'हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं...'ये डायलॉग सुनते ही हर उस सिनेप्रेमी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है जिसने फिल्म 'शोले'(Sholay) कई बार देखी है और उसमें वह असरानी की एक्टिंग का दीवाना है. एक जेलर बनकर असरानी(Asrani) ने फिल्म में इतनी जबरदस्त एक्टिंग की कि हर कोई उनका दीवाना हो गया. वैसे आपको बता दें कि असरानी बचपन से ही फिल्मों के शौक़ीन थे और स्कूल से अक्सर बंक मारकर वह फ़िल्में देखने जाया करते थे.




असरानी का सिनेमा प्रेम उनके घरवालों को कभी रास नहीं आया क्योंकि उनके पिता चाहते थे कि वह सरकारी नौकरी करें लेकिन असरानी कहां मानने वाले थे. असरानी एक्टर बनने का सपना दिल में पाल चुके थे इसलिए एक दिन गुरदासपुर से घर से भागकर मुंबई आ गए.यहां उन्होंने कई महीने संघर्ष में काटे लेकिन फिर काम ना मिलने पर उन्होंने पुणे फिल्म इंस्टिट्यूट में दाखिला लेकर डिप्लोमा किया. इसके बाद असरानी को फिल्मों में छोटे-मोटे रोल्स मिलने लगे. फिल्म सीमा में उन्हें गाने में काम करने का मौका मिला.इस गाने में जब असरानी को घरवालों ने देखा तो वो वह मुंबई आकर असरानी को वापस गुरदासपुर ले गए लेकिन असरानी कुछ महीनों बाद फिर वापस मुंबई आ गए.




इसके बाद ऋषिकेश मुखर्जी से हुई मुलाकात ने उनकी ज़िंदगी बदल दी. उन्हें फिल्म सत्यकाम में रोल मिला. इसके बाद फिल्म गुड्डी में उनके काम की काफी तारीफ हुई जिसके बाद असरानी का कॉमेडियन के तौर पर सफर शुरू हो गया. अभिमान, चुपके-चुपके और छोटी सी बात जैसी फिल्मों में तो वो हीरो के बराबर रोल्स में नज़र आए.1975 में आई शोले ने उनके करियर की दिशा और दशा बदल दी. अंग्रेजों के ज़माने के जेलर के रूप में असरानी अमर हो गए.