नई दिल्ली: अक्षय कुमार, राधिका आप्टे और सोनम कपूर जैसे बड़े सितारों से सजी फिल्म ‘पैडमैन’ इसी महीने 9 फरवरी को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है. फिल्म का निर्देशन मशहूर निर्देशक आर. बाल्की ने किया है. फिल्म उस मुद्दे को उठा रही है, जिसके बारे में हमारे देश में लोग खुलकर बात तक नहीं करते हैं. इस फिल्म की कहानी महिलाओं की माहवारी (पीरियड्स) के दिनों में स्वच्छता के इर्द गिर्द घूमती है. कहानी सिर्फ कहानी नहीं है, बल्कि एक व्यक्ति की लगन और बदलाव लाने के लिए की गई बड़ी कोशिश को दर्शाती है.


अक्षय की ये फिल्म तमिलनाडु के रहने वाले अरुणाचलम मुरुगनाथम की जिंदगी पर आधारित है. इसमें मुरुगनाथम की सच्ची कोशिश और कुछ करने की शिद्दत को दिखाया गया है. फिल्म तो आप 9 फरवरी को देखेंगे, लेकिन आज उस इंसान के बारे में भी जान लीजिए जिसने एक छोटे से गांव में रहकर भी हिंदुस्तान में इस मुद्दे को लेकर क्रांति ला दी और देश ही नहीं दुनियाभर में ‘पैडमैन’ के नाम से मशहूर हो गए.


मां की मदद करने की खातिर 10वीं के बाद छोड़ दी पढ़ाई 


जब अरुणाचलम मुरुगनाथम चौथी क्लास में पढ़ रहे थे तभी उनके पिता इस दुनिया को छोड़कर चले गए. उनके पिता की मौत एक सड़क हादसे में हुई थी. अगले तीन महीने में ही घर में पैसों की तंगी होने लगी. मजबूरन उन्हें कॉन्वेंट स्कूल छोड़कर म्युंसिपल स्कूल में दाखिला लेना पड़ा. घर में पैसों की जरूरत थी, सो मां को काम करना पड़ा. उस समय वो खेतों में काम किया करती थीं, जिसके लिए उन्हें रोजाना 7 रुपए का मेहनताना मिलता था. मां की मदद की खातिर 10वीं कक्षा के बाद मुरुगनाथम को पढ़ाई छोड़नी पड़ी और काम में जुटना पड़ा. वो दरवाजे, ग्रिल और सीढ़ियां बनाने का काम किया करते थे. अगले सात सालों तक इसी काम में लगे रहे ताकि अपनी मां और दो बहनों की मदद कर सकें.



ऐसे हुई अरुणाचलम मुरुगनाथम के पैडमैन बनने की शुरूआत 


साल 1962 में जन्में अरुणाचलम मुरुगनाथम ने 36 साल की उम्र में 1998 में शांति नाम की लड़की से शादी की. शादी के बाद उन्हें पता चला की उनकी पत्नी पीरियड्स के दौरान सैनिटरी पैड्स नहीं बल्कि गंदे कपड़े और अखबारों का इस्तेमाल करती हैं. यही नहीं उनकी पत्नी को पैड्स के बारे में जानकारी तक नहीं थी. इस वाकये के बाद अरुणाचलम मुरुगनाथम ने सस्ते पैड्स बनाने की मशीन बनाने की ठान ली.


बाद में उन्होंने बेहद कम लागत वाली सेनिटरी पैड्स की मशीन का आविष्कार किया. आज वो अपनी कंपनी चलाते हैं. मुरुगनाथम की कंपनी के पैड्स का इस्तेमाल देशभर के करीब 4500 गावों में होता है. ये सब इतना आसान नहीं था. मुरुगनाथम को इस चीज़ के लिए जागरुकता फैलाने में काफी मेहनत करनी पड़ी.


 


मुरुगनाथम के लिए पैडमैन बनना इतना आसान नहीं था


शुरुआत में अरुणाचलम ने कॉटन के सैनिटरी पैड्स बनाए, लेकिन उनकी पत्नी और बहनों ने उसे रिजेक्ट कर दिया. यही नहीं उन्होंने खुद पर एक्सपेरिमेंट करने से भी मना कर दिया. जिसके बाद उन्होंने गांव की दूसरी लड़कियों को टेस्ट के लिए मनाने की कोशिश भी की, लेकिन बात नहीं बनी.


पैड्स बनाने में 10 पैसे का मैटीरियल इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन अंत में प्रोडक्ट 40 गुना ज्यादा दाम में बिकता था. यही सोचकर मुरुगनाथम ने सस्ते पैड्स के आविष्कार की ठान ली.


कई जगह कोशिश करने पर भी जब अरुणाचलम को अपने पैड्स के टेस्ट के लिए कोई नहीं मिला तब उन्होंने खुद ही पैड्स पहनकर उनका टेस्ट शुरू कर दिया. जिस पत्नी के लिए वो इतनी बड़ी रिसर्च में लगे हुए थे वो 18 महीनों के बाद उन्हें छोड़ गईं. कुछ दिनों बाद मुरुगनाथम के अनोखे टेस्ट से तंग आकर उनकी मां ने भी उन्हें छोड़ दिया था. मुरुगनाथम को पागल समझकर गांव वालों ने भी उनका बहिष्कार कर दिया.


दो सालों की मेहनत के बाद उन्हें ये पता चल पाया कि पैड्स आखिर किस मैटीरियल से बनते हैं. रिसर्च शुरू करने के साढ़े चार साल बाद आखिरकार वो अपनी कोशिश में कामयाब हुए और सस्ते सैनिटरी पैड्स बनाने की तकनीक उनके हाथ लगी.


आज मुरुगनाथम जयाश्री इंडस्ट्रीज के मालिक हैं, जो देशभर के गांव में सस्ते सैनिटरी पैड्स पहुंचाती हैं. करीब साढ़े पांच सालों के बाद पत्नी ने उन्हें कॉल किया. आज मुरुगनाथम के पास भारत की सबसे सस्ती सैनिटरी पैड्स की मशीन का पेटेंट है.



इन पुरस्कारों से नवाजें जा चुके हैं


साल 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने अरुणाचलम को नेशनल इनोवेशन अवॉर्ड से नवाजा. साल 2014 में दुनिया की मशहूर मैगजीन ‘टाइम’ ने उन्हें दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में शामिल किया. इन सबके अलावा मुरुगनाथम को साल 2016 में भारत सरकार ने पद्म श्री से भी सम्मानित किया.


इन सम्मानों के बाद अब उनकी लाइफ पर बॉलीवुड में बायोपिक बन गई है, जो कि 9 फरवरी को सिनामाघरों में दस्तक देगी.