काबुल: आज दुनिया के सामने अफगानिस्तान की छवि एक ऐसे मुल्क की है जहां पर कट्टरवाद बड़े पैमाने पर मौजूद है. माना जाता है कि यहां की महिलाओं के अधिकार बहुत ही सीमित हैं और उन्हें हर छोटी चीजों के लिए भी पुरषों पर निर्भर रहना पड़ता है. इसकी एक बड़ी वजह अफगान तालिबान को माना जाता है. लेकिन पिछले हफ्ते अफगानिस्तान की ज़ोहरा इल्हाम ने अमेरिकन आइडल का 14वां अफगान संस्करण जीत कर इस धारणा को तोड़ने की कोशिश की है.

ज़ोहरा ने पारंपरिक पोशाक पहन कर जब अपनी मनमोहक आवाज में गाना गाया तो सभी दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए. ज़ोहरा ने अपनी दिलकश आवाज में फारसी लोक गीत गाकर सभी को हैरान कर दिया था. इस जीत के बाद ज़ोहरा ने कहा कि मुझे अपनी जीत पर बहुत गर्व है. लेकिन मैं इकलौती महिला हूं जिसने ये प्रतियोगिता जीती है, ये जानकर मुझे एकदम से झटका लगा था. बता दें कि अफगान स्टार के अब तक 14 सीजन आ चुके हैं. लेकिन इसके 13 सीजन सिर्फ पुरषों ने ही जीते थे.

संगीत में अपना भविष्य देखती हैं ज़ोहरा, जस्टिन बीबर की हैं फैन

ज़ोहरा ने कहा कि उनका राजनीति में जाने का कोई इरादा नहीं है. लेकिन अगर तालिबान फिर से अफगानिस्तान की राजनीति में लौटता है तो मैं संगीत से उनके खिलाफ लड़ाई करूंगी. जस्टिन बीबर की फैन ज़ोहरा ने कहा कि मैं संगीत में अपनी भविष्य देखती हूं और इसे में आगे जाना चाहती हूं. ज़ोहरा के परिवार में कोई भी संगीत से जुड़ा हुआ नहीं है. लेकिन उन्हें सगीत का शौक है. उन्हें गाना गाने की प्रेरणा कहां से मिली है इस पर उनका कहना था कि वो यूट्यूब पर आर्यना सईद के वीडियो देखतीं थीं. आर्यना सईद के वीडियो देखकर की उन्हें गाना गाने की प्रेरणा मिली.

आर्यना सईद के यूट्यूब वीडियो देखकर मिली गाना गाने की प्रेरणा

ज़ोहरा ने अपनी इस जीत के बाद अफगान लड़कियों के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर कहा, "अफगानिस्तान की महिलाओं के लिए मेरी आवाज महत्वपूर्ण है. मेरे गाने से अन्य लड़कियों को भी साहस मिलेगा. जब मैंने आर्यना सईद जैसी लड़की को गाते देखा तो मैंने खुद से सोचा, 'अगर वो कर सकती हैं, तो मेरे भी उनके जैसे दो हाथ और दो पैर हैं. मैं क्यों नहीं कर सकती.''

बता दें कि आफगानिस्तान की सियासत में तालिबान की एंट्री के बाद देश आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक मोर्चे पर बुरी तरह से लड़खड़ा गया था. तालिबान ने अफगानिस्तान में नाच-गाने पर प्रतिबंध लगा था दिया था. इसके साथ ही महिलाओं को लेकर भी काफी कट्टरपंथी रुख अख्तियार कर लिया था. पिछले कुछ वक्त में हालात बदले हैं, लेकिन अभी भी कुछ क्षेत्र तालिबानी प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाए हैं.

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