The Story Of Beauty Queen of Bollywood: बात है 1930 की, जब महिलाओं के लिए सिनेमा की दुनिया को सही नहीं कहा जाता था. महिलाओं का इस इंडस्ट्री में काम करना ही बड़ी बात होती थी. उस दौर में अदाकारा नसीम बानो (Naseem Bano) ने अपनी दिलकश अदाओं से दर्शकों को अपना कायल बना लिया था. सिने जगत में उन्हें 'ब्यूटी क्वीन' के नाम से जाना जाता था. नसीम बानो सिनेमा जगत की पहली 'महिला सुपरस्टार' थीं. 1935 में सोहराब मोदी के साथ 'हेमलेट' से अपने फिल्मी का करियर की शुरूआत करने वाली नसीम ने 1930 के दशक से लेकर 1950 के दशक तक फिल्मों में काम किया. 


बड़ी दिलचस्प है अदाकारा बनने की कहानी 
नसीम ने फिल्म जगत में कैसे रखा कदम? ये कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. दरअसल नसीम का असली नाम रोशन आला बेगम है और उनके पिता हसनपुर के नवाब अब्दुल वहीद खान थे. नसीम ने दिल्ली के क्वीन मैरी हाई स्कूल में पढ़ाई की. नसीम फिल्मों में काम करना चाहती थीं. हालांकि उनकी मां शमशाद उनके इस फैसले के खिलाफ थीं. वह नहीं चाहती थी कि बेटी फिल्मों में काम करे. एक बार नसीम बॉम्बे फिल्म की शूटिंग देखने गईं. उस वक्त सोहराब मोदी अपनी फिल्म हेमलेट के लिए हिरोइन ढ़ूंढ रहे थे और नसीम उन्हें पसंद आ गई. इस तरह से नसीम को उनकी पहली फिल्म मिली. 


नूरजहां ने नसीम को अमर कर दिया 
नसीम को पहली फिल्म भी सोहराब मोदी ने दी और नसीम का नाम फिल्मी दुनिया में अमर भी सोहराब ने ही किया. हेमलेट के बाद नसीम ने बहादुर 1937, तलाक 1938, मीठा ज़हर और वसंती 1938 जैसी फ़िल्मों की. लेकिन 1939 में सोहराब मोदी की फिल्म 'पुकार' में नूरजहां के किरदार ने उन्हें अमर कर दिया. इस फिल्म की सफलता के बाद बतौर एक्ट्रेस नसीम को काफी मांग हो गई. इस फिल्म के लिए नसीम ने घुड़सवारी सीखी और गाना भी सीखा. उनकी सुंदरता को देखते हुए नसीम को 'ब्यूटी क्वीन' का नाम दिया गया. 


पति पत्नी दोनों ने साथ कई फिल्में दीं
नसीम ने एहसान उल हक से शादी की. फिर पति और पत्नी दोनों उजाला 1942, बेगम 1945, चांदनी रात 1949 और अजीब लड़की 1942 जैसी कई फिल्मों में साथ नजर आए. 
बाद में नसीम ने फिल्म निर्माता के रूप में काम किया. 


सायरा बानो की मां व दिलीप कुमार की सास थी नसीम 
बता दें नसीम सायरा बानो की मां और ट्रेजडी किंग 'दिलीप कुमार' की सास थीं. फिल्मों में काम करना छोड़ने के बाद नसीम फैशन डिजाइनर बन गईं. उन्होंने कई फिल्मों में सायरा के लिए ड्रेस भी डिजाइन की. उनकी बेटी सायरा बानो ने जंगली 1961 से डेब्यू किया था. 


भारत के बंटवारे ने तोड़ दिया नसीम का परिवार 
देश की आजादी के बाद जब भारत का बंटवारा हुआ तो नसीम का परिवार बिखर गया. पति एहसान पाकिस्तान चले गए लेकिन नसीम बेटी सायरा के साथ भारत में रह गईं. बाद में नसीम इंग्लैंड चली गईं. सायरा तब तक बड़ी हो चुकी थी और अपनी मां की ही तरह हिंदी फिल्मों की दिवानी थी. उनकी ये दिवानगी देखकर मां ने बेटी को बॉलीवुड में पांव जमाने में हर संभव मदद की. फिर सायरा से 22 साल बड़े दिलीप कुमार से उनकी शादी करवाई. 


नसीम ने हिंदी सिनेमा को दी एक से एक बेहतरीन फ़िल्में 
नसीम ने खून का खून (हैमलेट) (1935), खान बहादुर (1937), मीठा ज़हर (1938), तलाक (1938), वासंती (1938), पुकार (1939), में हरि (1940), उजाला (1942), चल चल रे नौजवान (1944), बेगम (1944), जीवन सपना (1946), दूर चलें (1946), मुलाकात (1947), अनोखी अदा (1948), चांदनी रात (1949), शीश महल (1950), शबिस्तान (1951), अजीब लडकी (1952), बेताब (1952), सिनबाद जहज़ी (1952), बाघी (1953), नौशेरवान-ए-आदिल (1957) जैसी फ़िल्में हिंदी सिनेमा को दीं.


इसे भी पढ़ेंः
Wheat Flour Export Ban: महंगाई कम करने के लिए सरकार का बड़ा फैसला, गेहूं के आटे के निर्यात पर लगेगा बैन!


Chief Ministers Change In Indian State: बीते 13 महीनों में 6 राज्यों में बगैर चुनाव के बदल गए मुख्यमंत्री, यहां देखें पूरी लिस्ट