मेरा दिल  कोई आपका हिंदुस्तान नहीं जिस पर आप हुकूमत करें... 


मुग़ल-ए-आज़म का ये सिर्फ डायलॉग नहीं है बल्कि वो याद है जिसे सुनते ही उनकी छवि दिमाग में उभर जाती है. वो ऐसे एक्टर थे जिन्होंने एक्टर बनने का ख्वाब नहीं देखा लेकिन सुपरस्टार बन गए, उन्होंने ज़ीरो से शुरुआत की और अपने करियर के पीक पर ब्रेक भी लिया...लेकिन उनकी अदाकारी ऐसी थी कि लोगों ने हमेशा उन्हें अपने दिल में बसाकर रखा.


आज बॉलीवुड के पहले किंग खान हमारे बीच नहीं रहे. चाहें मुगले-आज़म जैसी फिल्मों में उनकी अदाकारी की बात हो या फिर मधुबाला से प्यार के किस्से... तमाम वजहों से दिलीप कुमार अपने फैंस और सिनेमाप्रेमियो के दिलों में छाए रहेंगे. दिलीप कुमार ने अपने करियर में हर तरह की फिल्में की. उन्होंने रील और रीयल लाइफ में प्यार की सारी हदें तोड़ीं तो वहीं जब दिल टूटने वाले प्रेमी बने तो ट्रेजडी किंग कहलाए. 


उन्होंने संगदिल में कहा- मैं किसी से नहीं डरता, मैं जिंदगी से नहीं डरता, मैं मौत से नहीं डरता, अंधेरे से नहीं डरता, डरता हूं सिर्फ खूबसूरती से.


तो मुगल-ए-आजम में कहा- मोहब्बत जो डराती है वो मोहब्बत नहीं...अय्याशी है...गुनाह है.


पहली फिल्म रही फ्लॉप लेकिन किस्मत चमक गई


1200 रुपये सैलरी के साथ दिलीप कुमार ने बॉम्बे टॉकीज में काम शुरु किया था. देविका रानी ने उन्हें ज्वार भाटा में कास्ट किया. अपनी बायोग्राफी Dilip Kumar: The Substance and The Shadow में उन्होंने लिखा है, ''मैंने अपनी लाइफ में कभी फिल्म स्टूडियो नहीं देखा था. यहां तक कि फोटो में भी नहीं देखा था. मैंने सिर्फ इस बारे में सुना था. स्टूडियों में मैं पहली बार जब देविका रानी से मिला तो उनके एक सवाल ने मेरी जिंदगी बदल दी. उन्होंने पूछा था कि क्या तुम 1250 रुपये की सैलरी पर यहां काम करोगे. उस वक्त मुझे पता नहीं था कि क्या जवाब दूं.''




यहीं पर  देविका रानी ने उन्हें पहली फिल्म ज्वार भाटा में काम किया. दिलीप कुमार का पहला सीन वो था जिसमें उन्हें दौड़ते हुए जाकर हीरोइन को बचाना था. यहां पर वो इतनी तेज दौड़े कि कैमरे में सब ब्लर रिकॉर्ड हुआ. पनी किताब में लिखते हैं कि उन्हें समझाया कि दौड़ना कैसे है.


अंदाज से मिला बड़ा ब्रेक


ये फिल्म तो नहीं चली लेकिन इससे उनकी किस्मत जरुर चमक गई. जुगनू में नुरजहां के साथ उनकी जोड़ी को पसंद किया गया और उन्हें पॉपुलैरिटी मिली. 1949 में रिलीज हुई फिल्म अंदाज ने उनके करियर को बड़ा ब्रेक दिया. इस फिल्म को महबूब खान ने बनाया जिसमें उनके साथ नरगिस और राज कपूर थे. इसके बाद इसी साल शबनम रिलीज हुई ये फिल्म भी हिट रही.



1952 में रिलीज हुई संगदिल फिल्म के साथ उनका ये डायलॉग भी सुपरहिट रहा. 50 के दशक में दिलीप कुमार ने बहुत सारी हिट फिल्में दीं. जोगन (1950),बाबुल (1950), हलचल (1951), दीदार (1951), तराना (1951), दाग (1952), , शिकस्त (1953), अमर (1954), उड़न खटोला (1955), इंसानियत (1955) इसमें देवानंद थे, देवदास (1955), नया दौर (1957), यहूदी (1958), मधुमती (1958) और पैगाम (1959)..


डिप्रेशन में चले गए थे दिलीप कुमार


इनमें से कुछ फिल्मों में उन्होंने ऐसे रोल किए कि उन्हें "Tragedy King" कहा जाने लगा. इसके बाद वो डिप्रेशन में चले गए. वो मनोचिकित्सक के पास भी पहुंचे और उनकी सलाह पर उन्होंने हल्की फुल्की फिल्में करनी शुरु कर दीं.


1952 में महबूब खान की फिल्म आन में उन्होंने कॉमेडी रोल किया जिसे पसंद किया गया. इसके बाद उन्होंने 1955 में आजाद और 1960 में कोहिनूर जैसी फिल्मो में कॉमेडी रोल्स किए.


कमाई के बड़े रिकॉर्ड बनाए



दिलीप कुमार कितने बड़े स्टार थे इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि 1950 के दशक में Top 30 highest-grossing फिल्मों में से उनकी नौ फिल्में थीं. वहीं उनकी फिल्म मुगल-ए-आजम ने ऐसा इतिहास रचा कि 11 सालों तक कोई रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाया था. के. आसिफ की इस फिल्म में दिलीप कुमार ने इसमें प्रिंस सलीम का रोल निभाया. 1960 में रिलीज हुए ये फिल्म उस जमाने की Highest-Grossing फिल्म बन गई. 1971 में रिलीज हुई हाथी मेरे साथी और 1975 में रिलीज हुई शोले ने इस फिल्म को पीछे छोड़ा.


काम से ब्रेक की बात से शॉक्ड हो गई थीं सायरा बानो


1976 में बैराग फिल्म के बाद दिलीप कुमार ने काम से ब्रेक ले लिया. उनका कहना था कि वो थक गए थे और उन्हें छुट्टियों की बहुत जरुरत थी. लेकिन उनके इस फैसले से सायरा बानो खुश नहीं थीं.




वो लिखते हैं,  ''जब मैंने सायरो को इस बारे में बताया तो वो शॉक्ड हो गई थी. उसे लग रहा था कि मैं बड़ी मिस्टेक कर रहा हूं. मैंने फिर काफी समय तक उसे इस बारे में एक्स्प्लेन किया.'' उनका कहना था वो फिल्मों को लेकर बहुत डेस्पेरेट नहीं थे. जब उन्होंने ब्रेक लिया तब उनके पास सांस लेने की फुरसत नहीं थी लेकिन वो घूमना चाहते थे, अपने लिए थोड़े सुकून के पल गुजारना चाहते थे.


कमबैक करते ही सुपरहिट फिल्म दी



ब्रेक के बाद 1981 में क्रांति फिल्म का आइडिया लेकर मनोज कुमार उनके पास आए थे. बिना स्क्रिप्ट पढ़े ही वो इस फिल्म के लिए तैयार हो गए थे. उनकी कमबैक फिल्म क्रांति जब 1982 में रिलीज हुई तो ब्लॉकबस्टर साबित हुई. इसके बाद उन्होंने सुभाष घई के साथ विधाता की. इसके अलावा कर्मा सौदागर, शक्ति और मशाल जैसी हिट फिल्में दीं.


एक लाख फीस लेने वाले पहले स्टार थे दिलीप कुमार


आज फिल्मों में कौन कितनी फीस लेता है इसकी खूब चर्चा होती है. दिलीप कुमार पहले ऐसे एक्टर थे जिन्होंने उस दौर में सबसे पहले अपनी फीस एक लाख कर दी थी. वो सबसे महंगे एक्टर थे. 1950 के दशक में ये रकम बहुत ज्यादा थी. इसके बावजूद उनके पास फिल्मों की भरमार थी.


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