स्टार कास्ट: फरहान अख्तर, डायना पेंटी, दीपक डोबरियाल, राजेश शर्मा, रोनित रॉय,
डायरेक्टर: रंजीत तिवारी
रेटिंग: 2.5 स्टार

इस हफ्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई फरहान अख्तर की 'लखनऊ सेंट्रल' इस बात की ताजातरीन उदाहरण है कि ये जरूरी नहीं है कि बहुत सारे दमदार एक्टर्स हों तो फिल्म अच्छी ही बने. सलाखों के पीछे बैंड बनाने की ख्वाहिश रखने वाले कैदियों पर बनी इस क्राइम थ्रिलर में रोनित रॉय, दीपक डोबरियाल, ग्रिपी ग्रेवाल, मानव विज, राजेश शर्मा जैसे बेहतरीन एक्टर्स हैं, बावजूद इसके जब फिल्म जब खत्म होती है तो लगता है कि कुछ तो है जिसकी कमी रह गई है. इसकी वजह ये भी है कि फरहान अख्तर जैसे एक्टर्स से दर्शक हमेशा कुछ अलग और शानदार देखने की उम्मीद लगाए रहते हैं. इस फिल्म से डायरेक्शन में डेब्यू करने वाले रंजीत तिवारी को इस तरफ ध्यान देना चाहिए कि दमदार एक्टर्स को कास्ट करना अच्छी बात है लेकिन उसके लिए आपको अपनी कहानी और बाकी चीजों पर भी उतनी ही मेहनत से काम करना चाहिए.


कहानी

यूपी के छोटे से शहर मुरादाबाद में रहने वाले किशन मोहन गिरहोत्रा (फरहान अख्तर) के सपने बड़े हैं, वो गाना गाता है और बैंड बनाना चाहता है. लेकिन कुछ ऐसा होता है कि वो मर्डर के केस में हवालात पहुंच जाता है. लेकिन सलाखों के पीछे रहते हुए भी उसका सपना टूटता नहीं है बल्कि मौका मिलते ही उसे पूरा करने में जुट जाता है.



जेल में परमिंदर सिंह त्रेहान (गिप्पी ग्रेवाल), विक्टर चटोपाध्याय (दीपक डोबरियाल), पुरूषोत्तम मदन पंडिय (राजेश शर्मा) और दिक्कत अंसारी (इनामुल्ला हक) के साथ मिलकर किशन 15 अगस्त को परफॉर्मेंस देने के लिए बैंड तैयार करता है. लेकिन इसके पीछे उनका प्लान कुछ और होता है. जेलर की भूमिका में रोनित रॉय हैं जो इनके कुछ सोचने से पहले अगला प्लान कर लेते हैं. क्या ये पांचों अपने प्लान में कामयाब होते हैं?  यही कहानी है कि 'हां' तो कैसे और 'ना' तो क्यों? यही क्लाइमैक्स है.


एक्टिंग

'ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा' और 'भाग मिल्खा भाग' जैसी फिल्मों को अपनी एक्टिंग के दम पर चलाने वाले फरहान अख्तर इसमें भी खुद को साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. बावजूद इसके फिल्म देेखते समय उनके किरदार के साथ कोई सहानुभूति नहीं होती है.


इसके अलावा 'तुन वेड्स मनु' फेम दीपक डोबरियाल का टैलेंट इसमें बेकार किया गया है. वो इस फिल्म में उभर कर नहीं आ पाते हैं.  राजेश शर्मा, गिप्पी ग्रेवाल, इनामुल्ला हक और एनजीओ वर्कर के किरदार में डायना पेंटी के पास जितना करने के लिए वो ठीक ही करते हैं.



इतने अच्छे एक्टर्स के बीच भोजपुरी एक्टर रवि किशन अपनी तरफ ध्यान खींच लेते हैं. फिल्म में वो यूपी के मुख्यमंत्री के किरदार में हैं. उनका रोल फिल्म में बहुत ज्यादा तो नहीं है लेकिन जितनी देर वो पर्दे पर रहते हैं सारा अटेंशन उन पर ही चला जाता है.

कमियां

कुछ ही समय पहले रिलीज हुई फिल्म 'कैंदी बैंड' की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. इस फिल्म की कहानी में कुछ ऐसा है नहीं है जो नया देखने को मिला है. सारे कैरेक्टर्स को परफेक्ट बनाने में इतना समय दे दिया गया है कि लीड एक्टर पर ध्यान ही नहीं जाता और ना ही उससे जुड़ाव महसूस होता है. इससे पहले दर्शक फरहान अख्तर को 'रॉक ऑन' में गाते बजाते देख चुके है और वो काफी पसंद भी किया गया. लेकिन यहां वैसा नहीं होता. इसमें फरहान अख्तर का भोजपुरिया एक्सेंट भी बनावटी लगता है.



फर्स्ट हाफ में तो फिल्म बहुत तेजी से आगे बढ़ती है. लेकिन इंटरवल के बाद और क्लाइमैक्स के समय फिल्म इतनी स्लो है कि कुछ होने से पहले ही क्लाइमैक्स का अंदाजा लग जाता है.


म्यूजिक

फिल्म के दो गाने अच्छे है जो आपको फिल्म देखने के बाद याद रहेंगे. पहला है 'मीर-ए-कारवां' जिसे अमित मिश्रा और नीति मोहन ने गाया है और दूसरा गाना है 'रंगदारी'.

क्यों देखें/ना देखें

इस फिल्म के साथ इस हफ्ते कंगना रनौत की फिल्म 'सिमरन' भी रिलीज हुई है. दोनों फिल्में एक दूसरे से काफी अलग है. ये थ्रिलर है और वो कॉमेडी है. 'सिमरन' की कहानी बहुत ही साधारण है लेकिन फिल्म को कंगना की बेहतरीन अदाकारी के लिए देखा जा सकता है. पिछले कुछ दिनों से जिस तरह की बॉलीवुड फिल्में रिलीज हो रही हैं उस लिहाज से ये दोनों फिल्में फैमिली के साथ देखने लायक हैं. इन दोनों फिल्मों को देखते वक्त आप लॉजिक का इस्तेमाल ना करें तो ही बेहतर है.