IT Rules 2023: केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 को अधिसूचित किया है. ये साल 2021 के संशोधन नियमों में संशोधन करते हैं. इसकी अधिसूचना 6 अप्रैल, 2023 को जारी की गई थी और उसी तारीख से प्रभावी है. इसे लेकर कांग्रेस ने बीजेपी पर जुबानी हमला बोला है.


कांग्रेस ने कहा कि ऐसा कर सरकार ने खुद को एकाधिकार दे दिया है. फेक न्यूज या मिस इंफॉर्मेशन जो केंद्र सरकार के खिलाफ है उस पर एक इंडिपेंडेट यूनिट जो सरकार के तहत रहेगी वो बॉडी फैक्ट चेक करेगी. सरकार उनसे कह कर उस न्यूज़ को हटा सकती है. उधर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया को भी इस पर एतराज है. उसका मानना है कि ये प्रेस की आजादी पर हमला है.


सरकार के इस कदम की इंटरनेट और फ्री स्पीच एक्टिविस्ट ने तीखी आलोचना की है. उनका कहना है कि इससे सेंसरशिप को बढ़ावा मिलेगा. आइए यहां जानते हैं कि ये संशोधन क्या है और इस पर आपत्तियां क्यों हैं?


क्यों हैं संशोधनों पर एतराज?


इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार (MeitY) के गुरुवार (6 अप्रैल) को विरोधों और एतराजों को दरकिनार कर  सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 को अधिसूचित कर दिया. दरअसल इसके तहत किसी भी पोस्ट या न्यूज की विश्वसनीता जांचने के लिए एक अलग बॉडी यानी निकाय बनाया जाएगा.


2023 संशोधन नियम (MeitY) को केंद्र सरकार की फैक्ट चेकिंग निकाय को सूचना देने की शक्ति देता है. ये निकाय केंद्र सरकार के किसी भी व्यवसाय के बारे में फेक या गलत या भ्रामक ऑनलाइन सामग्री की पहचान करेगा. एक तरह से देखा जाए तो आईटी नियम संशोधन केंद्र सरकार को उसके बारे में  सोशल मीडिया में 'फेक न्यूज' की पहचान करने का अधिकार देता है.


ये तय करेगा कि कौन सी पोस्ट और खबर फर्जी या भ्रामक है. ये बॉडी इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंडर काम करेगी. ये निकाय सभी इंटरनेट कंपनियों की सामग्रियों की जांच करेगा. इन कंपनियों में गूगल, फेसबुक, ट्विटर से लेकर सभी तरह की न्यूज और गैर- न्यूज कंपनियां आती हैं. 


निकाय की जांच के दायरे में अगर कोई पोस्ट,खबर फर्जी या गलत पाई जाएगी तो सरकार उससे जुड़ी कंपनी को इस कॉन्टेंट को हटाने का आदेश देगी. इसमें इंटरनेट सेवाएं देने वाली कंपनियों को ऐसे कॉन्टेंट का यूआरएल को भी डिलीट करना होगा. इसे लेकर MeitY ने कहा है कि यदि इंटरनेट कंपनियां फैक्ट चेकर निकाय की जांच की गई गलत या भ्रामक जानकारी को अपने प्लेटफॉर्म से हटाने में नाकामयाब होंगी तो अपना तो उन्हें अपने विशेषाधिकार से हाथ धोना पड़ेगा.


दरअसल ये विशेषाधिकार कानून मध्यस्थ को उसके यूजर के किसी भी आपत्तिजनक सामग्री ऑनलाइन पोस्ट करने पर उन पर कानूनी कार्रवाई होने से बचाता है, लेकिन नए नियम में संशोधनों के तहत अब फर्जी या गलत जानकारी को न हटाने की स्थिति में ये कंपनियां भी कार्रवाई के जद में आएंगी.  इसके साथ ही इस तरह के कॉन्टेंट को सोशल मीडिया पर डालने वाले यूजर पर भी कार्रवाई होगी.


इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर के मुताबिक, इंटरनेट प्लेटफॉर्म के साथ ही गूगल, फेसबुक, ट्विटर और इंटरनेट सेवा प्रदाता जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी एक मध्यस्थ की जद में आते हैं.


ऑनलाइन गेमिंग के नियम भी शामिल


सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 संशोधन नियमों में अब ऑनलाइन गेमिंग से संबंधित नियमों को भी शामिल किया है. इसमें  "ऑनलाइन गेम" की परिभाषा शामिल की गई है. ऑनलाइन गेम को एक ऐसे गेम के तौर पर परिभाषित किया जाता है जो इंटरनेट पर हैं और यूजर्स की इनकी कंप्यूटर या मोबाइल के जरिए पहुंच है.


इसके तहत एक ऑनलाइन गेमिंग मध्यस्थ (Intermediary) जो यूजर्स को किसी भी जायज ऑनलाइन रियल मनी गेम तक पहुंचने में सक्षम बनाता है. वह अपने यूजर को जल्द से जल्द 24 घंटे के अंदर इस तरह के नियम बदलावों की सूचना देगा. वह इस तरह के जायज ऑनलाइन रियल मनी गेम पर ऑनलाइन गेमिंग स्व-नियामक निकाय के ऐसे ऑनलाइन गेम के सत्यापन का एक साफ और दिखाई देने वाला मार्क भी प्रदर्शित करेगा. 


क्या कहना है सरकार का?


इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर (Rajeev Chandrasekhar) ने कहा है कि सरकार से संबंधित वो सभी सामग्री जिसे फर्जी सूचना या गलत सूचना के तौर पर लिया जाता है. उसकी जांच और निगरानी के लिए ही ये सरकारी तथ्य-जांच निकाय बनाया गया है.


ये केवल केंद्र सरकार की योजनाओं से संबंधित जानकारी के लिए जिम्मेदार होगा और बिचौलियों को उस सामग्री के बारे में सूचित करने के लिए उसके अनुरूप नोटिस भेजेगा जिसे फर्जी, भ्रामक या गलत सूचना माना गया है.  उन्होंने कहा, "प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) इस तथ्य-जांच निकाय के कार्य के लिए "पसंदीदा एजेंसी" है, इस काम के लिए सरकार की नियुक्त अन्य तथ्य-जांच संगठनों को भी भविष्य में अधिसूचित किया जा सकता है." 


हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि पीआईबी को फैक्ट चेक के लिए साफ तौर पर नहीं कहा गया है. इसका वजह ये है कि इसे आईटी नियम के तहत अधिसूचित नहीं किया गया है. इस बीच मध्यस्थों की तरफ से सरकार को एक फैक्ट चेकर के बारे में जानकारी देने के लिए कहा गया है, जिस पर वे फर्जी सूचनाओं के बारे में फैसला ले पाएं. इस पर मंत्री ने कहा कि फैक्ट चेक के बारे में 'क्या करें' और 'क्या न करें' को अधिसूचित करने से पहले शेयर किया जाएगा. 


इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है. उन्होंने कहा, "यह अनिवार्य नहीं है कि जांच के लिए अधिसूचित संगठन जो कहता है उसे माना जाए या उसके कहने पर फर्जी या भ्रामक सामग्री हटाई जाए, लेकिन ऐसा न करने पर फिर संबंधित कंपनी को कानून के तहत अदालत में इससे निपटना होगा." इस संशोधन की आलोचना पर पलटवार करते हुए मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा, “यह सेंसर करने की कोई कोशिश नहीं है.


प्रेस की आजादी पर होगा असर


वहीं डिजिटल अधिकार संगठन, इंटरनेट फ़्रीडम फ़ाउंडेशन (IFF) ने कहा कि सरकार के इस कदम का "भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार पर खास तौर से समाचार प्रकाशकों, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं पर बेहद खराब असर पड़ेगा.  एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) के मुताबिक नए आईटी नियमों से देश में प्रेस की आजादी पर अच्छा असर नहीं पड़ेगा. उसने सरकार की फैक्ट चेकिंग यूनिट पर भी सवाल खड़े किए हैं. 


इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने जब  जनवरी में पहली बार ये संशोधन नियम प्रस्तावित किए थे. उस वक्त भी इनका खासा विरोध हुआ था. इसके बाद आखिरी ड्राफ्ट से पीईबी का संदर्भ हटा लिया गया था. उस दौरान भी एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा था कि केवल एक अकेले सरकार ही फर्जी खबरों को तय करने का फैसला नहीं कर सकती है. वहीं न्यूज ब्रॉडकास्टर्स और डिजिटल एसोसिएशन ने कहा था कि इसका मीडिया पर अच्छा असर नहीं पड़ेगा. इसे वापस लिए जाने की बहुत जरूरत है. 


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