नई दिल्ली: 12 दिन बाद यानी 22 जनवरी को ऋचा चढ्ढा की फिल्म '‘मैडम चीफ मिनिस्टर’’ रिलीज़ होने वाली है. फिल्म का निर्देशन हिट फिल्म 'जॉली एलएलबी' बनाने वाले सुभाष कपूर ने किया है. कहानी राजनीति गलियारों के दांवपेंच के बीच एक दलित लड़की के संघर्ष की है, जो एक दिन प्रदेश की मुख्यमंत्री बनती है.


क्या मायावती के जीवन पर आधारित है ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ ?


‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ के ट्रेलर की शुरूआत में में ही डिसक्लेमर है कि ये पूरी तरह काल्पनिक कहानी है. लेकिन राजनीति में रुचि रखने वाला कोई भी शख्स आसानी से समझ जाएगा कि ऋचा चढ्ढा का रोल यूपी की पूर्व सीएम मायावती से प्रेरित है. इसी हफ्ते ट्रेलर रिलीज होते ही राजनीतिक हलकों में सुगबुगाहट शुरू हो गई है कि मायावती की कहानी स्क्रीन पर आ रही है.


इस फिल्म की पूर्व सीएम और बीएसपी सुप्रीमो मायावती की कहानी से काफी समानता है. फिल्म में दलित लड़की के संघर्ष के साथ-साथ उसके राजनीतिक गुरू का रोल अभिनेता सौरभ शुक्ला निभा रहे हैं. कहा जा रहा है ये बीएसपी के संस्थापक नेता कांशीराम के किरदार से प्रेरित है, जो मायावती के राजनीतिक गुरू थे.



फिल्म से सपा और बसपा दोनों नाराज


फिल्म में ऋचा चड्ढा शोषित दलित वर्ग की एक साहसी महिला के किरदार में है, जो बाद में मुख्‍यमंत्री बनती है. मायावती के साथ घटे गेस्‍ट हाउस कां,ड जिसमें मायावती पर जानलेवा हमला हुआ था, उस घटना को सिर्फ फिल्म में ही नहीं बल्कि ट्रेलर में भी जगह दी गयी है. खबरें तो ये भी आ रही हैं कि समाजवादी पार्टी कार्यकर्ता इससे नाराज हैं. उनका कहना है कि फिल्‍म में एक किरदार का नाम आलोक यादव रखा गया है. इससे यादवों की छवि खराब कर सत्ता पक्ष को फायदा पहुंचाने की कोशिश की जा रही है.


वहीं खबर ये भी है कि फिल्म से बसपा के कार्यकर्ता भी नाराज हैं, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि उनके नेताओं से जुड़ी घटनाएं तोड़ मरोड़ के दिखायी गयी हैं. फिल्‍म में ‘राम मंदिर’ का एक डायलॉग है, जो बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के बयान से मिलता जुलता है. यानि फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ के ट्रेलर में ही उत्तर प्रदेश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों सपा और बसपा को आहत करने का सारा मसाला मौजूद है.


महिला नेताओं पर बनीं कई फिल्मों पर हुआ विवाद


‘आंधी’


‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ पर विवाद की आहट आनी शुरू हो गयी है. लेकिन बात सिर्फ इसी फिल्म की नहीं हैं. पीछे मुड़कर भी देखें तो महिला नेताओं पर बनी या उनकी जिंदगी से प्रेरित बॉलीवुड फिल्में पहले भी विवादों में फंसती रही हैं. सबसे बड़ी मिसाल गुलज़ार निर्देशित सुचित्रा सेन और संजीव कुमार की फिल्म ‘आंधी’ है. 1970 के दशक में इमरजेंसी के दौरान इस फिल्म को लेकर खूब हंगामा और विवाद हुआ. कहानी एक बड़ी महिला नेता की थी जो राजनीति में इतना डूब जाती है कि निजी रिश्तों से दूर हो जाती है. चर्चा रही कि ये फिल्म तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजी जीवन की गलत तस्वीर पेश करती है. फिल्म आंधी रिलीज हुई और कुछ हफ्ते चलने के बाद ही इसे बैन कर दिया गया. लेकिन फिर 1977 में कांग्रेस की हार के बाद जनता पार्टी की सरकार ने फिल्म से बैन हटाकर इसे फिर से रिलीज किया.



‘किस्सा कुर्सी का’


उसी दौर में रिलीज़ हुई फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ में इंदिरा गांधी और संजय गांधी पर व्यंग्य के रूप में निशाना साधा गया. फिल्म ना सिर्फ बैन की गयी बल्कि संजय गाधी ने उसके प्रिंट ही जला दिए. जिसके लिए संजय गांधी पर केस तक चला.


 ‘राजनीति’


हाल के सालों में निर्देशक प्रकाश झा की फिल्म ‘राजनीति’ पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया था. फिल्म एक राजनीतिक परिवार औऱ सत्ता के लिए मचे घमासान की कहानी थी. फिल्म में रणबीर कपूर, अजय देवगन, नाना पाटेकर औऱ मनोज बाजपेयी जैसे सितारे थे, जो सत्ता हासिल करने के लिए हथकंडे आजमाते नज़र आए. फिल्म में परिवारवाद की सियासत, सत्ता के लिए संघर्ष दिखाया गया. ये काल्पनिक कहानी थी. लेकिन ट्रेलर में कटरीना कैफ के हावभाव और डायलॉग सुनकर बवाल मच गया.



खबरे छपीं कि कटरीना का किरदार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर आधारित है.  कांग्रेस पार्टी को फिल्म के कुछ दृश्यों पर एतराज़ था. इसीलिए सेंसर बोर्ड से पहले कांग्रेस पार्टी के तीन प्रतिनिधियों ने पूरी फिल्म को देखा था. कटरीना कैफ के कुछ सीन पर आपत्ति भी जतायी थी. हालांकि फिल्म देखकर ऐसा नहीं लगा कि कटरीना का किरदार सोनिया गांधी से प्रेरित है. बता दें कि ‘राजनीति’ प्रकाश झा की सबसे कामयाब फिल्म बनी.


 ‘सोनिया’


एक और फिल्म जो विवादों में रही उसका नाम ही ‘सोनिया’ था. सोनिया गांधी के जीवन पर बनी ये फिल्म 2005 में ही बन गयी थी. लेकिन ये सालों तक डब्बाबंद रही. सेंसर बोर्ड ने इसे पास करने से मना कर दिया था. खबर आयी कि निर्माताओं से कहा गया कि पहले सोनिया गांधी से अनुमति ले. निर्माता बॉम्बे हाईकोर्ट गए और दो साल बाद कोर्ट ने इसे रिलीज करने की अनुमति दे दी. टीडी कुमार निर्देशित ये इस फिल्म में कोई भी बड़ा स्टार नहीं था. इस फिल्म को किसी ने नहीं खरीदा और ये रिलीज नहीं हो सकी.


अब ज़रा सोचिए वो घटनाएं जो पब्लिक डोमेन में है, अगर वो स्क्रीन पर आ भी जाए तो समस्या क्या है? और जाहिर है अगर कुछ गलत होगा तो सेंसर बोल्ड तो है ही. लेकिन नहीं यहां भावनाएं शायद सेंसर बोर्ड से बड़ी हैं.


‘इंदु सरकार’


साल 2017 में भी निर्देशक मधुर भंडारकर की फिल्म ‘इंदु सरकार’ पर भी बड़ा विवाद खड़ा हो गया. फिल्म की कहानी 1975 के इमरजेंसी के दौर की थी. कांग्रेस ने फिल्म के विषय पर आपत्ति जताई थी. इंदिरा गांधी की छवि धूमिल करने  और मधुर भंडारकर पर बीजेपी से फंड लेने का आरोप भी लगाया गया था. विवाद इतना बढ़ गया था कि जगह-जगह फिल्म के निर्देशक मधुर भंडारकर के पुतले जलाए गए थे. काफी विरोध के बाद ही बड़ी मुश्किल से फिल्म को रिलीज़ किया जा सका.



‘क्वीन’


साल 2019 में एमएक्स प्लेर पर रिलीज हुई बड़ी वेबसीरीज ‘क्वीन’ विवादों में घिरी थी. ‘क्वीन’ वेबसीरीज तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता के जीवन पर केंद्रित थी. इसमें साउथ की बड़ी स्टार रम्या ने जयललिलता का किरदार निभाया था. जयललिता के समर्थकों ने निर्माताओं पर उनकी नेता की गलत छवि दिखाने का आरोप लगाया था. जयललिता के जीवन पर ही बन रहे उनकी बायोपिक ‘थलाइवी’ कंगना रनौत जयललिता का रोल निभा रही हैं. फिल्म की शूटिंग जोरशोर से जारी है.


साल भर पहले जब इस फिल्म का पहला टीज़र आया था तो विवाद खड़ा हो गया था. जयललिता की भांजी दीपा ने मद्रास हाईकोर्ट जाकर फिल्म पर स्टे लगाने की मांग की थी. उनका मानना है कि कुछ फैक्ट्स और घटनाओं को तोड़ मरोड़ कर जयललिता की लाइफ को गलत अंदाज में पेश किया जा सकता है और उनकी इमेज को खराब करने की कोशिश की जाएगी.


 ‘तांडव’ 


अगले ही हफ्ते बड़ी स्टारकास्ट वाली भव्य राजनीतिक वेब सीरीज ‘तांडव’ भी रिलीज होने वाली है. सैफ अली खान और डिंपल कपाडिया इसमें सियासी दांवपेंच चलते नजर आ रहे हैं. भले ही इसके निर्माता कहें कि ये काल्पनिक हैं लेकिन ऐसी सीरीज में अक्सर काल्पनिक घटनाएं असलियत के करीब हो जाती हैं. हालांकि अभी तक तांडव को लेकर कोई विवाद सामने नहीं आया है.



अमेरिका में फिल्मों को लेकर नहीं होता विवाद


दशकों से राजनीतिक फिल्मों पर देश की राजनीतिक पार्टियों औऱ उनके समर्थकों को एतराज़ रहा है. लेकिन ऐसा हर जगह नहीं होता. मिसाल के तौर पर अमेरिका में ऐसी कई फिल्में बनी हैं, जिसमें अमरीकी राष्ट्पति के राजनीतिक करियर यहां तक कि निजी जीवन के बारे में भी खुलकर दिखाया गया है. इनमें से कुछ फिल्में ऐसी भी हैं, जिनसे नेता या उनके समर्थक नाराज भी हुए. लेकिन ऐसी कोई मिसाल नहीं मिलती जिसमें अमेरिका में किसी फिल्म को बैन कर दिया गया हो या थिएटर से उतार दिया हो.


पिछले कुछ सालों में ही कई अवॉर्ड जीत चुकी सीरीज ‘हाउस ऑफ कॉर्ड्स’ में अमेरिकी राष्ट्रपति को बेहद घाघ और हत्यारा तक दिखाया गया. इस बेहतरीन सीरीज ने अमेरिका में ही अवॉर्ड तक जीते. लेकिन ना तो पोस्टर फटे ना ही बैन करने की मांग की गयी.


इसी तरह हाल की एक और शानदार अंग्रेजी वेब सीरीज ‘द क्रा’ है, जो नेटफ्लिक्स की सबसे कामयाब सीरीज में से एक है. इस भव्य सीरीज में ब्रिटेन के राजघराने और क्वीन एलाजबेथ की पूरी जिंदगी का राजनीतिक सफर दिखाया गया है. इसमें क्वीन एलिजाबेथ, प्रिंस चार्ल्स और प्रिंसेज़ डायना से जुड़ी कई बेहद निजी घटनाएं भी हैं. दनियाभर में पसंद की गयी ये सीरीज़ लेकिन कोई विवाद नहीं खड़ा हुआ हैरत की बात ये है कि द क्राउन की तो शऊटिंग भी बिर्टेन के कई असली महलों औऱ लोगों से बात करके की गई है.


अफसोस की हमारे देश में राजनीतिक फिल्में बनाना जितना कठिन 50 साल पहले था उतना ही अब है. अब सोचिए फिल्मों को देखने के लिए सेंसर बोर्ड है, लेकिन बात जब पॉलिटिकल फिल्मों की हो तो किसी को मानो उसपर यकीन ही नहीं होता. ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ 22 जनवरी सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है. लेकिन अभी दो हफ्ते बाकी है. और राजनीति और विवाद में दो हफ्ते का वक्त काफी होता है.