स्टार कास्ट: के के मेनन, मंदिरा बेदी, राइमा सेन, शारिब हाशमी


डायरेक्टर: कुशल श्रीवास्तव


स्टार: ** (दो स्टार)


मनाली की बर्फीली वादियों में फिल्माई गई 'वोदका डायरीज' एक साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्म है. इसमें सिलसिलेवार मर्डर होते हैं जिन्हें के के मेनन सुलझाने की कोशिश में लगे रहते हैं. फिल्म की शुरुआत तो धीमी है लेकिन कुछ समय बाद ही ये रफ्तार पकड़ लेती है. फर्स्ट हाफ में कहानी बहुत जल्दी-जल्दी आगे बढ़ती है और सस्पेंस बना रहता है. फिल्म की कहानी दिलचस्प होने के बावजूद कमजोर एक्टर्स ने इसे बर्बाद कर दिया है. फिल्म देखते वक्त ये बात अखरती है कि के के मेनन के अलावा कोई भी एक्टर खुद को साबित करना तो दूर अपने किरदार को ढंग से निभा भी नहीं पाया है. ये पूरी तरह के के मेनन की फिल्म है जो अपने किरदार में इस कदर घुस गए हैं कि उनके लिए इस फिल्म को देखा जा सकता है.



कहानी


एसीपी अश्विनी दीक्षित (के के मेनन) अपनी पत्नी शिखा (मंदिरा बेदी) के साथ मनाली घूमने जाते हैं. वहां पर सीरिज में कई मर्डर होते हैं और सबका लिंक वोडका डायरीज होटल से जुड़ा होता है. अश्विनी इसे केस का इन्वेस्टिगेशन इंस्पेक्टर अंकित (शारिब हाशमी) के साथ करता है. अश्विनी को बीच-बीच में रहस्यमयी फोन कॉल्स आते हैं जो रोशनी बैनर्जी (राइमा सेन) कर रही होती हैं. कभी उसे इन्वेसिगेशन में सपने आते हैं तो कभी वो सपने में इन्वेस्टिगेशन कर रहा होता है. हालत ऐसी होती है कि वो जिन्हें मरा हुआ देखता है वो ज़िंदा मिल जाते हैं, वहीं जिन्हें वो देखता है वो अचानक गायब हो जाते हैं. अब क्या सपना है और क्या हकीकत इसे समझ पाना उसके लिए मुश्किल हो जाता है. इसी बीच अचानक एक दिन एसीपी दीक्षित की पत्नी भी गायब हो जाती है.



क्या एसीपी अपनी पत्नी को ढ़ूढ पाएगा? क्या वो मर्डर मिस्ट्री को सुलझा पाएगा? क्या हकीकत है और क्या सपना, क्या एसीपी इसे समझ पाएगा? या फिर इसके पीछे कोई और ही कहानी है? ये आपको फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा.


एक्टिंग


इस फिल्म में के के मेनन के अलावा सभी किरदार नकली लगते हैं. मंदिरा बेदी को जितना भी समय मिला है उन्होंने बहुत ही अच्छा किया है. राइमा सेन को काफी समय बाद ये फिल्म मिली है. उनकी आंखें बोलती हैं लेकिन इसके साथ अगर वो अपना डायलॉग अच्छे से बोल पाती तो बात कुछ और ही होती. इंस्पेक्टर अंकित की भूमिका में शारिब जमते हैं.



डायरेक्शन


इस फिल्म से कुशल श्रीवास्तव डायरेक्शन में डेब्यू कर रहे हैं. आर्मी छोड़कर फिल्म मेकिंग में करियर की तलाश कर रहे कुशल अबतक बहुत सी एड फिल्में बना चुके हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने इस फिल्म को मनाली में सिर्फ 20 दिन में ही शूट कर लिया. जो जल्दबाजी उन्होंने शूटिंग में दिखाई वो फिल्म को देखते वक्त भी नज़र आती है. किरदारों को ज्यादा समय नहीं दिया गया है. दृश्यों पर काफी मेहनत की गई है. कुछ सीन्स तो बहुत ही खूबसूरत हैं. लेकिन अगर डायरेक्टर अच्छी कहानी के साथ कुछ मंझे हुए एक्टर्स को लेते जो कि अपनी चंद सेकेंड्स की मौजूदगी को भी दर्ज करा पाते तो अपने प्लाट की वजह से शायद ये बहुत ही बेहतरीन फिल्म बन जाती.


क्यों देखें


फिल्म का प्लॉट बहुत अच्छा है और इसे देखने की एक ही वजह है और वो हैं के के मेनन. फिल्म में सस्पेंस भी है लेकिन कमजोर एक्टिंग के आगे सब फीका पड़ जाता है. अगर आपके पास कोई और ऑप्शन नहीं है तो आप इसे अपने रिस्क पर देख सकते हैं.