नई दिल्ली: बीते कुछ सालों में कई ऐसी फिल्में बनी हैं, जिनके सर्टिफिकेशन को लेकर फिल्म सेंसर बोर्ड सुर्खियों में छाया रहा है. खासकर पहलाज निहलानी के कार्यकाल में कई ऐसे मौके आए जब सेंसर बोर्ड खबरों में रहा. वर्तमान में संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ पर विवाद होने के बाद एक बार फिर सेंसर बोर्ड खबरों में है.

सेंसर बोर्ड क्या है? ये कैसे काम करता है? और इसकी आखिर जरूरत क्या है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब हर कोई जानना चाहता है. इसलिए हम आपको इन्हीं जरूरी सवालों के जवाब दे रहे हैं.


सेंसर बोर्ड क्या है ?


सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन यानि सीबीएफसी एक वैधानिक संस्था है जो सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आता है. यह बोर्ड हमारे देश की फिल्मों को उसके कंटेंट के हिसाब से सर्टिफिकेट देने का काम करता है. ये सिनेमैटोग्राफी एक्ट 1952 के तहत आने वाले प्रावधानों के हिसाब से फिल्मों को रिलीज करने के लिए सर्टिफिकेट देने का काम करता है. हमारे देश में जितनी भी फिल्में बनती हैं, उन्हें रिलीज होने से पहले सेंसर बोर्ड की प्रक्रिया से होकर गुज़रना पड़ता है.


सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है. इसके सदस्य किसी भी सरकारी ओहदे पर नहीं होते. सेंसर बोर्ड का हेडक्वार्टर मुंबई में है और इसके 9 क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जोकि मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलूर, तिरुवनंतपुरम,  हैदराबाद,  नई दिल्ली, कटक और गुवहाटी में मौजूद है.


किसी फिल्म को सर्टिफिकेट देने में अधिकतम कितना समय लगता है ?


सेंसर बोर्ड किसी भी फिल्म के सर्टिफिकेशन में ज्यादा से ज्यादा 68 दिनों का वक्त ले सकता है. सबसे पहले फिल्म के आवेदन की जांच की जाती है, जिसमें लगभग एक हफ्ते का वक्त लगता है. उसके बाद फिल्म को जांच समिति के पास भेजा जाता है, जांच समिति 15 दिनों के अंदर इसे सेंसर बोर्ड अध्यक्ष के पास भेज देती है. अध्यक्ष फिल्म की जांच में अधिकतम 10 दिनों का वक्त ले सकता है. फिर सेंसर बोर्ड फिल्म के आवेदक को जरूरी कट्स के बारे में जानकारी देने और सर्टिफिकेट जारी करने में 36 दिनों का समय और ले सकता है. 


फिल्म सर्टिफिकेशन की कितनी कैटगरीज होती हैं ?


फिल्म के कंटेंट के अनुसार सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को 4 कैटगरीज़ के अंतर्गत सर्टिफिकेट प्रदान करता है.




  • पहली कैटगरी है (U) यानि यूनिवर्सल, ये कैटगरी सभी वर्ग के दर्शकों के लिए है.

  • दूसरी कैटगरी है (U/A), इसके तहत 12 साल से कम उम्र के बच्चे माता पिती या किसी बड़े की देख रेख में ही फिल्म देख सकते हैं.

  • तीसरी कैटगरी (A) है, जो सिर्फ व्यस्कों के लिए है.

  • चौथी और आखिरी कैटगरी है (S), ये कैटगरी किसी खास वर्ग के लोगों के लिए ही है, जैसे डॉक्टर, इंजीनियर या किसान वगैरह.


फिल्म सर्टिफिकेशन के तीन स्टेज होते हैं




  1.  सेंसर बोर्ड में फिल्म को पास या फेल करने के लिए 3 पैनल होते हैं. पहला पैनल जांच समिति का होता है. इसमें 4 सदस्य होते हैं, जिनमें 2 महिलाओं का होना जरूरी है. ज्यादातर फिल्में इसी पैनल के जरिए पास कर दी जाती हैं. खास बात ये है कि इस पैनल में सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष शामिल नहीं होते हैं.
    जांच समिति फिल्म देखती है और फिर सभी सदस्य लिखित में अपने सुझाव देते हैं कि फिल्म के किस सीन को काटना है और किसमें संशोधन करना है. इसके बाद समिति की रिपोर्ट अध्यक्ष को भेज दी जाती है.

  2. इस स्टेज पर सेकंड पैनल होता है, जिसे रिवाइजिंग कमेटी कहते हैं, पर फिल्म इस पैनल के पास तभी भेजी जाती है, जब जांच समिति फिल्म को सर्टिफिकेट देने से इंकार कर दे.
    इस पैनल में अध्यक्ष के अलावा 9 सदस्य और हो सकते हैं. इस पैनल के सदस्यों की पहचान भी गुप्त रखी जाती है. इसमें वही सदस्य होते हैं जो पहले के पैनल में शामिल न हुए हों. अगर फिल्म निर्माता इस पैनल के दिए सुझावों को मानने से इंकार कर देता है तो ऐसे हालात में इस पैनल के पास ये अधिकार होता है कि ये फिल्म को पास करने से मना कर दें.
    अब सवाल उठता है कि अगर सेंसर बोर्ड फिल्म को सर्टिफिकेट नहीं देता है तो फिल्म कैसे रिलीज होगी? ऐसी स्थिति में फिल्ममेकर के पास अदालतों का दरवाजा खटखटाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता.

  3. अगर सेंसर बोर्ड फिल्म को पास करने से इंकार करता है तो, फिल्ममेकर अपनी फिल्म के लिए सर्टिफिकेट हासिल करने के मकसद से कोर्ट जा सकता है.


फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण (एफसीएटी). ये आखिरी पैनल होता है. इसमें फिल्म इंडस्ट्री के अनुभवी सदस्य होते हैं. इसके अलावा इसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज भी होते हैं. इस पैनल का गठन काफी सोच विचार के बाद किया जाता है. इसलिए यहां से सर्टिफिकेट हासिल करने में फिल्म को लगभग एक महीने का वक्त लग सकता है.


आपको बता दें कि अगर इस पैनल के जरिए भी फिल्म को पास नहीं किया जाता है तो ऐसे हालात में फिल्ममेकर हाइ कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी अपील कर सकता है.


गौरतलब है कि वर्तमान में सेंसर बोर्ड के मुखिया लेखक प्रसून जोशी हैं. प्रसून स्क्रीनराइटर और कवि हैं. प्रसून सेंसर बोर्ड के 63 सालों के इतिहास में 28वें अध्यक्ष हैं. प्रसून, पहलाज निहलानी के बाद इस पद पर काबिज़ हुए हैं.