स्टारकास्ट- सुशांत सिंह राजपूत, संजना सांघी, साहिल वैद


निर्देशक- मुकेश छाबड़ा


संगीत - ए आर रहमान


''...जन्म कब लेना है और कब मरना है ये तो हम डिसाइड नहीं कर सकते, लेकिन कैसे जीना है ये हम डिसाइड करते हैं''. दिल बेचारा का ये डायलॉग जिंदगी को जीने की एक अलग उम्मीद जगाता है लेकिन इस ऑनस्क्रीन बोलने वाले सुशांत सिंह राजपूत ने अपनी जिंदगी खुद अपने हाथों ही ले ली. आज उनकी आखिरी और बहुप्रक्षिशित फिल्म 'दिल बेचारा' रिलीज हो गई है और इस फिल्म में उन्हें पर्दे पर देखने के बाद कुछ पलों के ऐसा महसूस होता है मानो वो कहीं गए ही नहीं और यहीं हमारे बीच हैं.. लेकिन ये सच नहीं है. अब सुशांत सिंह राजपूत हमारे बीच नहीं हैं और वो अपनी इस आखिरी फिल्म से दर्शकों को एक बार एंटरटेन करते नजर आ रहे हैं. फिल्म से संजना सांघी बतौर लीड एक्ट्रेस अपना डेब्यू कर रही हैं. ऑनस्क्रीन दोनों की कैमेस्ट्री बेहद खास नजर आ रही है. हालांकि बतौर एक्ट्रेस ये संजना की पहली फिल्म नहीं है इससे पहले वो सपोर्टिंग रोल और बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट कैमरे पर नजर आ चुकी हैं.



इमोशनल है कहानी


फिल्म की दो कैंसर पेशेंट्स की है किजी (संजना सांघी) और मैनी (सुशांत सिंह राजपूत) दोनों ही अलग-अलग कैंसर से पीड़ित हैं. दोनों की मुलाकात भी कैंसर हॉस्पिटल में ही होती है. मैनी पहली नजर में ही किजी को दिल दे बैठता है और उसे अप्रोच करने लगता है. लेकिन किजी को लगता है कि वो ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह पाएगी इसलिए वो मैनी से दूरी बना लेती है. लेकिन बाद में उसे मैनी की जिद के आगे हार माननी ही पड़ती है. मैनी जहां बेहद चुलबुला और खुश मिजाज शख्स है तो वहीं किजी थोड़ा खुद में समिटी हुई सी है. लेकिन मैनी उसे धीरे-धीरे जिंदगी का ताल पर नाचना सिखा देता है. इस सब के बीच कहानी में एंट्री में होती है सिंगर अभिमन्यू वीर (सैफ अली खान) की. हालांकि अभिमन्यू स्क्रीन पर तो कुछ ही देर के लिए दिखते हैं लेकिन उनका जिक्र फिल्म में शुरू से लेकर अंत तक होता रहता है.



इमोशन भी है ड्रामा भी


फिल्म में सुशांत एक डायलॉग बोलते नजर आ रहे हैं ''...मैं भी फुल कमर्शियल हीरो हूं..'' उनकी ये फिल्म देखने के बाद भी उनकी इस बात से सहमत होंगे. ये फिल्म एक फुल रोमांटिक ड्रामा है. इसमें जहां इस पल सुशांत आपको हंसाने नजर आएंगे वहीं, अगले ही पल उन्हें स्क्रीन पर देख आपकी आंखें नम हो जाएंगी. लेकिन नम आंखों के साथ भी दर्शकों को वो मुस्कुराने पर मजबूर कर देते हैं.


हंसना सिखा गए सुशांत


इसे इत्तेफाक कहें या कुछ और.. फिल्म में कई ऐसे सीन हैं जिसे देखकर सुशांत की निजी जिंदगी से जोड़कर देखा जा सकता है. इसमें सबसे बड़ा इत्तेफाक ये है कि असल जिंदगी की ही तरह सुशांत इस फिल्म में भी कम उम्र में दुनिया को अलविदा कह जाते हैं. लेकिन उनके फैंस के लिए अपनी इस आखिरी फिल्म से सुशांत बेहद खास मैसेज देकर जा रहे हैं. फिल्म में भी भले ही वो मर जाते हैं लेकिन वो अपने पीछे जिंदा बचे लोगों को जिंदगी के हर पल को जीने के लिए कहते हैं. फिल्म के जरिए सुशांत अपने फैंस को क्या मैसेज देना चाहते हैं उसे आप फिल्म के इस डायलॉग से समझ सकते हैं..''...जन्म कब लेना है और कब मरना है ये तो हम डिसाइड नहीं कर सकते, लेकिन कैसे जीना है ये हम डिसाइड करते हैं''. 


सुशांत सिंह राजपूत के फैंस और सिने प्रेमियों को ये फिल्म बिल्कुल भी मिस नहीं करनी चाहिए. ये फिल्म आपको हंसते-रोते जिंदगी का फलसफा सिखाएगी. सुशांत भले ही अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अपने काम के जरिए वो हमेंशा फैंस के दिलों में जिंदा रहेंगे.