81 में किया गया है. दोनों ही सदनों का लोकतंत्र की इस प्रणाली में काफी महत्व है. ऐसे में आइए आज जानते हैं लोकसभा और राज्यसभा के बीच क्या-क्या अंतर है और साथ ही यह भी जानते हैं कि दोनों सदन को क्या-क्या विशेष शक्तियां दी गईं हैं.


लोकसभा और राज्यसभा में अंतर


सदस्यों का चयन


लोकसभा में सदस्य आम जनता द्वारा मतदान प्रक्रिया से चुने जाते हैं. इस मतदान में सभी जो 18 साल से उपर हैं और उनका वोटर कार्ड बना हुआ है वो हिस्सा लेते हैं,  जबकि राज्यसभा में सदस्य राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं.


कार्यकाल


लोकसभा का अधिकतम कार्यकाल पांच साल होता है तो वहीं राज्यसभा एक स्थायी सदन है और यहां एक तिहाई सदस्य दो साल में रिटायर होते हैं. राज्यसभा का कार्यकाल छह साल का होता है.


सीटों की संख्या


लोकसभा में सीटों की अधिकतम संख्या 552 है जबकि राज्यसभा में 250 है.


मनोनीत सदस्य

भारत के राष्ट्रपति लोकसभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय के 2 सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं तो वहीं राज्यसभा में राष्ट्रपति 12 कला, शिक्षा, समाजसेवा एवं खेल जैसे क्षेत्रों से संबंधित लोगों मनोनीत करता है.


उम्र

लोकसभा में सदस्य बनने के लिए न्यूनतम 25 साल को होना जरूरी है जबकि राज्य सभा में आयु सीमा 30 साल है.


बिल


धन विधेयक को केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है. यह सदन देश में शासन चलाने हेतु धन आवंटित करता है. वहीं राज्यसभा की बात करें तो धन विधेयक के संबंध में ऊपरी सदन को अधिक शक्तियां प्राप्त नहीं है.


अध्यक्षता


लोकसभा के बैठकों की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करते हैं, जबकि राज्य सभा में अध्यक्षता उप-राष्ट्रपति करते हैं.


शक्ति


दोनों सदनों की शक्ति की बात की जाए तो कई मामलों में दोनों का अधिकार एक समान है तो वहीं कई मामलों में एक दूसरे से ज्यादा या कम..आईए जानते हैं इसके बारे में


समान अधिकार


-संसद में साधारण विधेयकों को लाना और पारित किया जाना
-संविधान संशोधन विधेयक को पारित करवाना


-राष्ट्रपति का निर्वाचन और महाभियोग और उपराष्ट्रपति को निर्वाचन और पद से हटाया जाना आदि..


लोकसभा को इन मामलों में अधिक शक्ति प्राप्त है


-धन विधेयक लोकसभा में लाया जा सकता है. इसके राज्य सभा में नहीं लाया जा सकता है. राज्यसभा इस धन विधेयक को अस्वीकृत या संशोधन नहीं कर सकती है. राज्यसभा को इस बिल को सिफारिश या बिना सिफारिश के 14 दिन के भीतर लोकसभा को वापस भेजना होता है. वह इस पर रोक नहीं लगा सकती है. कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इसका फैसला लेने का अधिकार लोकसभा अध्यक्ष के पास होता है.


-राज्यसभा सिर्फ बजट पर चर्चा कर सकता है उसके अनुदान के मांगों पर मतदान करने का अधिकार नहीं है.


-राष्ट्रीय अपातकाल समाप्त करने का संकल्प लोकसभा द्वारा पारित किया जा सकता है.


राज्यसभा की विशेष शक्तियां


दो शक्तियां ऐसी है जो राज्यसभा के पास तो हैं लेकिन लोकसभा के पास नहीं है. पहली यह कि यह संसद को राज्य सूची (अनुच्छेद 249) में से विधि बनाने हेतु अधिकृत कर सकती है. वहीं दूसरी शक्ति की बात करें तो राज्यसभा संसद को केंद्र और राज्य दोनों के लिए नई अखिल भारतीय सेवा के सृजन हेतु अधिकृत कर सकती है (अनुच्छेद 312)