Killer Soup Review: मनोज वाजपेयी (Manoj Bajpayee) और कोंकणा सेन शर्मा (Konkona Sen Sharma) की सीरीज 'किलर सूप' नेटफ्लिक्स पर आ चुकी है. इस सीरीज की कई सारी खास बाते हैं, जैसे कि कोंकणा-मनोज जैसे मंझे हुए कलाकार एक साथ पहली बार स्क्रीन शेयर करते दिखे हैं.

सीरीज का नाम 'किलर सूप' भी दर्शकों के उतावलेपन को बढ़ा रहा है क्योंकि ये नाम अपने आप में ही खास है. इसलिए अगर आप इस वीकेंड ये सीरीज निपटाना चाहते हैं, तो यहां जान लीजिए इस सीरीज से जुड़ी खास बातें जिन्हें जानकर आप खुद को इसे देखने से रोक नहीं पाएंगे.

कैसी है सीरीज?कहानी: तमिलनाडु का एक खूबसूरत लेकिन काल्पनिक शहर मैंजूर हैं. खूबसूरत लगने वाली डरावनी वादियों के इस शहर में शुरुआत में सब कुछ शांत दिखता है. लेकिन कहानी शुरू होते ही पता चलता है कि यहां तो एक उधेड़बुन लगी हुई है. लोग अपनों को धोखा दे रहे हैं. साजिशों का दौर शुरू है. जहां कोई किसी का अपना नहीं है. सब कुछ डरावना है. एक बीवी है स्वाती (कोंकणा सेन शर्मा), एक पति है प्रभाकर शेट्टी (मनोज वाजपेयी). प्रभाकर का एक भाई है अरविंद शेट्टी (सयाजी शिंदे) और एक मसाज वाला मासूम लेकिन खतरनाक इंसान उमेश (फिर से मनोज वाजपेयी) है. एक पुलिस वाला (नासर) भी है. कहानी इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है.

स्वाती पति के साथ प्यार का दिखावा करती है, लेकिन उसका अफेयर उमेश से है. उमेश स्वाती से प्यार करता है, लेकिन वो उसके पति को ब्लैकमल कर रहा है. प्रभाकर भी स्वाती के साथ प्यार से रह रहा है, लेकिन वो वफादार नहीं है. वो अपने भाई के साथ भी घपलेबाजी कर रहा है. भाई अरविंद शेट्टी प्रभाकर को प्यार करता है, लेकिन उसके भी काले कारनामे हैं. मतलब ये कि कहानी धोखों से भरी है. लेकिन ऐसी है कि इंगेज रखती है. 'किलर सूप' की भी अपनी अलग कहानी है लेकिन सब कुछ नहीं बताएंगे क्योंकि मजा खराब हो जाएगा. इसलिए सिर्फ सारांश ही जानिए.

क्यों देखें?

डायरेक्शन: अभिषेक चौबे ने डायरेक्ट किया है किलर सूप को. वही जिन्होंने 'इश्कियां' बनाई है. उन्होंने स्क्रीनप्ले को बांधकर रखा है. पहली बार किसी सीरीज को डायरेक्ट करने वाले अभिषेक चौबे का ये काम देखकर आप कहेंगे-'वाह'.

  • एक्टिंग- सिर्फ एक ही शब्द है 'माशाल्लाह' जो इस सीरीज में एक्टर्स के लिए बोली जा सकती है. मतलब सिर्फ कमाल है और कुछ भी नहीं. सालों पहले अमिताभ ने डबल रोल किए थे जैसे कि 'आखिरी रास्ता' और 'सत्ते पे सत्ता'. इनकी खासियत ये थी कि एक ही एक्टर एक ही फिल्म में दो अलग-अलग कैरेक्टर्स को ऐसे निभा गया था मानों वो अलग इंसान ही हों. सेम इतिहास मनोज वाजपेयी ने यहां दोहराया है. प्रभाकर और उमेश दोनों एकदम अलग लगते हैं. उनकी एक्टिंग का विस्तार देखकर आप भौंचक्के रह जाएंगे. 
  • कोंकणा सेन शर्मा की बात करें तो मतलब उन्होंने बस सीमाएं ही लांघ दी हैं एक्टिंग की. एक मैनिप्युलेटिव महिला के रूप में वो ऐसे दिखती हैं स्क्रीन पर कि आपको उनसे नफरत हो जाए. 'नफरत' शब्द यहां नेगेटिव नहीं, पॉजिटिव है. बिल्कुल वैसे ही जैसे सालों पहले प्राण के नेगेटिव रोल देखकर दर्शक स्क्रीन पर जूता-चप्पल फेंकने लगते थे. वो बॉलीवुड के लिए हीरा हैं. उन्हें और भी मौके मिलने चाहिए.
  • सयाजी शिंदे की बात करें तो 'शूल' में करप्ट विधायक का रोल निभाने वाला ये एक्टर यहां भी वैसा ही कमाल कर गया है. गुस्से में रहने वाले अरविंद शेट्टी का रोल ऐसे निभा गए हैं कि अब उनके अलावा आप किसी और को उस रोल के लिए सोच ही नहीं सकते. इसके अलावा, नासर जिन्हें कई बॉलीवुड और साउथ इंडियन फिल्मों में नेगेटिव रोल निभाते आपने देखा ही होगा. उन्होंने भी अपने हिस्से का काम मनमोहक तरीके से किया है.
  • हालांकि, सीरीज में आपको सबटाइटल की जरूरत पड़ेगी. इसलिए ऑन रखिएगा क्योंकि तमिलनाडु के लोकल लोग सीरीज में तमिल में ही बात करते दिखे हैं. ये सीरीज का नेगेटिव नहीं, बल्कि सकारात्मक पॉइंट है क्योंकि इससे सीरीज असलियत के करीब लगती है.
  • अंत में सीरीज की सबसे जरूरी खासियत की बात करें, तो ये एक डार्क कॉमेडी है. आपको गुस्से और किसी के मौत वाले सीन पर भी हंसी फूट पड़ेगी. इसके लिए अभिषेक चौबे की तारीफ जरूर बनती है.

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