साल 2020 फिल्मों के लिए मिलाजुला रहा है, इस साल गिनती की ही बड़ी फिल्में रिलीज हुई हैं. सिनेमा हॉल बंद होने के कारण इन फिल्मों को ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज करना पड़ा. फिल्मों के लिए यह साल अच्छा नहीं कहा जा सकता है. इसके बाद भी कुछ फिल्में ऐसी भी रहीं जो अपनी स्टारकास्ट, अच्छी पटकथा और कुशल निर्देशन के चलते दर्शकों के बीच खूब सराही गई हैं. साल 2020 में कौनसी फिल्में हिट साबित रहीं और कौनसी दर्शकों के पैमाने पर खरी नहीं उतर सकीं, आइये जानते हैं.


कुली नंबर 1 ने दर्शकों को किया निराश, वरूण और सारा की जोड़ी नहीं कर पाई कमाल
अमेजन प्राइम वीडियो की क्रिसमस के मौके पर रिलीज हुई यह फिल्म निर्देशक डेविड धवन और उनके बेटे वरुण धवन की सबसे कमजोर फिल्मों में से रही. यह एक रीमेक फिल्म थी. जिसे दर्शकों का वो प्यार नहीं मिला जिसकी उम्मीद की जा रही थी. लोगों ने इस फिल्म को देखने बाद यही कहा कि गोविंदा और करिश्मा कपूर की कुली नंबर वन के आगे वरुण और सारा आली खान की यह फिल्म कहीं नहीं टिकती है. गोविंदा के साथ कुली नंबर 1, डेविड धवन ने 1995 में बनाई थी.


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संजय दत्त की यह फिल्म दर्शकों पर छाप छोड़ने में रही नाकाम
भूमि फिल्म से कमबैक के बाद शुरू हुआ संजय दत्त का फिल्मी सफर इस साल भी दर्शकों के दिलों पर कोई खास छाप नहीं छोड़ सका. इसी साल अगस्त में उनकी सड़क-2 ने भी दर्शकों को निराश किया था. इसके बाद तोरबाज भी दर्शकों को प्रभावित करने में नाकाम साबित रही. तोरबाज को नेटफ्लिक्स पर रिलीज किया गया था. इस फिल्म में संजय दत्त अफगानी रिफ्यूजी कैंपों में रहे वाले अनाथ-बेसहारा-गरीब और तालिबानी होने के संदेह में घिरे बच्चों की क्रिकेट टीम बनाते हैं. टीम का मुकाबला होता है काबुल के एक क्रिकेट क्लब की अंडर-16 टीम से. तोरबाज अंत तक दर्शकों पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाती है.


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अनुराग बसु की इस फिल्म ने लोगों का खूब कराया मनोरंजन, लेकिन नहीं कर पाई कमाल
नेटफ्लिक्स पर साल 2020 में रिलीज हुई अनुराग बसु की फिल्म लूडो को लोगों का खूब प्यार मिला. इस फिल्म का निर्देशक अनुराग बसु ने एक नए तरह से फिल्म को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया, जिसे एक बड़ा जोखिम कह सकते हैं. इसमें वे सफल भी रहे. खास बात ये है कि वे खुद भी फिल्म में नजर आते हैं. यह फिल्म का ताना-बाना भले ही बच्चों के खेल लूडो पर आधारित है, परंतु यह बच्चों के लिए नहीं है. फिल्म में कसावट है और इसे अच्छे ढंग से संपादित किया गया है. अनुराग ने इन अपराध कथाओं के डार्क होने के बावजूद उनमें बर्फी और जग्गा जासूस जैसे ह्यूमर को बनाए रखा. यह फिल्म की खूबसूरती है. यह फिल्म उन लोगों के बीच खूब पसंद की गई जो डार्क कॉमेडी देखना पसंद करते हैं.


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सूरज पे मंगल भारी ने लोगों को हंसने पर मजबूर कर दिया
सूरज पे मंगल भारी नवंबर में आई थी. कोविड 19 के दौर में यह फिल्म लोगों को कुछ समय के लिए हंसाने में सफल रही है. इस फिल्म में एक मैरिज डिटेक्टिव है मंगल, जो नहीं चाहता है कि लड़कों का घर बसे. लेकिन कहानी में रोमांच तब पैदा होता है जब मंगल की बहन को प्यार हो जाता है. शादी और रोमांस का यह ड्रामा लोगों को हंसने पर मजबूर कर देता है. यह फिल्म 1990 के दशक की बंबई में मंगल राणे (मनोज बाजपेयी) और सूरज (दिलजीत दोसांज) की कहानी है. जो अनचाहे ही एक-दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं.


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अक्षय की लक्ष्मी बम नहीं उतर सही दर्शकों की कसौटी पर खरी
इस जिस फिल्म ने दर्शकों को सबसे ज्यादा निराश किया उसमें से एक फिल्म लक्ष्मी बम भी रही. यह फिल्म ट्रांसजेंडरों से मानवीय बराबरी की बात करते हुए भी उन्हें भयावह रूप में दिखती है. इसके हॉरर में लोगों को कॉमेडी नहीं मिलती है. जिस तरह से ट्रांसजेंडर किरदार में अक्षय और शरद केलकर नज़र आते हैं, वह कहीं से इस वर्ग की नई अथवा संभावित आधुनिक तस्वीर नहीं बनाते. न ही उन्हें नए सहज-सकारात्मक रूप में दिखाते हैं. इस फिल्म में कॉमेडी गढ़ने की नाकाम कोशिश की गई.


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