Top 10 worst movies of 2021: बॉलीवुड में आज भी कई डायरेक्टर्स ऐसे हैं जो स्टार्स के नाम पर अपनी खराब स्टोरी को दशर्कों को बेचते आए हैं. लेकिन वो शायद भूल गए है की जमाना डीजिटल हो गया है. यहां दशर्कों को स्टार्स  के नाम पर बेवकूफ बनाने की स्कीम अब काम नहीं आएगी. इस साल भी बॉलीवुड में कई ऐसी फिल्में आईं जो फ्लॉप साबित हुईं. इस लिस्ट में देखिए बॉलीवुड की वो 10 फिल्में जिनको देखने से आपको बचना होगा.


Radhe Review


ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 के जीप्लेक्स पर रिलीज हुई राधेः योर मोस्ट वांटेड भाई कोरियाई फिल्म द आउटलॉज (2017) से प्रेरित है. राधे ऐसे स्पेशल पुलिस अफसर की कहानी है, जो सीन में तब आता है जब सारी फोर्स नाकाम हो जाती है. मुंबई में नया ड्रग डॉन आया है, राणा (रणदीप हुड्डा). स्कूल-कॉलेज में बच्चों को वह नशीले पदार्थों की लत लगा रहा है. नतीजा यह कि किशोर और युवा कभी ओवरडोज से मर रहे हैं तो कभी आत्महत्या कर रहे हैं. पुलिस फोर्स राणा को खोजने में नाकाम है और जनता परेशान है. तब सीनियर अफसर 93 एनकाउंटर करके 27 ट्रांसफर झेल चुके राधे (सलमान खान) को याद करते हैं. राधे के कमिटमेंट पर हर किसी को भरोसा है और फोर्स में उसकी वापसी के साथ राणा की तलाश जोर-शोर से शुरू होती है. तय है कि राधे ने काम हाथ में ले लिया है तो वह पूरा होकर रहेगा. राधेः योर मोस्ट वांटेड भाई मुख्यतः ऐक्शन फिल्म है, जिसमें राधे का दीया (दिशा पाटनी) से रोमांस चलता रहता है. यह हल्का-फुल्का है. दोनों कभी-कभी मिलते हुए तीन-चार गाने गा लेते हैं. बीच में राधे के सीनियर और दीया के बड़े भाई अविनाश अभ्यंकर (जैकी श्रॉफ) भी आते हैं और थोड़-थोड़ी कॉमेडी होती रहती है.



Satyamev Jayate 2 Review


जहां तक फिल्म की बात है तो वह जमाने के रुख के मुताबिक है यानी देशभक्ति के वर्तमान राष्ट्रीय मौसम के अनुकूल. मैसेज है, तन मन धन से बढ़ कर जन गण मन. अच्छी बात यह है कि हमारा सिनेमा राष्ट्रभक्ति की बात करता है तो भ्रष्टाचार और अत्याचार की तस्वीर साथ लाता है. जिसमें आम आदमी के दुश्मन, देश के अंदर दिखते हैं. वह उस सत्ता-व्यवस्था के चमकते चेहरे हैं, जो जन-गण की अंगुली पर लगी मतदान की स्याही और पसीने के दम पर शीर्ष तक पहुंचे हैं. सत्यमेव जयते 2 में जुड़वा भाई सत्या और जय अत्याचार, अन्याय, भ्रष्टाचार तथा गुंडई के विरुद्ध अपने-अपने अंदाज में लड़ाई लड़ते हैं. यह जज्बा उन्हें खून में मिला है. किसान पिता दादासाहेब बलराम आजाद से. तीनों ही भूमिकाएं जॉन अब्राहम ने बढ़िया ढंग से निभाई हैं. कुछ डायलॉग आगे जाकर सोशल मीडिया में मीम्स बनाने के काम आएंगे. फिल्म में दिव्या खोसला कुमार सशक्त मौजूदगी दर्ज कराती हैं. उनका अभिनय अच्छा है. खास तौर पर दूसरे हिस्से में वह जॉन के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं. फिल्म का गीत-संगीत सुनने जैसा है. कैमरा वर्क अच्छा है. सभी कलाकारों ने अपने भूमिकाओं से सही ढंग से निभाया है. नोरा फतेही एक बार फिर अपने डांस नंबर कुसु कुसु के साथ याद रह जाती हैं. उनके फैन्स के लिए यह रिटर्न गिफ्ट है.



Hungama 2 Review


ओटीटी डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज हुई हंगामा 2 का अंदाज-ए-बयां वही है जो हंगामा का था. इसमें प्रियदर्शन के निर्देशन की पुरानी झलक मिलती है और जिन दर्शकों को 1990 और 2000 के दौर में इस निर्देशक का काम पसंद आता था, उन्हें यह फिल्म भी मजा देगी. प्रियदर्शन की कॉमेडी में कई किरदार होते हैं और कहानी जैसे-जैसे बढ़ती है, हंमागा खड़ा होता जाता है. वह बात आपको यहां भी मिलेगी. हंगामा 2 की खूबी यही है कि इसमें मुख्य कहानियों के सभी किरदारों को लगभग बराबर मौका मिला है. संतुलन है. कहानी किसी एक किरदार की तरफ नहीं झुकती. आशुतोष राणा हीरो के पिता के रोल में हैं और पूरी फिल्म में उनकी जबर्दस्त मौजूदगी है. मीजान की यह दूसरी फिल्म है और उन्होंने कॉमिक टाइमिंग को बखूबी पकड़ा है. परेश रावल और शिल्पा शेट्टी बढ़िया हैं. प्रणीता सुभाष स्क्रीन पर जब-जब आती हैं तो राधिका आप्टे की याद दिलाती हैं. हालांकि उन्होंने अपने काम को सही ढंग से किया है. जॉनी लीवर और अक्षय खन्ना अपनी मेहमानों वाली भूमिकाओं में जमे हैं. लेकिन इन सबके बीच राजपाल यादव को एक बेहतरीन सीन मिला है और उन्होंने उसे शानदार ढंग से परफॉर्म किया है. कलाकारों की इस रोचक कास्टिंग में इतना जरूर है कि मीजान और प्रणीता के अतिरिक्त सभी खिलाड़ी पुराने हैं. सब पर उम्र का असर दिखने लगा है.



Bhoot Police Review


भूत पुलिस कहानी है दो भाईयों चिरौंजी और विभूति की, जो तांत्रिक हैं. दोनों के पिता तांत्रिक हुआ करते थे, जो विरासत में तंत्र-मंत्र की विद्या और उसी से जुड़ी किताब उन्हें देकर गए हैं. जहां चिरौंजी उर्फ चीकू पिता की विद्या, तंत्र-मंत्र और भूतों में विश्वास करता है.



Bhuj Review


भुजः द प्राइड ऑफ इंडिया की कहानी मुख्यतः भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक (अजय देवगन) के बहादुरी और दूरदर्शी फैसलों की बात करती है. जब पाकिस्तानी हमले से डर कर हवाई पट्टी बनाने वाले इंजीनियर भाग गए, दर्जनों सैनिक घायल होकर अस्पताल पहुंच गए तो उन्होंने पास के गांव के करीब 300 स्त्री-पुरुषों की मदद से रातोंरात फिर से हवाई पट्टी तैयार करा दी. जिससे सैनिकों को लाया वायुसेना का विमान उतर सका और पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया गया. फिल्म को इतना अधिक तथ्यपरक रखा है कि कहीं-कहीं डॉक्युमेंट्री जैसा फील कराती है. वार-फिल्म होने के बावजूद निर्देशक ने इसमें गीत-संगीत को भी पर्याप्त जगह दी है. अच्छा यह है कि कहानी में यह गाने रुकावट नहीं बनते. इस 15 अगस्त को आजादी की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर अपनी सेनाओं के शौर्य पर गर्व जगाने वाली यह सटीक फिल्म है.



Sardar ka grandson Review


कहानी का मूल आइडिया इतना सरल गढ़ा गया है, जैसे एक गांव से दूसरे गांव जाकर असली घी, अचार या शहद का डिब्बा लाना हो. बंदा यूं गया और यूं आया. अल-जजीरा चैनल की एक डॉक्युमेंट्री ‘गोइंग बैक टू पाकिस्तान’ से इस कहानी का आइडिया काशवी नायर को आया था. जिसमें 90 बरस के एक बुजुर्ग भारत-विभाजन के 70 साल बाद पाकिस्तान की यात्रा करते हैं क्योंकि वहां उनका पुश्तैनी घर, दुकान और स्कूल था. वह उन जगहों को फिर से देखना और महसूस करना चाहते हैं. ग्रेंडसन ऑफ सरदार में 90 पार की सरदार कौर (नीना गुप्ता) का भी यही ख्वाब है. हालांकि जर्जर होती सेहत की वजह से वह लाहौर की कबूतर वाली गली में अपना विशाल घर देखने नहीं जा पातीं मगर उनका पोता अमरीक (अर्जुन कपूर) जरूर वहां जाकर इस इमारत को ट्रॉलर पर रख कर अमृतसर ले आता है. तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी बड़े गंभीर और यारबाज दिखते हैं. एक किशोरवय पाकिस्तानी चायवाला अर्जुन की वहां हर तरह से मदद करता है और अंत में उनसे कहता हैः आपका वतन चायवालों को बहुत अंडरएस्टिमेट करता है. इस डायलॉग का क्या मतलब लिया जाए? अमितोष नागपाल के लिखे संवादों में कई बेसिर-पैर की बातें हैं. जो खराब स्क्रिप्ट की नीम पर चढ़े कड़वे करेले जैसी है.



Bunty Aur Babli 2 Review


रानी-सैफ की यह फिल्म अभिषेक-रानी की फिल्म के मुकाबले हर स्तर पर कमजोर है. लूट और ठगी की फिल्मों में नेकी कर दरिया में डाल फार्मूला खूब चलता है. यहां भी अमीरों को लूट कर गरीबों के बैंक अकाउंट में पैसे डालने का ड्रामा है. यह ऐसे प्रचार का दौर है, जिसमें बताया जा रहा है कि बेरोजगार और गरीब बैंकों में आ रहे मुफ्त के धन से निहाल हो रहे हैं. लेकिन जरूरी सवालों की बात कहीं नहीं है. रानी अब बबली नहीं लगतीं और सैफ को लंबे अनुभवों से सीखते हुए उन नए बैनरों, नए निर्माता-निर्देशकों के साथ काम करना चाहिए जो सिनेमा की दिशा बदलने की कोशिश में हैं. पंकज त्रिपाठी बढ़िया है लेकिन पहली फिल्म वाले दशरथ सिंह (अमिताभ बच्चन) बेजोड़ हैं. वह यहां खूब याद आते हैं. बंटी और बबली की सफलता में बढ़िया गीत-संगीत का बड़ा योगदान था. वहां गुलजार के शब्द थे. यहां गीत-संगीत रेत कि तरह सिर पर गिरता है.



Hum bhi akele tum bhi akele Review


बिन पेंदे की कहानी और कमजोर संवादों वाली इस फिल्म में न तो दृश्यों को ठीक से बनाया गया और न सही रंगों से सजाया गया. गाने बैकग्राउंड में इसलिए बजते हैं कि यह बॉलीवुड फिल्म है और रोमांस का फील उनके बगैर आएगा नहीं. अंतिम पांच मिनट में जरूर फिल्म छोटा-सा ट्विस्ट लेती है, वर्ना आपको हर मोड़ पर पता होता है कि क्या होने वाला है. वह होने वाली घटना यहां इतनी अतार्किक या कच्ची है कि ‘हम भी अकेले तुम भी अकेले’ हास्यास्पद मालूम होने लगती है. फिर एक समय के बाद यह कॉमेडी का एहसास कराने लगती है.



Sandeep Aur Pinky Faraar Review


यही जान लें कि यहां संदीप लड़का नहीं है और पिंकी लड़की नहीं है. जब नाम में कनफ्यूजन हो तो फिल्म कैसे सीधी-सरल होगी. वैसे यह अच्छा हुआ कि निर्देशक दिबाकर बनर्जी की तीन-चार साल पहले बनी यह फिल्म अटकी रहने के बाद अब रिलीज हो रही है. घोटालेबाज बैंक और बैंकर आम आदमी को कैसे लूट रहे हैं, यह बीते दो-एक बरस में खूब सामने आया है. ऐसे में यह फिल्म आज की लगती है. मगर समस्या यह है कि थ्रिलर की तरह शुरू होने वाली फिल्म धीरे-धीरे शिथिल पड़ जाती है और इंटरवल आते-आते इसमें कहने को कुछ खास नहीं रह जाता.



Antim The Final Truth Review


अंतिमः द फाइनल ट्रुथ मराठी फिल्म मुलशी पैटर्न (2018) का रीमेक है. पुणे जिले में मुलशी एक गांव हैं. बीते एक दशक में महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या का इतिहास खून के आंसू रुलाने वाला है. मुलशी पैटर्न अपनी जमीन खोकर दयनीय होते किसान और उसके शहरों की तरफ पलायन की समस्या दिखाती थी. बॉक्स ऑफिस पर कामयाब थी. मुलशी पैटर्न की तर्ज पर अंतिम भी मुलशी के किसान दत्ता भाऊ (सचिन खेडेकर) से शुरू होती है. कभी महाराष्ट्र केसरी रहे इस पहलवान-किसान ने मजबूरी में अपनी जमीन-खेत बिल्डर को बेचे और उसका चौकीदार हो कर रह गया. ऐसे हजारों किसान हैं. हालात दत्ता भाऊ को अपने बेटे राहुल (आयुष शर्मा) और परिवार के साथ पुणे आकर सब्जी मंडी में मजदूरी करने के लिए मजबूर कर देते हैं.